बहुएं – खुशी : Moral Stories in Hindi

गीता जी  और मोहन जी दोनो पति पत्नी थे।गीता जी जहां मिलनसार थी मोहन जी नपा तुला बोलने वाले वो बैंक में क्लर्क थे और अपने परिवार से दूर  रुड़की में रहते थे।

उनके दो बेटे थे देव और विपुल बेटे भी पिता जैसे ही शांत स्वभाव के थे।इसलिए गीता को बेटी की बड़ी चाह थी।पति से जिद करके तीसरा चांस लिया भी पर शुरुआत में तबियत खराब होने पर डॉक्टर ने चेक किया लड़का था पर उसमें धड़कन नहीं थी इसलिए 

गर्भपात करवा दिया जिससे ये उम्मीद भी टूट गई ।गीता जी आस पड़ोस वालों से घुल मिल कर रहती अपने पड़ोसी भाई की बेटी और जेठानी की बेटी को बहुत प्यार करती कभी कभी उनकी सास कहती भी हमारी लाली की यही तमन्ना अधूरी रह गई कि उसकी भी एक गोल

मटोल लाली हो।  गीता जी कहती कोई बात नहीं ये कमी मै अपनी बेटियों से पूरी कर लूंगी।मेरे दो बेटे है तो दो बेटियां भी तो आएंगी।सब कहते कहने की बात है बेटी बेटी बहु आते ही सास का रंग चढ़ना शुरू हो जाता हैं।गीता जी कहती देखेंगे वक्त बताएगा क्या क्या होता हैं।

समय बीता बच्चे बड़े हुए बड़ा देव ऑफिस में ऑफिसर लग गया और छोटा अभी बीटेक के फाइनल के पेपर दे रहा था अब देव के लिए लड़कियां देखी जाने लगी।देव ने अपनी मां को पहले ही कहा था पढ़ी लिखी और सुलझी हुई लड़की देखना जो आप लोगों को भी अच्छे से देखे नौकरी ना करे कोई बात नहीं पर घर अच्छे से संभाले।

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इसी खोज में उनकी नजर अस्मिता पर पड़ी।अस्मिता बी एड ,M.A लडकी थी उसकी मां का देहांत हो गया था घर पर पिताजी थे अमित  जो सरकारी स्कूल में अध्यापक थे।सुशील और संस्कारी लड़की थी उसने सिर्फ देव से एक ही बात कही मै अपने आपको आप जैसे ढlल लूंगी पर आपको मेरी एक ही बात माननी होगी।देव बोला क्या?

अस्मिता बोली मेरी मां नहीं है नाही भाई बहन पिताजी अकेले है उनका ध्यान मुझे रखने से आप मना नहीं करेंगे।देव बोला कभी नहीं फिर भी मै अपने बारे में गारंटी ले सकता हूं घर वालों से भी पूछ लेता हूं।तब तक गीता जी और मोहन भी बाहर आ गए।देव ने एक तरफ ले जा कर अपने माता पिता को अस्मिता की बात बताई गीता अस्मिता के सिर पर हाथ रख बोली मेरी बच्ची तुझे कभी कोई नहीं रोकेगा ।

तेरे पिता का पहला हक तुझ पर है। हसी खुशी रिश्ता पक्का हुआ और अस्मिता दुल्हन बन घर आ गई।तभी उसका नियुक्ति पत्र भी आ गया।देव बोला मुझे कोई परेशानी नहीं तुम्हारे नौकरी करने से बस इस बात का ध्यान रहे कि मां और दोनों पिताजी को कोई परेशानी ना हो।अस्मिता बोली मै ख्याल रखूंगी।

बाहर से गीता जी गुजर रही थी बोली मै भी रखूंगी। अस्मिता अपने नाम के अनुरूप थी सबका ध्यान रखती घर परिवार की इज्जत का ख्याल रखती।किसी को शिकायत का मौका ना देती।गीता जी भी सुबह का सारा काम खुद करती ताकि अस्मिता को परेशानी ना हो। हर शनिवार इतवार अस्मिता के पिताजी को यही ले आते फिर वो सब एक साथ घूमने जाते एंजॉय करते ।

इसी बीच विपुल को भी नौकरी लग गई।सबने विपुल से पूछा तेरी कोई पसंद हो तो बता।विपुल बोला मुझे भाभी जैसी घर जोड़ने वाली लड़की चाहिए जो मेरे माता पिता भाई भाभी का ध्यान रखे।अस्मिता बोली मुझ जैसी नहीं मां जैसी जिन्हें जोड़ने की कला आती हैं।दिन बीते विपुल के लिए लड़कियां देखी जा रही थी पर कोई समझ नहीं आ रही थी

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इसलिए अब तक वो किसी के घर भी नहीं गए क्योंकि गीता और मोहन को लड़कियों की नुमाइश पसंद नहीं थी।फिर एक दिन अस्मिता के पिताजी ने एक रिश्ता बताया लड़की बीटेक थी और it कंपनी में थी ।दो दिन ऑफिस जाती बाकी वर्क फ्रॉम होम था।परिवार में माता पिता 

 थे। लड़की का नाम विद्या था।उन्होंने कहा मुझे लगता है आपको विद्या बेटी पसंद आएगी मेरी शिष्या थी। अमित जी ने ही बात चलाई और इतवार का दिन तय हुआ सब लोग गणपति मंदिर गए वही देखना दिखाना हुआ।विद्या सबको पसंद आई और  अपनी बात विपुल ने रखी मेरी यही अपेक्षा है जैसे मेरी मां और भाभी ने घर जोड़ कर रखा है तुम भी वैसे ही रखोगी

और तुम।बेफिक्र रहो तुम्हारे माता पिता  अब मेरे अपने है मैं भी उनका पूरा ध्यान रखूंगा।दोनो ने एक। दूसरे को पसंद किया और चट मंगनी और पट ब्याह हो गया। विपुल और विद्या घूम फिर कर आए तो दोनों बहुओं को गीता जी ने अपने कमरे में बुलाया बोली बेटा मेरी शुरू से ये तमन्ना थी कि मेरी बेटी हो पर वह नहीं हुआ ईश्वर ने तुम दोनों के रूप में मुझे बेटियां दी है।

मैं मां का कर्तव्य अच्छे से निभाऊंगी अगर कभी मेरी किसी बात का बुरा लगे तो मुझे कहना बेटों को नहीं हम मां बेटियां आपस में सब सुलझा लेंगे। इसमें हमारे पतियों को शामिल मत करना। अस्मिता को मेरे साथ रहते हुए साल हो गया है तुम उससे पूछ सकती हो कि उसे कोई तकलीफ हमारी तरफ से तुम्हारे मायके जाने पर कोई पाबंदी नहीं तुम्हारे माता-पिता हमारे लिए सर्वोपरि हैं इसी प्रकार इतनी उम्मीद

करती हूं कि हम भी तुम्हारा ह्रदय में सम्मान का स्थान रखते हैं बेटा इस घर को बहनों की तरह चलाना बहू की तरह नहीं। अस्मिता और विद्या ने गीता के हाथ पकड़ लिए और बोली मां यह स्वर्ग स्वर्ग ही रहेगा। हम पूरी कोशिश करेंगे अगले दिन से विद्या सुबह जल्दी उठती सारा नाश्ता बनाती सबका लंच पैक करती और 10:00 बजे ऑफिस के लिए बैठ जाती दोपहर की रोटी गीता जी बनाती।

सब दिन का खाना खाते तब तक अस्मिता आ जाती शाम की  चाय रात का खाना अस्मिता की जिम्मेवारी होती। गीता की मशीन लगा देती और  कामवाली से कपड़े सुखवा लेती। सफाई बर्तन के लिए बाई आती थी। शनिवार इतवार को सख्त हिदायत  थी बहुएं  को जल्दी नहीं उठाएंगी। उसे दिन सुबह का चाय नाश्ता गीता जी ही बनाएगई।

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यह नियम गीता जी ने स्वयं बनाया था क्योंकि वह चाहती थी की बहू को बेटियों जैसा ही आराम मिले। तभी उनकी ससुराल में शादी पड़ी पहली बार दोनों बहुएं भी गांव जा रही थी। बहू ने गीता जी की बहुत सुंदर तैयारी की हर चीज एक से बढ़ कर एक वहां सब पूछ रहे थे क्या बहनों को ब्याह लिया इतना प्रेम है दोनो में। गीता जी बोली मेरी यह मेरी बहू नहीं मेरी बटियां हैं।

जिन्होंने मेरा बेटी का सपना पूरा किया। मुझे एक मां की तरह प्यार दिया मेरे घर को नंदनवन बना दिया। अस्मिता और विद्या बोली इसका पूरा श्रेय मां को जाता है जिस घर में ऐसी मां हो वहां कभी बहू हो ही ना क्योंकि वह सिर्फ कहने  के लिए हमें बेटी बनकर नहीं लाई थी उन्होंने दिल से हमें बेटी माना  भी और तो और हमारे माता-पिता को भी उचित सम्मान दिया अपने बेटों को भी संस्कार दिए की हमारी तरह बहू के

माता-पिता भी तुम्हारे अपने माता-पिता है। उसका पूरा श्रेय मै अपने इन मां पिताजी को देना चाहूंगी।और अस्मिता रो पड़ी। गीता बोली रोना मेरी बच्ची तेरी मां है तेरे साथ और विद्या भी मोहन और गीता के गले लग गई। गीता जी बोली इतना सुंदर मेकअप रोने के लिए किया था क्या जाओ टच अप करो बारात में नाचना नहीं है दोनो मुस्कुराती हुई गीता का मेकअप ठीक कर तैयार होने चली गई।गीता की देवरानी बोली

जीजी आपने अपना सपना पूरा कर दिया।गीता बोली कौन सा बेटी लाने का और कौनसा सब हस पड़े।गीता जी आज बहुत खुश थी दो बेटियां और दो बेटों की मां बन।अब तीनों शॉपिंग पर जाती मूवी प्लान करती। शनिवार इतवार पहले की तरह अस्मिता के पिताजी और विद्या के माता पिता के साथ गुजरता वो भी हमेशा यही कहते हमने मोती दान किए होंगे तभी बेटियों को ऐसा घर मिला। गीता जी कहती ये ईश्वर

का उपहार है जो उन्होंने मेरी बेटी की इच्छा पूरी की।सब खुशी से रहते ना कोई दुराव। ना कोई साजिश और उसी बीच अस्मिता के गर्भवती होने की खबर आई अब तो विद्या और गीता उसे कोई काम ना करने देते।विद्या की मां भी उसका बहुत ध्यान रखती नित समय पर अस्मिता को बेटा हुआ।सब खुश थे क्योंकि आज एक नन्ही खुशी उन सबके रिश्तों को और मजबूत करने आ गई थी।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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