पिछले नौ दिनों में ही प्रशांत को रिया की वास्तविक खुशी का अहसास हो गया था। अपनी व्यस्तता के बावजूद अब वह उसके घर वापिस आने पर चहकती हुई मिलती थी।
आज सुबह प्रशांत स्वयं भी रिया के उठकर बाथरूम में जाते ही उठ खड़ा हुआ और उसने गैस पर सुबह की चाय चढ़ा दी। किचन में होती बरतनों की आवाज से रिया तुरंत बाथरूम से निकली और किचन की लाइट जलती देखकर वहाँ आई।
प्रशांत के हाथ में दो कपों में चाय देखकर वह प्रसन्नता युक्त आश्चर्य से भर गई। उसे देखकर प्रशांत बोला ‘चलो,आज से हम दोनों एक साथ सुबह की इस पहली चाय से चार्ज होकर मिलजुल कर किचन का काम किया करेंगे।’
रिया भौचक्की सी प्रशांत के पीछ-पीछे चल पड़ी। उसके मस्तिष्क में एकाएक अपने अतीत संग दस दिन पूर्व का समय साकार हो उठा। अपने मम्मी-पापा की लाड़ली रिया सुंदर होने के साथ-साथ पढ़ाई में भी सदैव अव्वल रही है। स्कूल-कालेज की सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बढ़चढ़ कर भाग लेती रही है।आत्मविश्वास तो उसमें कूट- कूट कर भरा है। बातूनी है सो,घर भर में उससे रौनक रहती रही।
फिर, प्रशांत के साथ रिया का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ।पहला माह सगे-संबंधियों की आवभगत,विवाह के पश्चात उन सब को विदा करने, स्थानीय संबंधियों और मित्रों आदि द्वारा उन दोनों को दिए गए लंच अथवा डिनर के निमंत्रणों और फिर अपने सैर-सपाटों मेंं कैसे निकल गया, उसे महसूस ही नहीं हुआ।
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प्रशांत बैंगलोर की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत था। अत: अवकाश समाप्त होते ही रिया और प्रशांत बैंगलोर आ गए। यहाँ आने के पश्चात प्रशांत अपने काम में व्यस्त हो गया।
उसके लंबे अवकाश के कारण उसके अपने विभाग के कुछ प्रोजेक्ट्स का काम रुका हुआ था।अतः उसे इन सबके लिए अब अतिरिक्त समय लगाना पड़ रहा था। वैसे भी इन कंपनियों के कार्य की अवधि सामान्य समय से अधिक ही हुआ करती है।
अतः अब रिया ने प्रशांत के समक्ष अपने आपको भी व्यस्त करने के लिए अपनी नौकरी के संबंध में कुछ संस्थानों में आवेदन देने का विचार रखा, किंतु उसने साफ असहमति प्रकट कर दी। उसका कहना था कि मैं स्त्रियों की नौकरी के सर्वथा खिलाफ रहा हूँ। कामकाजी स्त्रियों के काम के दबाव में मैंने बहुत से घरों में तनाव होते देखे हैं।
तुम तो बस खाओ,पीओ और घर का ध्यान रखो।वैसे भी मैंने अपने परिवार के लिए बहुत सेविंग्स कर रखी हैं।मेरा वर्तमान वेतन भी पर्याप्त से अधिक ही है। अतः मैं अपनी पत्नी को घर से बाहर भेजकर नौकरी करवाने के पक्ष में कतई नहीं हूंगा। नया-नया रिश्ता था। अतः रिया ने समझौता करना ही उचित समझा।
कुछ दिन तो रिया ने अपने आपको घर की इंटीरियर व्यवस्था तथा सजावट,किचन में नए- नए व्यंजन बनाने,खाली समय में टी.वी देखने और फिर शाम होते ही प्रशांत की प्रतीक्षा करने में व्यस्त रखा,
किंतु धीरे-धीरे उसके अंदर एक खालीपन पसरनेे लगा। वह उदास तथा मायूस रहने लगी। फिर,खालीपन की यह मायूसी बेचैनी का रूप लेने लगी। धीरे-धीरे इस बेचैनी से उपजे क्रोध और चिड़चिड़ाहट से प्रशांत भी प्रभावित होने लगा और समय-असमय घर का वातावरण तनावपूर्ण रहने लगा ।
एक दिन यह सोच-सोचकर रिया की मायूसी बढ़ती गई कि मैं सुशिक्षित एवं योग्य हूँ। यदि मैं अपनी योग्यता का उपयोग एवं प्रसार करने के लिए नौकरी करना चाहती हूँ तो इसमें क्या गलत है? यह तो एक पंथ दो की बजाय तीन काज वाला कार्य होगा। वस्तुतः यह मेरी योग्यता के सही
उपयोग और समय के सदुपयोग के साथ-साथ धनोपार्जन का साधन भी होगा। क्या मेरा फैसला गलत है ? क्या मुझे अपने फैसले लेने का कोई अधिकार नहीं है ? क्या मेरा कोई आत्मसम्मान नहीं है ? क्या मुझे प्रशांत की हां के साथ हां मिलाकर अपनी योग्यता को जंग लगने देना चाहिए ? नहीं ! बिल्कुल नहीं ! मुझे इस विषय पर प्रशांत से पुनः बात करनी ही होगी।
रिया अपने और प्रशांत के रिश्ते में कड़वाहट नहीं लाना चाहती थी। वह उसे अपनी नौकरी के लिए मन से तैयार करना चाहती थी।अतः अपने रिश्ते की सुरक्षा और दृढ़ता के लिए रिया ने बड़ी गंभीरता से प्रशांत के समक्ष पुनः अपनी नौकरी का विकल्प रखा। उसके आनाकानी करने पर जब रिया ने कहा कि प्रशांत मैं नहीं जानती
कि नौकरीपेशा स्त्रियों से घर बिखरने का तुम्हारा अनुभव कैसे और कहां से आया, लेकिन एक बात तुम्हें माननी होगी कि इस संबंध में तुमने कुछ ‘पूर्वाग्रह’ अवश्य पाल रखे हैं। नारियां नौकरी केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए ही नहीं करती हैं। इससे उनका ‘आत्मविश्वास’ और ‘अपनी योग्यता से समाज के प्रति दायित्व’ भी जुड़ा है।
इससे उन्हें एक ‘आत्म तुष्टि’ का अहसास होता है। तुम्हारी कार्यावधि कुछ कम होती तो हमारी जीवन शैली भी कुछ अलग होती क्योंकि वह ‘हम दोनों’ का समय होता। तब तुम्हारी बात मानकर संभवतः मुझे अपनी नौकरी का ख्याल न भी आता,
किंतु तुम्हारी व्यस्तता के कारण मेरे पास अपना पर्याप्त समय है। यदि मैं इसका सदुपयोग करना चाहूं तो इसमें क्या हानि है? प्लीज,मेरा मन समझो। भविष्य में तुम्हें यदि मेरी नौकरी से शिकायत हुई तो मुझे तुम्हारा निर्णय सहर्ष स्वीकार होगा।
प्रशांत कुछ क्षण तो शांत बैठा रहा। दरअसल रिया के व्यवहार में मायूसी से उपजी बेचैनी एवं चिड़चिड़ाहट के रूप में परिवर्तनों को तो प्रशांत भी अनुभव कर रहा था।अतः उसने इस शर्त पर कि वह उससे घरेलू कार्यों में उसके सहयोग की उम्मीद न रखे, रिया को नौकरी के लिए सहमति दे दी।
आज रिया को नौकरी पर जाते हुए दसवां दिन था। इतने दिन से अति उत्साह में सुबह वह प्रशांत से पहले उठकर सब तैयारियाँ करने का प्रयास करती, ताकि प्रशांत को किसी दिक्कत का सामना न करना पड़े,
लेकिन प्रशांत देख रहा था कि प्रातः से सायंकाल तक व्यस्त रहने के बावजूद आजकल रिया का चेहरा प्रसन्नता से खूब खिला-खिला रहने लगा था। उसके घर आने का वह बड़ी बेसब्री से इंतजार करती थी और उसके आते ही बड़े उत्साह से उसके साथ अपनी दिनचर्या साझा करती थी।
प्रशांत को रिया की खुशी का अहसास हो गया था। इसीलिए आज वह स्वयं भी रिया के साथ सहयोग करने का निर्णय लेकर सुबह उसके साथ ही उठ खड़ा हुआ था।
‘श्रीमती जी,कैसी लगी मेरे हाथ की बनी चाय ?’ सुनते ही रिया वर्तमान में आई और ‘बहुत से भी बहुत मीठी’ कहकर मुस्कुरा पड़ी। उसकी मुस्कान से प्रशांत का चेहरा भी खिल उठा।
अपने ‘आत्मसम्मान’ के लिए सौहार्दपूर्ण ढंग से लिया गया उसका एक फैसला शीघ्र ही पति के सहयोग के रूप में फलित होने लगा था।
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब।
# एक फैसला आत्मसम्मान के लिए..