स्वाती पंद्रह वर्ष बीत जाने के बाद कनाडा से भारत आई थी। शादी के बाद एक बार गई तो घर आने का मुहूर्त ही नहीं बन पाया कोई न कोई व्यवधान आता ही रहा उसकी घर जाने की राह में। अभी भगवान की ऐसी कृपा हुई कि अचानक प्रोग्राम बन गया भारत आने का। पति की पोस्टिंग तीन महीने के लिए भारत हुई थी। अगस्त से लेकर अक्तूबर तक के समय में त्यौहारों की बहार रहती है।
पूरे वर्ष से ज्यादा आकर्षक होता है यह समय। अतएव स्वाती ने पति के साथ अपनी और बच्चों की भी तैयारी कर ली। शुरू के दिन मैके मे और बाद में ससुराल जाने का विचार बना लिया । रक्षाबंधन मायके में और दीपावली ससुराल में हो जायेगी ऐसा सोचा था उसने।
एक सप्ताह कब निकल गया पता ही नहीं चला स्वाती को। भैय्या, भाभी, मम्मी, पापा सभी से ढ़ेरों बातें कीं उसने। इस बीच वह दोनों बच्चों की तरफ थोड़ी लापरवाह रही लेकिन जैसे ही थोड़ा मोह घटा तो उसने महसूस किया बच्चे खुश नहीं दिख रहे हैं। वह भूल गई थी। उन्होंने तो कनाडा में आँखें खोलीं हैं। वहीं बड़े हुए हैं। वहाँ का माहौल वहाँ के लोग उनके अपने हैं। उन्हें नई जगह में मम्मी की ज्यादा जरूरत है।
उसको अपनी गलती का एहसास हुआ तो बच्चों से पूछा “कैसा लग रहा है यहाँ पर ” उन्होंने कुछ सकारात्मक जबाव नहीं दिया। वे कनाडा की बातें करने लगे। वहाँ के पड़ोसियों और अपने मित्रों की। वहाँ की बातें करते समय उनके चेहरे पर प्रसन्नता छलक रही थी। स्वाती समझ गई वे यहाँ खुश नहीं हैं। उसने पति को फोन लगा कर ससुराल होते हुए कनाडा जाने की बात कही। कारण जान कर उन्होंने व्यवस्था कर दी लौटने की। कनाडा लौटते समय बच्चों को खुश देखकर स्वाती सोच रही थी। खून के रिश्तों से ज्यादा मजबूत बंधन साथ रहने के होते हैं। क्योंकि उसे भी कमी महसूस हो रही कनाडा में बने संबंधों की।
स्वरचित —- मधु शुक्ला.
सतना , मध्यप्रदेश .