बलिहारी – गीता वाधवानी : Moral stories in hindi

भावना तीन चार बार कमरे का दरवाजा खोलकर आंगनमें आई थी  और बार-बार गलीकी तरफ देख रही थी और यह बात नोटिस कर रही थी उसकी बातूनी लेकिन प्यारी पड़ोसन अंजू, उसका काम ही था नोटिस करना। 

अंजू-“अरे भावना दीदी , क्यों इतनी बेचैन दिख रही हो, कब से अंदर-बाहर चक्कर लगाए जा रही हो, थक जाओगी, इससे तो अच्छा है कुर्सी डालकर थोड़ी देर आंगन में ही बैठ जाओ।” 

भावना-“हां अंजू तुम ठीक कह रही हो, आओ तुम भी यहीं आ जाओ।” 

अंजू तो आने को पहले से ही तैयार थी। दो कुर्सियां डालकर दोनों आंगन मेंबैठ जाती है। 

अंजू -“दीदी किसी का इंतजार हैक्या?” 

भावना-“हां अंजू, शाम होने कोआई, अजय अभी तक  आया नहीं है। वैसे तो कॉलेज से चार -4:30 तक आ जाता है।” 

अंजू-“अच्छा आपका देवर, आ जाएगा, आप अपने बच्चों की चिंता करो ना, देवर की चिंता में क्योंघुली जा रही हो।” 

भावना-“ऐसा मत बोलो अंजू, अजय ही तो मेरा बड़ाबेटा है। राशि और राघव बाद में पहले मेरा अज्जू। पताहै तुम्हें।” 

उसकी बात को बीच में काटकरअंजू बोली-“नहीं पता।” 

भावना ने मुस्कुरा कर कहा-“हां सच में, तुम्हें कैसे पता होगा, तुम कुछसाल पहले ही तो हमारे मोहल्ले में रहने आई हो। जब मैं विजय से शादी करके आई थी ना, तब मेरी सासू मांने मुझे इतना प्यार दिया कि मैं तुम्हें क्या बताऊं। अच्छी भली खाती-पीती हंसती खिलखिलाती यूं अचानक चली गईं कि विश्वास ही नहीं हो रहा था। 

अंजू-“क्या हुआ था दीदी?” 

भावना-“1 साल तक मेरे पति विजय, ससुर जी, मेरीसासू मां और छोटा-सा 4 साल का अज्जू खूब खुशी से रहे। और फिर एक दिन अचानक मेरी सास को हार्टअटैक आया, जिसमें उनकी जान तो बच गई, लेकिन शायद उन्हें एहसास हो गया था कि, ज्यादा दिन जी नहीं पाएंगी। वह गुमसुम रहने लगी थी। एक दिन रातको खाना खाने के बाद उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और अज्जू का हाथ मेरे हाथ में देते हुए कहा, भावना तुम इसे अपना बेटा समझ कर पालना, अभी बहुत छोटा है संभाल लेना। मैंने कहा मां आप ऐसा क्यों कह रही है, अभी तो आपको अज्जू की शादी में खूब डांस करना है। उन्होंने कुछ कहा नहीं, बस मुस्कुरा कर मेरे सिर पर अपना हाथ रख दिया। फिर सुबह वे उठी ही नहीं। रात को शायद उन्हें दूसरा अटैक आया था। अब तुम ही बताओ कि मुझे अज्जू की चिंता कैसे नहीं होगी, वह भीतो मुझे मां कहता है। अरे हांअंजू उसके बचपन की एक बड़ी मजेदार बात यादआई, तुम 2 मिनट  बैठो, मैं चाय बनाकर लाती हूं, और किस्सा भीसुनाती हूं। 

अंजू-“अरे वाह दीदी !खूब याद दिलाया। दोपहरमें मैंने पकोड़ा कढ़ी बनाई थी, तब बच्चो ने कहा पकोड़े ज्यादा बनालो हम शाम को चाय के साथ खाएंगे। प्याज केपकोड़े पड़े हैं, मैं अभी गर्म करकेलाती हूं। 

चाय और पकौड़ों के साथ भावना ने बताया-“एक बार सब्जी काटते समय मेरी उंगली में चाकू से कट लग गया और खून निकलने लगा। यह देखकर अज्जू तुरंत फर्स्ट एड बॉक्स में से रुई और दवा निकाल लाया, मेरी उंगली पर लगाते लगाते रोने लगा। मैंने कहा बेटा आप क्यों रो रहे हो, उसने कहा, मां आपको दर्द हो रहा होगा ना इसलिए।” 

अंजू हैरानी से सुन रही थी। 

भावना ने आगे कहा-“कुछ वर्षों बाद ससुरजी भी चले गए। अज्जू दोनों बच्चों राशि और राघव का एक बड़े भाई की तरह ख्याल रख ता है। एक बार वहअपनी गुल्लकसे ₹20 निकल रहा था। मैंने उससे कहा जो कुछलेना है, मैं दिलवा दूगी। लेकिन अज्जू माना नहीं। और जब वह स्कूल से वापस आया, तो कैंटीन से दो समोसे लाया था। मैंने पूछा कैंटीन में तो बड़े बच्चोंकी बहुत भीड़ होती है फिर तुम यह कैसे लाए?” 

अज्जू ने कहा कैंटीन वाले अंकल छोटे बच्चों के लिए अलग लाइन बनवाते हैं। और समोसा तो आपको बहुत पसंद है ना। 

मैंने कहा लेकिन बेटा आज ही क्यों लाए हो। अज्जू नेबड़े प्यार से कहा, आप भूल गए क्या, आज मदर्स डे है। इतना कहकर वह मुझे अपने हाथों से समोसा खिलाने लगा। उसकी बातों पर मैं बलिहारी जातीहूं। किसी की नजर ना लगे मेरे बच्चे को। ” 

दोनों बातें कर ही रही थी कि तभी अज्जू आ गया और अंजू को नमस्ते आंटी कहकर अंदर चला गया। भावना भी अंदर चली गई और अंजू अपने घर। 

कुछ दिन बाद भावना के दोनों बच्चे शाम के समय जिद पर अड़ गए कि हमें अभी शॉपिंग करनी है, मम्मी अभी चलो। भावना को जाना पड़ा। बाजार में 2 घंटे लग गए। थोड़ी बहुत खरीदारी करके वे लोग वापस आए तो घर में बिल्कुल अंधेरा था और में गेट पर कुंडी भी लगी हुई नहीं थी। भावना ने आवाज लगाई, कहां हो अज्जू, लाइट क्यों नहीं जलाई। कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है। ऐसा कहकर वह थोड़ा आगे बढ़ी, तभी पूरा कमरा रोशनी से नहा उठा। हर तरफ रंग बिरंगी लाइट्स की चमक दमक। सामने लिखा था”हैप्पी बर्थडे टू यू” दरअसल उस दिन भावना का जन्मदिन था और उसे लग रहा था कि शायद किसी को याद नहीं है। भावना को बच्चों के साथ बाजार भेजने वाला प्लान भी अज्जू का ही था। पीछे से 2घंटे में उसने और विजय ने मिलकर सारी सजावट कर दी थी। सबने जोरसे खुशी-खुशी भावना को जन्मदिन की बधाई दी। रंगबिरंगा केक भी मंगवाया गया था। केक काटने के बाद भावना को जब सब ने मिलकर उपहार दिया तो उसकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उपहार था -एक बहुत ही सुंदर  डार्क ग्रे कलर की नगों से जड़ी झिलमिलाती, लश्कारे मारती साड़ी। 

भावना ने उसे देखकर कहा-“अरे यह साड़ी तो, उसका वाक्य अधूरा ही रह गया क्योंकि उसके पति विजय ने कहा अजय ने बताया कि दुकान में तुम्हें यह साड़ी बहुत पसंद आई थी और तुमने कहा था कि अभीतो नहीं, परअज्जू की शादी में ऐसी ही झिलमिललती  साड़ी खरीदूंगी।” 

भावना-“हां, पर यह तो बहुत महंगी है।” 

विजय-“हम सब ने मिलकर ली है भई, हां लेकिन इसके लिए सबसे ज़्यादा मेहनत अज्जू ने की है। यह पिछले 3 महीने से इस साड़ी के लिए पैसे जमाकरने के लिए एक बच्ची को शाम के समय गिटार बजाना सीखने जाता है। फिरभी पैसे कम पड़ गए, तब मैं और बच्चों ने शेयर दिया।” 

विजय हंसते हुए आगे बोला-“मैंने सबसे कम शेयर दिया था इसीलिए राशि के साथ जाकर मैंने साड़ी के साथ मैचिंग ज्वैलरी और चूड़ियां खरीद ली। अब जल्दी से यह पहन कर पार्टी के लिए तैयार हो जाओ।” 

भावना ने कहा”-पहले तो ब्लाउज़ बनवाने के लिए टेलर के पास जाना होगा।”  राशि  ने कहा-“यह देखो मम्मी, मैं आपकी नाप का पुराना ब्लाउज़ और नई साड़ी वाला कपड़ा टेलरको पहले ही दे आई थी। सब कुछ तैयार है।” 

भावना हैरानभी थी और खुश भी थी। वह जल्दी से तैयार हो गई। राघव ने फटाफट खाना ऑर्डर कर दिया। सबने मिलकर खूब डांस किया और खाना भी खाया। भावना, अज्जू पर बलिहारी हो रही थी। यह है कहानी भाभी और देवर के प्यार से रिश्ते की, आप सबको कैसी लगी।

  स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

4 thoughts on “बलिहारी – गीता वाधवानी : Moral stories in hindi”

  1. बहुत ही सुंदर💐👌👌दिल को छू लिया इस प्यारी सी कहानी ने👍👏👏

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