“कैसी बात कर रही है भाभी आप” भईया को गए अभी दो महीने भी नही हुए और आप ने अपनी ननद के लिए इतना घटिया सोच लिया। हम बहन, बेटियों के लिए हमारा मायका सलामत रहें, हमारी बस यहीं चाह होती है एक बात और बता दूं भाभी की आपके प्यार ओर सम्मान के अलावा ” ना मुझे आपके पैसे चाहिए और ना ही संपत्ति” भरे हुए गले से सुधा ने अपनी भाभी दया से कहा तो आत्मग्लानि से दया भाभी और उनकी दोनो बेटियों ने सर झुका लिया।
जमींदार परिवार में जन्मी सुधा और उनका भाई पराग बहुत ही लाड़ प्यार से बड़े हुए थे, सुधा की शादी भी शहर के जाने माने उद्योगपति घराने में हुई । पीहर और ससुराल दोनों ही जगह धन की कोई कमी नही थी, समय के साथ जमींदारी कम होने से सुधा के पीहर में वो पहले वाली धन संपदा तो नहीं रही लेकिन जो थोड़ी जमीनों के टुकड़े बचे थे
वर्तमान में उनके दाम करोड़ो में पहुंच चुके थे, सब कुछ ठीक ही चल रहा था पराग ने भी अपनी दोनों बेटियों ओर इकलौते बेटे की शादी कर दी थी लेकिन खुद जानलेवा बीमारी “कैंसर” की चपेट में आ गए। समय कम देख पराग ने सुधा के दोनों बच्चों के “भात”(मामा के द्वारा निभाई जाने वाली एक परंपरा) के लिए जमीन का एक टुकड़ा
अपनी बहन के नाम कर दिया और अपनी बीवी – बेटे को बोल दिया की ये जमीन बेच कर सुधा के दोनों बच्चों का भात धूम धाम से भरना साथ ही अपनी बेटियों के नाम भी एक एक प्लॉट कर दिए
और कुछ समय बाद बीमारी से हारकर परलोक सिधार गए। समय का फेर देखिए कल तक जो नंद/ बुआ पीहर की जान हुआ करती थी अब भाभी और भतीजे को एक हिस्सेदार की तरह नजर आती, उन लोगों का बदलता व्यवहार सुधा का दिल कचोट कर रख देता लेकिन इस बदलाव का कारण वह जान नही पा रही थी।
ऐसे ही एक दिन सुधा को पीहर से उसकी भाभी का फोन आया और तुरंत आने को कहा… घबराहट और आशंका से घिरी हुई सुधा जब वहा पहुंची तो देखा उसकी दोनों भतीजिया भी अपने अपने पतियों के साथ मौजूद थीं और अपनी मां को समझा रही थी की बुआ से आज ही दस्तखत करा लेना, ऐसा ना हो की करोड़ों की जमीन देख उनकी नियत खराब हो जाए।
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सुधा ने सवालिया निगाहों से भाभी को देखा तो वो बोली, देखो सुधा तुम्हे धन संपत्ति की कोई कमी नही है तुम्हारे भाई ने भावुक होकर तुम्हे जो जमीन दी थी उसे वापस मेरे बेटे के नाम कर दो, पेपर हम बनवा चुके है बस तुम दस्तखत कर दो और रही बात भात भरने की तो वो हम अपनी सामर्थ अनुसार भर देंगे,
कल को मुझे अपनी बेटियों का भी तो देखना पड़ेगा ना, तभी सुधा ने पूछा तो क्या आप अपनी दोनों बेटियो से भी उनके पिता द्वारा दिए गए प्लॉट वापस ले रही है?… थोड़े शर्मिंदगी से भरी भाभी ने “ना” में सर हिला दिया। बहुत कुछ समझ चुकी सुधा ने पेपर पर दस्तखत किए और अपनी जड़ों से उखड़ चुके वृक्ष की भांति संवेदनाओं को किसी तरह वश में करती हुई गाड़ी में बैठ गई।
स्वरचित, मौलिक रचना
#वाक्य से कहानी बनाओ प्रतियोगिता
कविता भड़ाना