#ख़्वाब
शिल्पी को मायके से फोन आया कि दादा जी गुजर गए हैं। वह जल्दी से तैयार होकर अपनी सास को जेठानी के पास छोड़कर अपने मायके जाने के लिए बस में बैठ गई। उसके पति राजेश भी उसके साथ थे।
वहां पहुंच कर शिल्पी अपनी दादी के गले लग कर फूट-फूट कर रोने लगी। उसके डैडी ने उसे संभाला। उसके पति अगले दिन वापस अपने घर चले गए और शिल्पी वहीं रह गई। इन दिनों वह बहुत उदास रहती थी और दादाजी की तेरहवीं होने के बाद उसे भी अपनी ससुराल वापस जाना था लेकिन उसने बहुत तेज बुखार आ गया। उसके मम्मी पापा और दादी जी ने उसे वही रोक लिया।
उसे दवाई दिलवाई गई ,इंजेक्शन लगाए गए लेकिन बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। तब डॉक्टर ने उनसे कहा -“लगता है शिल्पी के मन में कोई बात है जो उसे बेहद परेशान कर रही है और उसे ठीक होने नहीं दे रही। अगर हो सके तो आप उसके मन से उस तनाव को दूर करने की कोशिश कीजिए।”
रात में शिल्पी सबके साथ खाना खाने के बाद बैठी हुई थी। तब उसकी दादी जी ने बात छेड़ी और पूछा-“शिल्पी, संतान प्राप्ति के लिए जो तुम्हारा इलाज चल रहा था, क्या वह पूरा हो गया?”
शिल्पी ने बताया-“मेरे पति और मेरी रिपोर्ट में कहीं कोई गड़बड़ नहीं है। डॉक्टर को समझ नहीं आ रहा कि जब सब कुछ ठीक है तो संतान क्यों नहीं हो रही। अब वे लोग कह रहे हैं कि टेस्ट ट्यूब बेबी तरीका आजमा कर देखेंगे।”
इतना बोलते बोलते शिल्पी की आवाज भर्रा गई और वह रोने लगी। उसके मायके वालों को इसी बात का शक था कि शिल्पी इसीलिए परेशान है और उनका शक सही निकला।
शिल्पी इतना रो रही थी कि उसे चुप करवाना बहुत मुश्किल हो गया। उसके मम्मी डैडी,दादी, और भाई बहन सबकी आंखों में आंसू भर आए, शिल्पी का हाल देख कर।
उन्होंने उससे कहा-“बेटा, दुनिया में ऐसी बहुत सी स्त्रियां हैं जिनकी संतान नहीं है, फिर भी वे लोग खुश रहती हैं और तुम इतना क्यों परेशान हो रही हो, आज नहीं तो कल ईश्वर तुम्हारी जरूर सुनेंगे।”
शिल्पी से रोते-रोते बोला नहीं जा रहा था। वह रोते-रोते हिचकियां ले रही थी। तब उसने बड़ी मुश्किल से बोला-“डैडी जी, मुझे लोगों की बातें सुनते सुनते 10 साल हो चुके हैं। हर कोई सिर्फ एक ही सवाल पूछता है कि खुशखबरी कब सुना रही हो। मेरे बाद मेरी ससुराल में कई रिश्तेदारों के यहां शादियां हुई
उन सबके बच्चे बड़े भी हो गए हैं और मेरी गोद अब तक खाली है क्या मेरा एक छोटा सा ख्वाब भी ईश्वर पूरा नहीं कर सकते। क्या मैंने ईश्वर से इतना कुछ मांग लिया है कि उनके बस से बाहर है, मेरी इच्छा को पूरा करना। सब लोग कहते हैं कि अपने कर्मों के हिसाब से फल मिलता है।
तो क्या पिछले जन्म में सिर्फ मैंने ही बुरे कर्म किए थे और बाकी सब ने अच्छे। सवाल तो फिर भी इंसान बर्दाश्त कर सकता है लेकिन जब लोग सामने से आकर”बांझ”कहते हैं तो लगता है कि किसी ने कान में गर्म सीसा उड़ेल दिया हो। दिल छलनी छलनी हो जाता है और मन करता है कि अपने जीवन को समाप्त कर दूं। मैं बांझ नहीं हूं।”
डैडी-“शिल्पी, तुम तो बहुत हिम्मत वाली हो ,ऐसी बातें नहीं करते बेटा। किसने कहा ऐसा, और तुम ऐसी बातों को मन से मत लगाया करो। लोग तो कुछ भी बोलते हैं।”
शिल्पी-उसके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे और रो-रोकर उसकी आंखें सूज गई थी। वह बोली-“दादी, आपको पता है हमारे पड़ोस में सामने वाले घर में एक औरत रहने आई है। उसका बेटा गुंडा है। रोज किसी न किसी से लड़कर आता है।
एक दिन वह औरत अपने लड़के को ढूंढने गई और उसे पीटते हुए पकड़ कर वापस ला रही थी उस समय मैं दूध लेने जा रही थी। तब उसने अपने बेटे को थप्पड़ लगाते हुए बोला-“नालायक, रोज किसी न किसी से मार पिटाई करके आता है मैं तो तुझ से तंग आ गई हूं, और फिर मेरी तरफ देख कर बोली ,मुझसे अच्छी तो बांझ औरतें हैं, कम से कम उन्हें कोई चिंता तो नहीं।”
इतना बता कर शिल्पी फूट-फूट कर रोने लगी। सारे घर वाले उसे चुप करवाने में लगे हुए थे और साथ ही साथ अपने आंसू भी पोछ रहे थे।
मम्मी डैडी और दादी ने शिल्पी को समझाया-“बेटा, जब तक तुम्हारे ससुराल वाले तुम्हारे साथ हैं तब जब तुम्हें किसी की भी परवाह करने की जरूरत नहीं है और फिर तुम किसी बच्चे को गोद भी ले सकते हो। ऐसा करने से एक बच्चे को घर भी मिल जाएगा और तुम्हारे जीवन में खुशहाली भी आ जाएगी। इतनी टेंशन लेकर अपने आप को बीमार मत करो। हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं। लोगों की बातों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देना चाहिए।”
लेकिन शिल्पी तब भी उदास ही थी। वापस अपनी ससुराल पहुंच कर उसने अपने पति से किसी बच्चे को गोद लेने की बात की। वे थोड़े समय बाद तैयार हो गए। उन्होंने हर तरह के जो भी कागज आवश्यक थे इकट्ठे किए और बच्चा गोद लेने के लिए फॉर्म भरे। ठीक 9 महीने बाद उनकी इच्छा पूरी हुई और उन्हें अपने प्रिंस की प्राप्ति हुई। अनाथ आश्रम से अपने बेटे को गोद में लाते हुए शिल्पी और राजेश इतना खुश थे कि वो अपनी खुशी को शब्दों में बयान नहीं कर पा रहे थे और उनकी खुशी आंखों से आंसू बनकर बह रही थी। उनका एक छोटा सा “ख्वाब”पूरा हो चुका था।
मौलिक स्वरचित
गीता वाधवानी दिल्ली