बंटवारा रिश्तो का-मुकेश पटेल

सरिता जी की शादी एक संयुक्त परिवार में हुआ था। अपने ससुराल में वह सबसे बड़ी थीं। सरिता जी की ससुराल में उनके हस्बैंड से छोटे दो भाई और थे और एक सबसे छोटी ननद थी। सरिता जी की शादी बहुत कम उम्र में ही हो गई थी जब उनकी शादी हुई थी तब वह 18 साल की भी नहीं हुई थी।

उम्र ज्यादा तो नहीं हुआ था लेकिन शादी को 25 साल से भी ज्यादा हो गया था इसलिए जीवन का तजुर्बा अच्छा हो गया था। सरिता जी एक शिक्षक की बेटी थी और संस्कार तो इनके खून में ही बसा हुआ था शादी होने के बाद ससुराल वाले को कभी भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि वह इस घर में शादी करके आई हैं



ससुराल आने के बाद से ही सबकी चहेती हो गई थी जब उनकी शादी हुई थी तो उनका एक देवर और एक ननद बहुत ही छोटे थे अपने ननद और देवर को बेटे और बेटी से कम प्यार नहीं करती थी। सरिता जी के ननंद और देवर भी अपने भाभी मां को मां समान ही समझते थे।

सरिता जी के बीच वाले देवर विनोद की शादी कुछ सालों बाद हुआ और विनोद की पत्नी अनीता भी सरिता जी के नक्शे कदम पर ही चल रही थी सब के साथ प्यार से रहना और बड़ों की इज्जत करना। अनीता के भी खून में बसा हुआ था। पूरे मोहल्ले में सरिता जी के परिवार का लोग तारीफ किया करते थे कि परिवार हो तो ऐसा।

इतने मेंबर है इस परिवार में लेकिन आज तक कभी भी इनके घर में कहासुनी तक नहीं हुई। लेकिन यह सब ज्यादा दिन तक नहीं चला सरिता जी का सबसे छोटा देवर नरेंद्र ने सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग करके बेंगलुरु में नौकरी करना शुरू कर दिया था

और वहीं पर गिन्नी नाम की एक लड़की से प्यार कर बैठा जो कि उसी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी और उसी से लव मैरिज शादी भी करना तय हो गया और शादी भी बेंगलुरु में ही होना था क्योंकि गिन्नी बेंगलुरु की ही रहने वाली थी।

इस कहानी को भी पढ़ें:

“पक्की सहेली” – नीरजा नामदेव

शादी के कुछ दिनों बाद ही गिन्नी मां बनने वाली थी तो नरेंद्र ने गिन्नी को अपने घर पहुंचा दिया क्योंकि वह अकेले देखभाल नहीं कर सकता था वह जॉब करेगा कि गिन्नी की देखभाल करेगा इसलिए गिन्नी को उसने अपने घर पहुंच जाना ही उचित समझा गिन्नी का मन तो नहीं था

गांव में रहने का लेकिन गिन्नी क्या करती अब उससे कुछ हो भी नहीं पा रहा था और नरेंद्र की बातों को टाल भी नहीं सकती थी क्योंकि नरेंद्र से बहुत प्यार करती थी। गिन्नी गांव में दो-तीन दिन के बाद से ही सब पर अपना धौंस जमाना शुरू कर दी थी। यह नहीं खाऊंगी वह नहीं खाऊंगी किसी को खाना बनाने नहीं आता है



तरह-तरह की कमियां निकालना शुरू कर दी थी यहां तक की अपना हर सामान अलग कर रखना शुरू कर दी। कभी किचन में जाती भी तो सिर्फ अपने लिए खाना बनाती। गिन्नी का यह स्वभाव किसी को भी पसंद नहीं आ रहा था

एक दिन जब गिन्नी के सासु माँ ने गिन्नी को टोका कि अगर किचन में जाती हो तो सबके लिए खाना बनाया करो। गिनी ने अपने सासू मां को टोक दिया कि मैं क्या यहां सब की नौकर हूं जो सबको खाना बनाकर खिलाती रहूँ जिसको खाना खाना है वह अपना जाकर बनाएं और खाए।

और मैं कह देती हूं मुझे नहीं रहना इस गांव में मैं अभी फोन करके बंगलेरू चली जाऊंगी। गिन्नी हर समय अपने मायके की तारीफ किया करती थी जबकि उसके मायके वाले भी कोई ज्यादा अमीर नहीं थे लेकिन ऐसे दिखाती थी कि वह कितने अमीर हो अपनी ननद से अपने सामान को दिखाती रहती थी

यह देखो मेरी मम्मी ने दिया है यह देखो मेरी पापा ने दिया है यह देखो मेरे भाई ने दिया है। गिन्नी अपने दिन का ज्यादातर समय खुद को सजने सँवरने में बिता देती थी। अब तो वह अपनी सासू मां, ननद यहां तक कि सरिता जी पर भी हुकुम चलाना शुरु कर दिया था।

एक दिन तो सरिता जी ने गिन्नी को जवाब दे ही दिया था कि गिन्नी माना कि तुम बड़े घर की हो लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम बड़ों की इज्जत करना भूल जाओ। आज हमारी शादी को 25 साल से भी ज्यादा हो गए लेकिन कभी भी हमने किसी को भी ऊंची आवाज में नहीं बोला है. अपने से छोटों को भी प्यार से ही बोला है और तुम 4 दिन में ही इस घर को तोड़ने चली हो। गिन्नी ने अपनी जेठानी की बातों को दिल पर लगा लिया और उसे ऐसा लग रहा था कि उसकी जेठानी ने उसकी बेइज्जती कर दी हो उसने तुरंत अपने हस्बैंड नरेंद्र को फोन लगाया और मिर्च मसाला लगाकर अपने पति नरेंद्र से बोला कि मुझे बेंगलुरु ले चलो यहां पर कोई भी मेरा केयर नहीं करता है वहां पर रहूंगी तो कम से कम मेरी मम्मी तो मेरी केयर करेगी या कोई नौकर हम रख लेंगे मुझे खुद ही खाना बना कर खाना पड़ता है।

इस कहानी को भी पढ़ें:

यादें तो मन में होती हैं – अर्चना कोहली “अर्चि”

नरेंद्र को यकीन तो नहीं हो रहा था कि उसके घर वाले गिन्नी के साथ ऐसा व्यवहार करेंगे लेकिन वह गिन्नी से भी बहुत प्यार करता था तो वह ना चाहते हुए भी गिन्नी की बातों पर यकीन कर गया और दो-तीन दिनों में ही छुट्टी लेकर वापस अपने गांव आ गया।

गांव आते ही नरेंद्र ने अपने पिताजी से कहा पिताजी आपको तो पता है कि आज तक कोई भी भाई-भाई एक साथ नहीं रहे हैं कभी न कभी उनके बीच बंटवारा होता ही है और अब वह समय आ गया है कि हम तीनो भाई आपस में बंटवारा कर अलग हो जाए। सरिता जी के ससुर बोले बेटा मैं बंटवारा तो कर दूंगा लेकिन यह बताओ कि तुम तीनों तो अपना हिस्सा लेकर अलग हो जाओगे। लेकिन मैं और तुम्हारी माँ और जो तुम्हारी बहन अभी कुंवारी है वह कहां जाएगी। नरेंद्र बोला पापा इसमें सोचने की क्या बात है हम तीन भाई हैं

चार-चार महीने आप तीनों के घर रहेंगे और जब बहन की शादी करना होगा तो जितना भी शादी में खर्चा होगा हम तीनो भाई बराबर-बराबर खर्चा दे देंगे। तभी सरिता जी आई और बोली देवर जी हमें कुछ नहीं चाहिए हमारा जो भी है वह मां बाबूजी का है और मां बाबूजी कहीं नहीं जाएंगे और ना ही भटकेंगे हम सालों भर अपने साथ रखेंगे सरिता जी ने अपने पति की तरफ इशारा करते हुए कहा क्यों जी क्या कहते हैं सरिता जी के पति बोले हां हां सही कह रही हो मां बाबूजी कहीं नहीं जाएंगे इतना तो हम कमा ही लेते हैं कि अपने मां बाबूजी का गुजारा पूरे जीवन कर पाएंगे।

सरिता के ससुर ने बोला देखो बेटा अगर तुम्हें अलग होना है तो हम तुम्हें मना नहीं करते हैं तुम अपना हिस्सा ले लो और अलग रहो हम सब अभी एक साथ ही रहेंगे। सरिता के ससुर ने अपने दूसरे बेटे से भी पूछा बेटा तुम्हारा क्या मन है क्या तुम भी अपना हिस्सा लेना चाहते हो।



सरिता के दूसरे देवर ने बोला बाबूजी आप जो फैसला करेंगे वह हमें मंजूर है हम आपके आगे आज तक ना कुछ बोले हैं और ना बोलेंगे नरेंद्र को मन में जो आए वह करें। सरिता जी के दूसरे देवर ने कहा बाबूजी हम तो यह चाहते हैं कि आप सारा कुछ नरेंद्र को दे दीजिए

हमारे पास आपके जैसा पारस पत्थर हो तो उसको धन की क्या जरूरत है इस दुनिया में मां-बाप से बढ़कर कौन सा धन होता है। नरेंद्र ने जब अपने भाइयों का त्याग देखा तो वह समझ गया था कि जरूर कोई ना कोई बात तो है क्योंकि उसे पहले भी यकीन नहीं हो रहा था

इस कहानी को भी पढ़ें:

भावनात्मक बंधन – कंचन श्रीवास्तव

कि उसके घर वाले उसकी पत्नी पर अत्याचार कर रहे होंगे अब उसे बात साफ-साफ समझ आ गया था कि हो ना हो गिन्नी जरूर झूठ बोल रही थी। नरेंद्र अपने घर वालों से माफी मांगी और गिन्नी को डांट-डपट कर बोला तुम्हें अगर गांव में नहीं रहना था

तो तुम सीधे-सीधे बता देती। हमारे देवता समान मां बाबूजी और भैया-भाभी पर आरोप क्यों लगाया तुम्हारे प्यार में मैं भी अंधा हो गया था जो मां समान भाभी को गलत समझ बैठा । नरेंद्र अपने भाभी के कदमों में गिर गया और सब से माफ़ी मांगने लगा।

दोस्तों इस कहानी का सार यही है कि आप कोई भी फैसला लें उसके पहले काफी सोच विचार करें किसी के कहे सुने पर सीधे फैसला न कर लें क्योंकि इस दुनिया में मां बाप और परिवार से बड़ा कोई धन नहीं होता है आप कितना भी पैसा कमा लें लेकिन आपका परिवार आपके साथ नहीं है

आपके मां-बाप आपके साथ नहीं है तो पैसा कमाना आपका बेकार है।

Writer:Mukesh Kumar

GKK S Fb

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!