बहुत व्यस्त हूं !! – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

अगले महीने विजय काका के बेटे विपिन की शादी है तुम्हे याद है ना .. ऑफिस से आते ही निशीथ ने प्रियल से कहा जो  कॉलेज से आते ही लैपटॉप लेकर बैठ रही थी।

अगले महीने.!! नो निशीथ मैं बहुत व्यस्त हूं अगले महीने कॉलेज के सेमेस्टर एग्जाम हैं और मैं एग्जाम सुपरिटेंडेंट हूं मेरा जाना असम्भव है तुम चले जाना.. कहती हुई वह लैपटॉप उठाकर तेजी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गई थी।

मैं अकेले कैसे जाऊंगा प्रिया मैंने काका से तुम सबके साथ आने का वादा कर दिया है कैसी बात कर रही हो तुम ।काका के घर पहली शादी है उन्हे बुरा लगेगा..!!निशीथ बोल ही रहा था कि उसका मोबाइल बज उठा.. हां हेलो .. सुहास जी क्या कह रहे हैं आप अगले महीने ही सेमिनार होना है .. अरे… घर में शादी थी जाना जरूरी था…उसकी बात कट गई थी सुहास जी ने उधर से फोन काट दिया।

प्रिया सुनो मुश्किल बढ़ गई अब तो मेरा सेमिनार होना है सुहास का फोन आया था शादी में कैसे जा पाएंगे.. तुम ही कुछ समय निकालो निशीथ ने प्रियल से कहा तो वह झुंझला उठी क्या शादी शादी की रट लगा रखी है तुमने निशीथ देखो लैपटॉप पर कितना जरूरी काम कर रही थी तुमने सब डिस्टर्ब कर दिया।

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मैने डिस्टर्ब नहीं किया लैपटॉप गड़बड़ हो गया है कॉलेज जाते समय ले जाना था शॉप में दे देना था मैंने तुमसे तीन दिन पहले ही कहा था।

मुझे समय कहां मिल पाता है निशीथ पार्थ से कह दो कल ले जायेगा सुधरवा लायेगा… पार्थ यहां आओ .. प्रिया ने पार्थ को आते देख कर आवाज दी लेकिन पार्थ बहुत तेजी में था मम्मा मैं बहुत व्यस्त हूं अभी पंद्रह दिनों तक मुझसे कोई काम नही कहना मैं कहीं नहीं जा सकता क्रिकेट टूर्नामेंट्स तीन दिनों बाद शुरू होने वाले हैं और मैं टीम कप्तान हूं इतना काम करना है कि खाने का समय भी नहीं मिलने वाला.. बोलता हुआ वह  घर से बाहर चला गया जहां उसके मित्र  बाइक लेकर उसका इंतजार कर रहे थे।

 

इस लड़के को तो बात करने का समय नहीं रहता.. जब भी बात करना चाहो सीधे मुंह बात ही नहीं करता है… हमारे घर में समय किसी के पास है ही नहीं…सबका एक ही नारा है अभी मैं बहुत व्यस्त हूं ..!!पता नहीं मैंने काका से किस भावुकता में आकर कह दिया था सपरिवार आऊंगा पिछली बार उनकी बेटी की शादी में भी नही जा पाए थे अब ये अंतिम शादी है उनके घर की निशीथ वास्तव में दुखी हो रहा था।

तुम्हारे ही तो काका है निशीथ क्यों दुखी हो रहे हो …बात कर लो अपनी मुश्किलें बता दो समझ जायेंगे …शगुन भिजवा दो फिर कभी आ जायेंगे बोल दो… प्रियल बहुत सहज स्वर में समाधान सुझा रही थी।

शगुन.!! क्या काका को मुझसे शगुन चाहिए!! मेरी इतनी औकात नहीं हुई कि मैं उनके घर शादी में ना जाकर शगुन भिजवाने की बात कहूं!! वह मेरे शगुन के भूखे नहीं है मेरे स्नेह के भूखे हैं मेरे आने का इंतजार कर रहे हैं..!

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निशीथ उलझ गया था अपने विगत में।

काका ने धीरे धीरे मुझसे बात ही करना बंद कर दिया।गांव से वह शहर आया था आगे की पढ़ाई करने।काका के पास शहर में रह कर ही निशीथ ने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की थी । काका ने कभी भी मां पापा से दूर रहने का अहसास ही नही होने दिया था ।अपने दोनों बच्चों से बढ़कर हमेशा उसका इतना ख्याल रखते थे कि उसे भी पापा की याद नहीं आती थी ।फिर ….नौकरी शादी काम सबने उसे व्यस्तता के भंवर में धकेल दिया और कब धीरे धीरे काका से दूर कर दिया वह समझ ही नही पाया।पहले अक्सर काका से बातचीत होती रहती थी साल में दो बार मिलना भी हो ही जाता था धीरे धीरे वह अपनी व्यस्तता में इस कदर  डूबता चला गया कि काका का रिश्ता भी डूब सा गया ।ग्लानि महसूस कर उठा निशीथ।अब फिर हालात ऐसे  हो गए हैं किस मुंह से काका को मना करूं..! बताना तो पड़ेगा ही उन्होंने हम सबकी पूरी व्यवस्था कर ली होगी।

मां पापा से पूछता हूं उसने सोचा और फोन लगा दिया।

हैलो हां मां पापा से बात करवाओ ना।

अरे तू पिता जी को ही लगा लेता मां कह उठी।

अरे पापा का फोन लग नही रहा था तो मैंने तुम्हे ही लगा लिया मैंने बात बनाते हुए कहा।

कैसे नही लग रहा मुझे फोन मैं तो यहीं बैठा हूं अभी थोड़ी देर पहले तेरे काका से बात हुई है पापा मेरी बात सुनते ही शुरू हो गए।

पापा… मैंने उनकी डांट लम्बी होने से पहले ही टोका।

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हां हां बता तूने कैसे फोन कर लिया आज।छुट्टी है क्या ऑफिस की!! पापा ने फिर से कहा।

क्यों छुट्टी होगी तभी बात करता हूं क्या वैसे नहीं कर सकता.!! मैंने भी पलटवार कर खुद को ही बचाने की चेष्टा की जो सफल भी हुई क्योंकि पीछे से मां की धीमी फटकार सुनाई पड़ गई थी क्या आप भी जब बात करना चाह रहा तो पहले सुन तो लीजिए फिर अपनी भड़ास निकालते रहिएगा..!

हां नीशू बेटा क्या हाल चाल हैं तुम सब ठीक तो हो..!! इस बार पापा का स्नेही स्वर सुनाई दिया।

वो पापा मैं कह रहा था अगले माह काका जी के बेटे की शादी है…मै बात का सिरा उठाने की कोशिश में ही था

हां…हां यही चर्चा अभी हम दोनों कर रहे थे।वह बहुत उत्साह में है  तुमने  सबके साथ आने को कहा है ना सबके ठहरने खाने पीने विदा विदाई हर तरह की आलीशान व्यवस्था करवा रहा है मैंने तो कहा भी कि अरे निशीथ तो तेरा ही लड़का है उससे शादी के काम करवाना उसके स्वागत की तैयारी क्यों करवा रहा है तो हंसने लग गया बोला उन सबके आने से मेरे घर में रौनक हो जायेगी .. सच में बहुत खुश है वह भी और हम भी … बेटा ऐसा कर तुम सब यहीं आ जाओ फिर यहीं से सब साथ चलेंगे….पापा ने बहुत उत्साह से मेरी बात काटते हुए कहा।

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वहां कैसे आ जाओ यहां इतना काम है आपको तो बस फुरसत ही दिखती है इतनी मुश्किल में पड़ गया हूं मैं व्यथित स्वर था मेरा।

क्यों इसमें मुश्किल क्या है बेटा पापा पूछ बैठे।

अरे पापा प्रियल के कॉलेज में एग्जाम है वह एग्जाम सुपरिटेंडेंट है और मेरे भी अर्जेंट सेमिनार है पार्थ के क्रिकेट टूर्नामेंट हैं… बिना रुके मैं एक सांस में बोल गया इस डर से की कहीं पापा बीच में टोक ना दें..!!

मतलब तुम लोग नहीं जाओगे..!! उधर से बेहद ठंडा प्रति प्रश्न था।

लो अपनी मां से बात करो और पापा ने तुरंत फोन मां को पकड़ा दिया था।

हां बेटा क्या हुआ इस बार भी वही …समय नही मिल पाएगा.!! मां का स्वर भी काफी दुखी था।

हां मां पापा से कहिए ना कि काका से बात करके समझा देंगे मैंने हमेशा की तरह मां की शरण में जाना उचित समझा।

नहीं बेटा पापा इस बार नहीं समझा पाएंगे उन्होंने काका से अपने रिश्ते बहुत सहेज कर संभाल कर रखे हैं.. रिश्ते संभालने में बहुत त्याग भी करने पड़ते हैं।कितनी बार तेरी व्यस्तता की सफाई दे देकर बात संभालेंगे… अब तेरा खुद का परिवार है रिश्ते जोड़ने या बिखरने की जवाबदारी और निर्णय भी तेरा खुद का होना चाहिए.. पापा को बीच में मत ला …!!मां ने यथासंभव संयत लहजे में बात समाप्त करते हुए फोन काट दिया था।

मैं स्तब्ध था मां की इस अप्रत्याशित प्रतिक्रिया से।ऐसा लगा मानो मैं उन लोगों से अलग हूं पराया कर दिया मुझे।

मेरी जवाबदारी!!

सही तो कह रही है मां ।रिश्ते संभालने की जवाबदारी मेरी भी तो है।मैं हमेशा काम की व्यस्तता की दुहाई देकर इस जवाबदारी से बच निकलता हूं।मेरे पास उनसे बात करने का भी समय नहीं रहता है!! क्या सच में समय नहीं रहता या फिर मुझे व्यस्त रहने का बहाना ओढ़ने  की आदत पड़ गई है ।क्या रिश्ते एकतरफा निभाए जाते हैं!! अगर पारिवारिक अवसरों पर भी जाने का समय मैं नहीं निकाल सकता .. समय समय पर यूं ही हाल चाल ही लेने के लिए फोन पर बात करने का समय मैं नहीं निकाल सकता ..! तो रिश्ते मात्र औपचारिकता की मिलावट में सिमट ही जायेंगे अपनापन विदीर्ण हो ही जायेगा.!!

प्रियल मैंने अगले महीने की फ्लाइट बुक कर दी है काका के घर मैं शादी में जरूर जाऊंगा आज ही छुट्टी का आवेदन दे दूंगा नही देंगे तो भी मुझे तो जाना ही है इस बार ।वेतन ही कटेगा और क्या होगा….मुझे काका की सयानी अवस्था की भी बहुत चिंता हो रही है प्रिया इस बार नहीं गया तो अगली बार उनसे मुलाकात भी हो पाएगी या नहीं …!निशीथ का भावुक स्वर अनजाने ही प्रिया को भी बहुत भावुक कर गया था।निशीथ का दृढ़ इरादा देख वह भी कुछ सोच में पड़ गई।

निशीथ मेरी और पार्थ की फ्लाइट भी बुक कर लो साथ में प्रियल की आवाज से निशीथ चौंक उठा !

…..बल्कि निशीथ पहले गांव चलने की तैयारी करो मां पापा के साथ इकठ्ठे चलेंगे सब साथ साथ बहुत मजा आयेगा

पर…तुम्हारे कॉलेज के एग्जाम प्रिया!!निशीथ अब भी चकित था।

 

निशीथ ये कॉलेज के एग्जाम तो हर साल होने हैं इन्हें मैनेज करने के लिए कई लोग हैं मैं नहीं करूंगी तो कोई और कर ही लेगा  लेकिन काका के घर की शादी इसी बार होनी है ….! मैं भी छुट्टी का आवेदन दे दूंगी मिल गई तो ठीक वर्ना…. प्रियल ने हंसकर कहा तो निशीथ ने  भी हंसकर वाक्य पूरा कर दिया वरना वेतन ही कटेगा और क्या..!!

हां निशीथ इतनी भी क्या व्यस्तता !जीवन में प्राथमिकता रिश्तों को भी देनी चाहिए…रिश्ते नहीं कटने चाहिए नही बिखरने चाहिए। वैसे भी बहुत लंबे समय से मैने कोई शादी एंजॉय नही की है चलो आज से तैयारी शुरू करनी है सबके लिए कपड़े सामान बहुत सारी शॉपिंग  करनी है प्रियल खुश हो रही थी उत्साहित हो रही थी और निशीथ उसके उत्साह में बह कर शादी में पहुंच काका की खुशी पापा की खुशी मां के उत्साह की कल्पना कर आनंदित हो रहा था।

 

निशीथ पापा को फोन करके बता दो दुखी दुखी बैठे होंगे दोनों प्रिया ने जोर से कहा तो निशीथ जल्दी से फोन लगाने लगा.. हेलो अरे पापा काका से बात कर लीजिए ना ।सुनिए तो पापा काका से कहिएगा कि हम सब आप दोनो के साथ शादी में ठीक तारीख पर पहुंच जाएंगे…!! हां हां सही सुन रहे हैं आप तैयारी कर लीजिए हम लोग पहुंचने वाले है सब साथ में चलेंगे हां हां पार्थ को भी मना लेंगे … हां मां को फोन दीजिए….उत्साहित मां पापा के उत्साह को दिल से अनुभव करता निशीथ आज जिंदगी के असली मतलब को असली आनंद को समझ पा रहा था।

लेखिका : लतिका श्रीवास्तव

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