बंधते रिश्ते – लतिका श्रीवास्तव : Short Stories in Hindi

पापा इस बार मैं घर तभी आऊंगी जब भाभी घर से जाएंगी  वो नहीं दिखना चाहिए मुझे घर में……!नेहा बेटी का वही जिद्दी स्वर ….

पर बेटा सुनो तो मेरी बात ….कैलाश नाथजी कहते रह गए और नेहा ने कॉल काट दिया।

………नेहा उनकी इकलौती बिटिया … बहुत ज्यादा लाडली …बचपन से अपनी हर ज़िद पापा से मनवाती आई है …कैलाश नाथजी की तो जान बसती है बेटी में..उसकी शादी में वही सबसे ज्यादा रोए थे..! उन्हीं के अत्यधिक लाड़ दुलार ने उसे थोड़ा जिद्दी भी बना दिया है…!पापा के प्यार और दुलार पर वो अपना और सिर्फ अपना अधिकार समझती है..बचपन से ही भाई से भी इसीलिए लड़ाई करती रहती थी ..पापा सिर्फ मेरे हैं और मेरे लिए ही

सब कुछ करेंगे मेरी बात मानेंगे मेरे शौक पूरे करेंगे और किसी के भी नहीं…!पापा के हर दुलार और हर तारीफ़ो पर सिर्फ मेरा ही हक है… बड़ी हुई तो पापा का ख्याल रखने में और  उनके हर काम करने को भी अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती थी…. नेहा का पापा के प्रति यही पोसेसिवनेस अब कैलाशनाथजी के लिए धर्मसंकट बन गया था।

नेहा की भाभी और उनकी बहू सौम्या नाम के अनुरूप ही बहुत शांत सौम्य और स्नेही है …बिना कुछ कहे ही सभी का ख्याल रखती रहती है सबकी चिंता उसे रहती है….कैलाशनाथज़ी तो अपनी हर जरूरत के लिए उसीपर निर्भर हो गए हैं….नेहा के जाने का खालीपन सौम्या ने अपने मधुर और अपनत्व भरे व्यवहार से कब भर दिया उन्हें पता ही नहीं चला ।

वास्तव में कुछ बंधन मानो ईश्वर प्रदत्त ही होते हैं बेटी से तो खून का जन्म का रिश्ता है परंतु बहु सौम्या का बंधन तो इतने कम दिनों में ही बेटी से भी बढ़ के लगने लगा था ….

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उसके मुंह से पापा शब्द ही बहुत मीठा और आदर भरा लगता था कैलाश जी को…. एक दिन सौम्या ही ने बताया था की जब वो 3 या 4 साल की थी तभी उसके पापा का हार्ट अटैक से निधन हो गया था …उसे तो अपने पापा की ज्यादा स्मृतियां भी नहीं थी।शादी के बाद से ही वो कैलाश नाथजी को दिल से अपने ही पापा के रूप में देखती है मानती है सुबह से उनकी चाय से लेकर नाश्ता दवाइयां खाना वॉकिंग टीवी….हर चीज उपलब्ध कराने में अत्यधिक प्रसन्नता और उत्साह से तत्पर रहती है…बहु और ससुर के बंधन को उसने पूरी तरह से पिता पुत्री के बंधन में बदल दिया था।

..तभी तो राखी पर नेहा के आने पर भी वो सहजता पूर्वक सौम्या से आदतन बेटी जैसा ही बर्ताव कर रहे थे जो नेहा को किसी कीमत पर गवारा नहीं हुआ…..नेहा के पापा सिर्फ नेहा के थे सौम्या के कैसे हो सकते थे??

…पापा आप अपने हर काम भाभी से क्यों कहते हो मैं तो हूं ना आपकी बेटी मुझसे कहिए ..आपके लिए चाय तो मैं ही बनाऊंगी….भाभी आप जाओ ना घर के और भी तो काम है भाई के काम करो जाके…नेहा ने आते ही सौम्या से थोड़ा गुस्से से कहा था तो सौम्या घबरा गई थी ..”हां दीदी बस वो पापा की दवाइयां दे कर जा ही रही हूं…उसने धीरे से कहा तो नेहा ने उसे लगभग डांटते हुए कहा था…वो सब मैं दे दूंगी भाभी  मुझे सब पता है 

आखिर ये मेरे पापा हैं मैं ही इनकी एकमात्र बेटी हूं …आप इस घर की बहू हैं भाभी बहु ही रहेंगी ..बेटी बन कर मेरे पापा पर अधिकार करने की कोशिश मत करिए…ये आपके ससुर हैं पापा नहीं बन सकते….मेरे इस घर से निकलते ही आप तो मेरा ही स्थान हड़पने में लग गईं…पर ऐसा मैं कभी होने नहीं दूंगी।

उस दिन के बाद से लेकर जब तक नेहा मायके में रही भाभी सौम्या से उसने बात तक नहीं की और ना ही उसे अपने पापा के किसी भी काम में हाथ लगाने दिया …!

बिचारी सौम्या आंखों में आंसू और दिल में दुख लिए उन दोनों के सामने ही नहीं आई थी अलग ही रही…कैलाशनाथजी बेटी को कुछ कह नहीं सकते थे और सौम्या के प्रति ग्लानि महसूस कर रहे थे।

कैलाशनाथज जहां एक तरफ आज के इस दौर में सौम्या जैसी बहु के रूप में बेटी पाकर ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते ना थकते थे वहीं दूसरी तरफ अपनी सगी बेटी नेहा का भाभी के प्रति रूखा रवैया उन्हें भीतर तक व्यथित और चिंतित करता रहता था।

नेहा को कौन समझाए!!पापा की हर ज़रूरत का उसे हमेशा ध्यान रहता था…पापा भी हर बार उसे my lovely daughter ,my child … कहकर जब उसे बुलाते हैं तो पूरी दुनिया उसे अपनी लगने लगती है पर इस बार जब वो ससुराल से घर आई तो अचानक अपने पापा  पराए से लगे…

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अब वो अपने हर काम और जरूरत के लिए बेटा सौम्या आवाज़ देते थे….सौम्या की उसी तरह तारीफ करते थे जैसे उसकी किया करते थे…. पापा की सुबह से शाम तक की दिनचर्या सौम्या भाभी के साथ गुथी हुई देखकर अचानक उसे अकेलापन महसूस होने लगा था!

मेरा कोई महत्व ही नही रह गया अपने ही घर में!!मेरे पापा को मेरी कोई जरूरत ही नहीं है ….मुझको याद ही नहीं करते हैं….हर जगह सौम्या उसके स्थापित स्थान पर हक जमा चुकी थी….।

यह अकल्पनीय जिंदगी नेहा के लिए असहनीय थी जिसका एकमात्र समाधान उसे सौम्या को उस घर से हमेशा के लिए हटाना ही दिख रहा था…!

अचानक नेहा का मोबाइल बज उठा…उसने देखा सौम्या भाभी का कॉल था..!नेहा ने फोन उठाया ही नही…पर दो तीन बार कॉल आने पर उसने फोन उठा ही लिया..दूसरी ¹तरफ से सौम्या बहुत धीमी और भीगी आवाज़ में कह रही थी….

“नेहा दीदी आप नाराज़ नहीं होइए और मेरे कारण पापा के पास आना नहीं छोड़िए ..पापा की असली बेटी तो आप ही थी आप ही रहेंगी…आपका स्थान कोई सौम्या कभी नहीं ¹ले सकती….

अगर मेरा इस घर से जाना ही आपकी नाराजगी दूर करने का एकमात्र समाधान है तो ऐसा ही होगा…आप अपने घर से दूर नहीं जाइए…पापा की तबियत खराब हो गई है आप आ जाइए…..”.बस और फोन बंद हो गया।

पापा की तबियत खराब हो गई है सुनकर नेहा व्याकुल हो गई तुरंत पापा के पास पहुंच गई…..पापा उसे देखकर खुश तो हुए परंतु काफी परेशान भी दिखे… हां ….सौम्या घर में कहीं भी नज़र नहीं आई…

कहीं सच में तो घर से नहीं चली गई ….!अब नेहा को चिंता होने लगी…आखिर में उसने पूछ ही लिया …पापा भाभी कहीं नहीं दिख रही हैं..!पापा ने बहुत फीकी मुस्कान से कहा … हां बेटा एक बंधन को टूटने से बचाने के लिए सौम्या चली गई है…..!नेहा ने पापा की आंखों में छलक आए आंसुओं को स्पष्ट महसूस किया!

अचानक सौम्या का कद उसे अपने कद से ऊंचा महसूस होने लगा……”मैं अपने पापा को दुखी कर रही हूं उनकी तबियत मेरी नासमझी की वज़ह से खराब हुई है….पिता पुत्री का मजबूत बंधन तो सौम्या भाभी ने निभाया है…मैं अपने पापा पर इतना अधिकार जताती हूं पर उनके दिल पर तो सौम्या भाभी काअधिकार है…!

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अचानक नेहा की आंखों से झर झर आंसू बहने लगे…पापा मुझे माफ कर दीजिए मैने आपका और सौम्या भाभी दोनों का दिल दुखाया है और आप लोगों ने मुझे डांटने या उपेक्षित करने के बजाय मेरी ही ज़िद को सिर आंखों पर रख लिया….

कितना बुरा व्यवहार मैने उन सौम्या भाभी से कर दिया जो दूसरे घर से आकर भी रिश्तों को मजबूती देने में लगी रही…!मेरे पापा का इतना ख्याल करती रही और मैं उनकी तारीफ या उनके प्रति कृतज्ञ होने के बजाय उन्हें ही तिरस्कृत और अपमानित करती रही…! ओह पापा मुझे माफ कर दो मैं भाभी को कौन सा मुंह दिखाऊंगी….!

नेहा फफक फफक कर रोने लगी तभी अचानक दो नाजुक हाथों ने उसका मुंह उठा लिया और हल्के हाथों से आंसू पोछने लगे…अरे दीदी आप ऐसे रोएगी तो मैं कैसे जाउंगी!!…..भाभी मुझे माफ कर दो ना एक बार …बोलते हुए नेहा ने भाभी को कभी ना टूटने वाले बंधन में जकड़ लिया…..अब दोनों मिलकर रो रहीं थीं..पर ये तो खुशी के आंसू थे….अटूट स्नेह उत्कट प्रेम का बंधन था ये…!

और कैलाश नाथजी ईश्वर को हाथ जोड़ कर कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे …दो बेटियां जो मिल गईं थीं आज उन्हें।

#बंधन

 

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