* बंधनमुक्ति* – नीरजा नामदेव

      मयूरा जैसा नाम वैसी ही अप्रतिम नैसर्गिक सुन्दरता प्रदान की थी ईश्वर ने। उसे प्रकृति से बहुत गहरा लगाव था ।नदी , झरने, पहाड़, पेड़ों को  निहारना उसे बहुत ही अच्छा लगता था । समय आने पर उसका विवाह एक सरकारी अफसर मिलिंद से हुआ जिसका मूल स्थान पहाड़ों पर बसे एक गांव में  था ।मयूरा जब वहां गई तो उसे वहां के प्राकृतिक सौंदर्य ने अभिभूत कर दिया ।कुछ दिनों बाद  वह मिलिंद के साथ नौकरी की जगह पर आ गई ।

       इस बार दशहरा और दीपावली मनाने के लिए दोनों गाँव पहुंचे।मयूरा आसपास के सौंदर्य को देखकर हमेशा उस में खोई रहती ।उसकी सास   परंपरागत व्यंजन बनाती और वह उनसे  सीखती। देवर मुकुल पहाड़ी गीत गाता। वह हमेशा उसे गीत गाने का आग्रह करती ।ननद रूप उसके साथ  ही रहती। मिलिंद तो उसे छोड़कर अपनी ड्यूटी पर चला गया। वहां पास के गांव में रामलीला हो रही थी तो गांव के सभी लोग देखने गए । पहाड़ियों पर रास्ता बना हुआ था ।रात को अंधेरा रहता था इसलिए लोग मशाल लेकर जाते थे

।सभी रामलीला देख कर और उसकी बातें करते हुए वापस आ रहे थे। उस क्षेत्र में जंगली जानवरों का भी आतंक था इसलिए लोग रात को  समूह में जाते थे और मशाल लेकर जाते थे।मुकुल गीत गा रहा था। अचानक उन्हें चीते की चिंघाड़ सुनाई दी और चीते ने उनके समूह पर हमला कर दिया ।सभी इधर-उधर भागने लगे

।मयूरा ने देखा कि चीता रूप के एकदम पास आ गया है। मयूरा ने फुर्ती से एक मशाल लेकर चीते को धकेला।  चीता मयूरा की तरफ आ गया मयूरा उसे ढकेलते हुए  पीछे खिसकी  और पहाड़ियों की नुकीली चट्टानों से लुढ़कती हुई नीचे गिरी ।अचानक हुए हमले से चीता भी गिर गया ।यह सब अप्रत्याशित और कुछ मिनटों में ही हो गया।मशाल की रोशनी में सब मयूरा को खोजने लगे। वह उन्हें लहूलुहान हालत में मिली। उसका पूरा चेहरा और शरीर बुरी तरह जख्मी हो गया था। उसे तुरंत ही घर लाया गया।प्राथमिक उपचार कर के पास के शहर के

अस्पताल में ले जाया गया ।मिलिंद  को भी सूचना दे दी गई ।बहुत इलाज के बाद मयूरा ठीक तो हो गई लेकिन उसके चेहरे की सुंदरता कहीं खो गई। इतने टांके लगे थे उसके चेहरे पर कि उनके गहरे निशान बने हुए थे ।उस समय प्लास्टिक सर्जरी ज्यादा प्रचलित नहीं हुई थी। फिर भी मयूरा के पिता और मिलिंद ने उसे बड़े शहर ले जाने की बात कही। लेकिन मयूरा ने कहा कि ईश्वर ने जो  नैसर्गिक काया दी है उसे मैं कृत्रिम नहीं बनाऊंगी।

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     इस दुर्घटना में मयूरा की मां बनने की शक्ति भी खो गई ।मिलिंद को बच्चों से बहुत लगाव था।  धीरे-धीरे मिलिंद के व्यवहार में परिवर्तन होने लगा। जब भी वह मयूरा के कटे फटे चेहरे को देखता उसे अच्छा नहीं लगता था और फिर उसे अपना बच्चा भी चाहिए था। मयूरा तो यह सोचती थी कि स्नेह हम किसी को भी दे सकते हैं बच्चा गोद भी ले सकते हैं। लेकिन मिलिंद इसके लिए राजी नहीं था।     

    समय गुजरता गया उनके बीच में दूरियां आती गई। मयूरा उदास रहने लगी। मिलिंद भी ज्यादा से ज्यादा घर से बाहर ही रहता था। इस सब परिस्थितियों को देखते हुए मयूरा ने खुद को मिलिंद से दूर करने का सोचा और अपने पिताजी को यह बात बताई ।उन्होंने  मयूरा से कहा बेटी तुम बहुत सोच समझकर अपने जीवन का निर्णय लो । तुम जो भी निर्णय लोगी मैं तुम्हारे साथ हूं। मयूरा ने आखरी बार मिलिंद से बात की लेकिन उसे  अपने रिश्ते सुधरने की कोई आशा दिखाई नहीं दी।  उसने मिलिंद को अपने रिश्ते से मुक्त कर दिया ।




     अब वह सोचती रहती  कि मैं क्या करूं। एक दिन उसने समाचार पत्र में देखा कि उसकी स्कूल समय की मैडम ने पहाड़ों के बीच घिरे एक छोटे से गांव में वनवासी बालकों को पढ़ाने  और देखभाल करने के लिए एक छोटा सा आश्रम खोला है ।मयूरा ने  इस बारे में अपने पिताजी को बताया और अपनी शहर की जिंदगी छोड़ कर उस छोटे से गांव में अपनी पूरी जिंदगी समर्पित करने के लिए चली गई। वहां जाकर उसने मैडम के साथ मिलकर आश्रम के बच्चों को पढ़ाने और उनकी देखभाल करने का कार्य प्रारंभ कर दिया ।

प्रकृति के बीच रहते हुए उसे बहुत ही अच्छा लगता था ।धीरे-धीरे सब उसके बारे में जान गए थे।उसके चेहरे को देखकर सवाल पूछने  यहां वाले कोई नही थे। बच्चे उससे बहुत ही प्रेम करते थे। मयूरा ने  अपने मन में सोचा कि हम एक बच्चे के लिए तरस रहे थे। यहां तो मुझे अनेक बच्चे मिल गए हैं। क्या इन बच्चों को मैं अपना प्यार नहीं दे सकती। मां की ममता तो ऐसी ही है।  वह अपनी ममता इन प्यारे प्यारे बच्चों में बांटती।

       मयूरा ने धीरे-धीरे अपनी पिछली जिंदगी भुला दी । उसने बच्चों के साथ ही उस गांव में रहने वाले महिला पुरुषों को शिक्षित और जागरूक करने का  कार्य किया। सरकार की कई योजनाओं के बारे में जानकारी दी जिससे उस गांव का विकास हुआ।   मयूरा ने अपना पूरा जीवन उस गांव के लिए समर्पित कर दिया ।उसे अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं थी। यहां उसे बहुत ही शांति मिलती थी।

 

स्वरचित

नीरजा नामदेव

छत्तीसगढ़

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