शादी का शोर थम गया मानसी ने ससुराल की दहलीज़ पर कदम रखा ही था की सास, जेठानी और ननंद ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए। एक तो ससुराल कैसा होता है उसका मिश्र वर्णन मायके में अलग-अलग मुँह से सुन लिया था तो थोड़ी डरी हुई थी
मानसी। पर मायके का दामन छोड़ नये परिवार के साथ अपनेपन के बंधन से जुड़ने के लिए मानसी बहुत उत्सुक थी, सास-ससुर की सेवा करूँगी, देवर से हंसी मजाक करूँगी, ननद से दोस्ती करूँगी और जेठानी से अपने सुख दु:ख बाटूँगी नये परिवार में दूध में शक्कर सी घुल जाऊँगी, और पति को प्रीत की डोरी से जन्मों जन्म के बंधन में बाँध लूँगी।
पहले ही दिन मानसी रात को नाइट गाउन पहनकर पानी लेने रसोई में गई तो सासु माँ तपाक से बोली, ये क्या बहू? हमारे यहाँ बेडरूम के बाहर इस तरह के कपड़े पहनकर बहूएँ नहीं घूमा करती, आगे से याद रहे। मानसी जी माँ जी कहते झट से रूम में चली आई।
बड़ों की बात का मान रखना माँ ने सीखाया था तो चुप रही। और शादी की वजह से कितने दिनों की थकी मानसी घोड़े बेचकर सो गई। सुबह आठ बजे नींद खुली तो जल्दी से साड़ी लपेटकर रूम से बाहर निकली। डाइनिंग टेबल पर बैठकर चाय नास्ता कर रहे घर के सारे लोग मानसी को ऐसे घूर रहे थे, मानों मानसी ने आठ बजे उठकर कोई घोर अपराध कर दिया हो। हाथ जोड़ कर सबको नमस्ते करते मानसी रसोई में चली गई। इतने में जेठानी रुपा रसोई में आई
और बोली देखो छोटी इतने सालों से मैंने घर परिवार को संभाला अब थक चुकी हूँ, तू आ गई है तो मुझे भी अब प्रमोशन मिलना चाहिए अब तू जानें और घरवाले मैं आराम करना चाहती हूँ अब। आज तुझे सारे काम समझा देती हूँ संभाल इस घर की बागडोर।
मानसी रुआँसी हो उठी, मायके में इकलौती बेटी थी तो ना कभी जल्दी उठी, ना कोई काम समय पर किया, ना कभी ताने उल्हाने सुनें। मानसी सोचने लगी ये ससुराल है या पुलिस स्टेशन जहाँ गुनहगारों से सख़्ती बर्ती जाती है ऐसा माहौल है। मानसी के मन से शादी और ससुराल की कल्पनाओं के महल ढ़ह रहे थे।
कहाँ से शुरू करूँ सोच ही रही थी की ननद पिंकी की आवाज़ ने चोंका दिया, छोटी भाभी मुझे कालेज के लिए देर हो रही है जल्दी से उपमा बना दीजिए। मानसी ने आजतक उपमा सिर्फ़ खाया था बनाया नहीं, क्यूँकि माँ बाप ने एम बी ए तक पढ़ाया तो बस पढ़ाई पर ही ध्यान दिया। शादी तय होते ही बेसिक दाल, चावल, सब्ज़ी, रोटी ही सीखा था। मानसी ने रुपा से कहा भाभी आज उपमा सीखा दीजिए आगे से खुद बना लूँगी। उस पर रुपा ने पूरे घर के सामने मानसी का मजाक बना दिया। ये लो महारानी को उपमा बनाना भी नहीं आता है, भगवान मेरे नसीब में तो आराम लिखा ही नहीं।
सासु माँ भी तुनकी अरे रे कैसे माँ बाप है लोगों को इतना भी भान नहीं की बेटी को ससुराल भेजना होता है, चार किताब क्या पढ़ लिख ली मैडम बन गई। घर का काम क्या पूरी ज़िंदगी सास ही करती रहेगी। मानसी को अपने माँ-पापा के बारे में भला बुरा सुनकर बहुत बुरा लगा। और सोचने लगी सासु माँ ने पिंकी को मानों सर्व गुण संपन्न बनाया हो ऐसे बोल रही है उनकी बेटी तो एक नंबर की नखचढ़ी है।
मानसी धीरे-धीरे ससुराल में एडजस्ट होने की कोशिश कर रही थी, अपनी तरफ़ से हर किसीको खुश रखने की कोशिश में खुद के प्रति लापरवाह होती जा रही थी। सुबह छह बजे उठकर देवर और पति का टिफ़ीन बनाना, सबके लिए नास्ता बनाना, पिंकी के कपड़े इस्त्री करना, सास ससुर को दवाई देने से लेकर जेठानी के बेटे को पढ़ाने तक की ज़िम्मेदारी एक अकेली छोटी बहू के सर पर लाद दी गई थी। सुबह से शाम तक मानसी, भाभी, बहू, चाची के नाम की आवाज़ पर मानसी घूमती रहती थी।
एक डर से घिरी। न ठीक से खाना खा पाती थी न ठीक से सोती थी। नतीजा मानसी के शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो गई और कमज़ोरी की वजह से एक दिन चक्कर खाकर गिर गई। जल्दी से फ़ैमिली डाॅक्टर को बुलाया गया, पर इस बात पर भी सासु माँ ताना कसने से ना चुकी।
वाह रे आजकल की नाजुक लड़कियाँ दो काम क्या कर लिए इतनी कमज़ोरी आ गई। पर डाॅक्टर ने सारे घरवालों को लताड़ कर हिदायत दे दी। फैमिली डाॅक्टर होने के नाते मि. संजय अग्रवाल सब जानते थे की मानसी के सर पर पूरे परिवार का बोझ है, इसलिए बोले।
अगर मानसी के सर से काम का बोझ हटाया ना गया तो घर में आने वाला नया मेहमान खो दोगे, जी हाँ मानसी माँ बनने वाली है। और हीमोग्लोबिन महज़ 7% हो गया है सबके चेहरे पर शर्म और खुशी के दोहरे भाव आ गए। डाॅक्टर ने हर्ष को डांट कर कहा कैसे पति हो? अगर पत्नी की परवाह नहीं कर सकते तो भेज दो मायके। किसीकी बेटी पर इतना अत्याचार करते सबको शर्म आनी चाहिए। घर की बहू है कोई कामवाली नहीं। बहू है तो क्या घर के सारे कामों की ज़िम्मेदारी उसी की है।
मानसी का वजन सात किलो कम हो गया, बिलकुल पीली पड़ गई है घरवालों को तो नहीं दिखा, क्या तुमको भी नहीं दिखा। मानसी को बेडरेस्ट की जरूरत है अब से सब लोग अपना-अपना काम खुद करने की आदत डाल लो।
परिवार में सबको अपनी गलती समझ में आ गई, और हर्ष ने मानसी की माफ़ी मांगते डाॅक्टर से कहाँ आज के बाद मानसी की देखभाल की सारी ज़िम्मेदारी मेरी। आपने सही कहा मैं अपना कर्तव्य भूल गया था। सासु माँ ने कहा छोटी बहू हो सके तो मुझे भी माफ़ कर दे उपर वाले ने मुझे भी एक बेटी दी है, कल को उसके साथ ससुराल में ऐसा व्यवहार होता तो। जेठानी को भी अपनी गलती समझ में आ गई तो बोली मानसी सौरी देवरानी छोटी बहन समान होती है
मैं अपने औधे का मान नही रख पाई। मानसी अपनों का प्यार पाकर खुश होते बोली, आप सब माफ़ी मांग कर मुझे शर्मिंदा ना करें, मैं छोटी बहू हूँ और छोटी ही रहूँगी बस आशिर्वाद दीजिए अपना कर्तव्य हंमेशा निभाती रहूँ। आज पूरे परिवार ने साथ मिलकर मानसी की माँ बनने की खुशी में जश्न मनाया, इस प्रण के साथ की अब से घर का सारा काम सब मिल बांटकर करेंगे। मानसी के साथ आज सारा परिवार मानसिक रुप से अपनेपन के बंधन से जुड़ गए अब मानसी को ये परिवार अपना लगने लगा।
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर
स्वरचित, मौलिक