बंटवारे की नींव – डॉ. पारुल अग्रवाल

अंजलि के देवर पराग की शादी तय हो गई थी। उसके पति नीलेश के एक भाई और एक बहन थी। बहन की शादी हो चुकी थी। अंजलि और उसके पति दोनों नौकरी में थे इसलिए दूसरे शहर में रहते थे जबकि देवर ससुर जी के साथ ही व्यवसाय में था इसलिए सास-ससुर के साथ रहता था। घर में जोर-शोर से शादी की तैयारी चल रही थी। अंजलि और उसके पति नीलेश भी अपने छः साल के बच्चे के साथ हर सप्ताह के अंत में शादी की तैयारियों में सहयोग देने घर चले जाते थे। 

एक दिन नीलेश और ससुर जी शादी के निमंत्रण पत्र देने गए हुए थे। घर पर अंजली, उसकी ननद और सास ही थे। सास ने गहनें,साड़ियों और कपड़ों की सारी खरीदारी ननद के साथ मिलकर कर ली थी। वैसे भी उन्हें अपनी और अपनी बेटी की पसंद पर बहुत घमंड था। अंजलि को पहले तो लगा कि शादी की सारी खरीदारी में उसकी सास ने एक बार भी उसको नहीं बोला या उसका इंतज़ार नहीं किया पर फिर ये सोचकर शायद वो नौकरी करती है, उसके पास समय की कमी होती है इस बात को मन में जगह बनाने से रोक दिया। 

अब अंजलि की सास ने अपनी खरीदारी की प्रशंसा करते हुए अंजली को सब दिखाना शुरू किया। सब सामान और गहनें वास्तव में बहुत सुंदर और नए डिज़ाइन के थे। अंजलि ना चाहते हुए भी मन ही मन अपने शादी के समान से देवर की शादी के समान की तुलना करने लगी।उसको होने वाली देवरानी के गहनों का वज़न और डिज़ाइन अपने ससुराल की तरफ से मिले गहनों की तुलना में ज़्यादा ही प्रतीत हो रहा था। वो अभी ऐसा सोच ही रही थी कि उसके भावों को पढ़ते हुए उसकी सास ने बोल ही दिया कि पराग की होने वाली दुल्हन के लिए सब सामान बहुत देख-परख कर उसकी शादी से अच्छा लिया गया है। उनका कहना था कि नीलेश तो उनका बहुत समझदार बेटा है इसलिए उसकी शादी में उन्होंने उसकी पत्नी मतलब अंजली को जो भी दिया और चढ़ाया उसमें कोई दखलंदाजी नहीं की थी। 

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उसने तो ये ही कहा था कि आप जो भी अंजली को देंगी वो अच्छा ही होगा पर पराग का स्वभाव थोड़ा भिन्न है।अगर पराग की पत्नी के लिए कुछ भी थोड़ा कमतर लिया जाता तो उसको पसंद नहीं आता वो उनको आगे भी सुनाता रहता। पराग के इसी स्वभाव को ध्यान में रखकर उन्होंने एक-एक गहना और कपड़े लट्टे बहुत परख कर लिए हैं। 

अभी सास तो ये सब बता ही रही थी पर तभी ननद भी बोली कि वैसे भी पराग और उसकी पत्नी को तो मम्मी-पापा के साथ ही रहना है। उनको मम्मी-पापा के साथ रिश्तेदारी में भी सब जगह जाना होगा ऐसे में अगर घर की नई बहू सब कुछ बढ़िया पहनकर जायेगी तो परिवार का ही मान बढ़ेगा।

आज इन सारी बातों ने अंजलि के सामने भेदभाव के एक नए रूप की पोल खोल दी थी। अब तक वो सुनती ही थी कि आज के ज़माने में किसी के शरीफ और समझदार होने का भी लोग फ़ायदा उठा लेते हैं पर यहां तो उसके खुद के परिवार में उसके पति और उसके साथ भेदभाव की शुरुआत हो गई। उसको पता था कि अगर वो अपनी सास और ननद को कुछ भी कहेगी तो वो कुछ और तर्क देकर अपनी बात सही ठहराने की कोशिश करेंगी इसलिए उसने बड़े ही शांत शब्दों में कहा,अच्छा किया मांजी जो आपने पराग भैया की पत्नी के लिए सारी खरीदारी उनके हिसाब से की क्योंकि कम से कम अब उसके मन में तो कोई फर्क नहीं आयेगा। रही बात किसी को कितना मिलेगा ये तो सबकी अपनी किस्मत है। बरकत तो अपनी मेहनत से ही होती है।बड़ों का तो सिर्फ आर्शीवाद ही बहुत होता है जीवन में आगे बढ़ने के लिए। 

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मैं तो सिर्फ आपसे इतना कहना चाहती हूं कि परिवार को एक बनाए रखने की ज़िम्मेदारी जितनी घर के छोटों की होती है उतनी ही बड़ों की भी होती है।एक बेटे के सीधे होने पर उसको कम देना,दूसरे के थोड़ा बोलने पर और अपने साथ रहने की सोचकर उसको ज्यादा दे देना जैसी छोटी-छोटी बातें ही आगे आने वाले बड़े मतभेद का कारण बनती हैं। बाकी आप समझदार हैं ये कहकर अंजली ने अपनी बात खत्म की। आज अंजलि ने ये सब बोलना ही उचित समझा क्योंकि कई बार खामोशी को घर के अपने भी कमज़ोरी मान लेते हैं। आज उसके लिए बोलना इसलिए भी जरुरी हो गया था जिससे भविष्य में उसके परिवार की एकजुटता बनी रहे। 

 दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी ? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। मेरे को लगता है कि कई बार घर के बच्चों के मन में भेदभाव नहीं होता,बड़ों का तुलनात्मक व्यवहार ही उनके मन में अंतर लाता है और बाद में बंटवारों में होने वाले झगड़ों का कारण बनता है। माना की हाथ की भी पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती। हर बात में बिल्कुल बराबर और नापतौल के सब कुछ नहीं किया जा सकता पर जानबूझ के अपनेआप से ही किसी बच्चे को कम,किसी को अधिक दे देना ही आगे भविष्य में होने वाली घर की महाभारत और बंटवारे की नींव रख देता है।

#भेदभाव 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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