बंद आंखों से बहते आंसू – बालेश्वर गुप्ता Moral Stories in Hindi

हतप्रभ सी यशोदा कभी तो अपने बेटे राजू की ओर तो कभी उसके साथ आयी सोनी को देख रही थी।वे उससे आशीर्वाद मांग रहे थे,पर यशोदा तो मानो पथ्थर की हो गयी थी।

       राजू और सोनी की मुलाकात ऐसे ही अचानक राजू के आफिस में ही हो गयी थी।सोनी नगर के उद्योग पति सेठ हीरालाल की इकलौती पुत्री थी।पिता के कार्य मे ही हाथ बटाती थी।उस दिन एक्साइज काम से सोनी

एक्साइज ऑफिस आयी जहां राजू अप्पोइंट था।पहली ओपचारिक भेंट के बाद उनकी अक्सर होने वाली मुलाकातें प्रेम की कुलांचे मारने लगी।

        राजू ही सोनी को अपनी माँ यशोदा से मिलवाने ले गया था।जहां दोनो ने यशोदा के पावँ छूकर आशीर्वाद मांगकर अपने प्रेम का इजहार अपनी मां के सामने कर दिया था।इस अप्रत्याशित घटना ने ही यशोदा को

आश्चर्य में डाल दिया था।यशोदा को सोनी बुरी भी नही लगी,साथ ही बड़े घर की बेटी थी,तो विरोध का उसे कोई कारण नही मिला।यशोदा ने अपनी स्वीकृति दे दी।

     दो दिन बाद ही  सोनी के पिता हीरालाल भी राजू की मां के पास आकर औपचारिक रूप से रिश्ता मांग लिया।हीरालाल जी ने बस एक ही बात कही बहनजी सोनी मेरी एकलौती बेटी है,आपको सौप रहा हूँ,यशोदा भी

आत्मीय स्वर में बोली भाईसाहब चिंता न करे हमारे कोई बेटी नही थी,अब सोनी आकर उस कमी को पूरा कर देगी।

मुहर्त निकलवाकर राजू और सोनी की शादी बड़ी ही धूमधाम से करा दी गयी।दोनो खुश थे।हनीमून के लिये भी वे विदेश गये।महीने भर में जिंदगी को फिर अपने ढर्रे पर लाना था,सो राजू ने आफिस जाना शुरू कर

दिया,घर पर रह जाते सोनी और उसकी यानि राजू की माँ यशोदा।सोनी के लिये ये समय राजू की अनुपस्थिति में बड़ा ही कष्टकर लगता।

अपने पिता के यहां तो वह उनके उद्योग कार्य मे हाथ बटाती थी,तो समय का पता ही नही चलता था,यहां शादी के बाद टाइम काटना मुश्किल।वैसे भी सोनी को घर के काम मे कोई रुचि थी भी नही,न उससे खाना बनाना

आता था और न ही वह कोई कार्य सीखना चाहती थी।घर के काम का पूरा बोझ और चिंता यशोदा की ही थी।यशोदा ने सोनी को समझाने का प्रयास भी किया

कि बेटी अपने घर के काम करने और सीखने में कोई झिझक नही होनी चाहिये।सोनी ने पहले तो सुना अनसुना कर दिया बाद में स्पष्ट कर दिया कि माँजी मैंने ये घर गृहस्थी के काम न पहले किये हैं और न मेरी इनमें कोई

रुचि है।यह उत्तर सुन यशोदा सन्न रह गयी।

       अब यशोदा और सोनी के दिलो के बीच दीवार खिंच गयी। यशोदा ने सबसे पहले राजू का लंच बॉक्स को तैयार करना बंद कर दिया।एक दो दिन राजू को बिना लंचबॉक्स के ही ऑफिस जाना पड़ा तब झक मार कर

सोनी को किचन में जाना ही पड़ा और अपनी सहायता के लिये सास से ही चिरौरी करनी पड़ी।

दो चार दिन बाद यशोदा ने किचन जाना ही छोड़ दिया।इसी प्रकार अन्य जिम्मेदारियों से भी यशोदा पल्ला झाड़ती जा रही थी।सोनी का आक्रोश अपनी सास की ओर बढ़ता ही जा रहा था।घर पर केवल झाड़ू पोच्चे के लिये

ही मेड रखी गयी थी।यशोदा का मानना था कि खाना या तो माँ के हाथ का हो या फिर पत्नी के हाथ का,नौकरानी के हाथ का कदापि नही।

      उधर हीरालाल जी की फैक्ट्री में मजदूरों ने हड़ताल कर दी,जिससे निर्माण कार्य ठप्प हो गया।मजदूर नेता समझौता होने नही दे रहे थे,जिससे वे काफी परेशान थे और आर्थिक हानि झेल रहे थे।ऐसे में सोनी भी मानसिक

रूप से विचलित थी।पिता की परेशानी और सासु का कटु पराया सा व्यवहार उसे अंदर तक साल रहा था।

      एक दिन सुबह उठते ही सोनी को चक्कर आ गया वह बिस्तर पर गिर पड़ी,उससे उठा ही नही गया। कब वह अचेत हो गयी उसे अहसास ही नही हुआ।जब उसे होश आ रहा था तो उसकी आँखें तो बंद थी पर कमरे में

उसके पास ही उसकी सास और उसके पिता हीरालाल जी की बातचीत सुनाई दे रही थी।यशोदा कह रही थी

भाईसाहब आपके कहने से मैंने सोनी पर उसको गृहस्थी चलाने की ट्रेनिंग के चक्कर मे उसके साथ ज्यादती कर दी।अपनी फूल सी बेटी पर मेरा कटु व्यवहार,नही भाई साहब अब मैं सोनी को अपने सीने से लगाकर

रखूंगी।

       सोनी की बंद आँखों से आंसू बह रहे थे,जिनमे अपनी सासु माँ के प्रति मन मे आयी कडुवाहट भी बह गयी थी।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

#सासु माँ आप मुझे बेटी बनाकर लायी थी लेकिन बहू का हक भी नहीं दिया

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!