बहुरानी चली लेखिका बनने ? – कुमुद मोहन

नैना दोपहर को सारा काम निपटा कर चाहती तो थी कि दो घड़ी कमर सीधी कर ले| पर फिर सोचा घंटे दो घंटे का ये टाइम अगर सोने में चला गया तो कहानी अधूरी रह जाएगी, बस चार दिन ही तो बचे हैं लास्ट डेट के?

महिलाओं की एक प्रतिष्ठित मैगज़ीन में कहानी प्रतियोगिता के बारे में पढ़ कर उसका भी मन भाग लेने को हुआ। दिन भर उसके दिमाग में नये नये टाॅपिक आते जिन पर कहानी या फिक्शन लिखने का उसका बहुत दिनों से मन था।

लिखने को लैपटॉप उठाया ही था कि सासू माँ की तेज़ आवाज़ आई “बहू जी, पसर गयी क्या? या फिर “लैप टाॅप” में घुस गई, सबेरे से गोंड़ों में तेज़ दर्द हो रहा है, सोचा था काम निपटा लोगी तो थोड़ी देर को पैर दबवा लेतीं “मन ना है तो रहने दो”|

“नहीं नहीं माँ जी आती हूँ “कहकर पैर दबवाने का सिलसिला जो शुरू हुआ वो पूरे घंटे भर चला।

उसके बाद माँ जी की चाय,कपड़े समेटना, रात के खाने की तैयारी, पति का आफ़िस से लौट कर उनकी टहलगीरी में सब कुछ निपटाते रात के दस बज जाते।

कभी रात को जल्दी फ़्री हो जाती, लिखने बैठती तो पति देव आकर “लैपटॉप एक तरफ़ रख देते यह कहकर कि थोड़ा टाइम हमें भी दे दिया करो “क्या हर वक्त लिखने पढ़ने में लगी रहती हो, मेरे पीछे करती क्या हो”

नैना अपना सा मुंह लेकर रह जाती। वह क्या बताए उसके पीछे वह क्या करती है।

माँ जी की आदत कुछ ऐसी थी कि अगर वो नैना को थोड़ी देर के लिए भी खाली देख लेती तो कोई ना कोई काम निकाल देतीं।और नहीं तो नौकर की चौकीदारी में लगा देती कि कहीं वो दूध उबालते हुए दूध ना पी ले,या डस्टिंग करते हुए नाश्ते के डिब्बे ना खखोर ले।

नौकर का होना ना होना नैना के लिए बराबर था, क्योंकि माँ जी चाहतीं थीं कि सारा काम नैना ही करे।



माँ जी हर मिलने जुलने वालों से नैना की शिकायत करती,”बहुरिया का दिल घर के काम धंधों में ना लगता, दिन भर “लैपटॉप “ में घुसी रहै।

इतवार होता तो पति के घर में रहने की वजह से दो लाइनें भी लिख सकने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

नैना एक एक दिन टेंशन में थी, कि वो कहानी पूरी कर सकेगी या नहीं?

तभी लगता था भगवान ने नैना की सुन ली,नैना के पति को ऑफिस के सिलसिले में दो दिन के लिए बाहर जाना पड़ा,नैना ने सोचा दो दिन में वो अपनी कहानी जरूर पूरी कर लेगी।

रात की ट्रेन से पतिदेव के जाने के बाद सारा काम निपटा कर नैना  कमरा बंद करके आराम की सांस लेकर  लिखने बैठी ।

कुछ लाइनें लिख भी न पाई थी कि सुना माँ जी दरवाज़ा खटखटा रहीं थीं। नैना डर गई क्या हो गया?

माँ जी कमर पर हाथ धरे खड़ी थी बोली “क्यूँ बिजली फूक रही है, सो जा, नहीं तो सबेरे देर तक पड़ी रहेगी।और खट् से लाइट बुझा कर चल दीं।

माँ जी तो अपनी नींद जब तब सोकर पूरी कर लेतीं थी।

खैर थोड़ी देर तक नैना ने लाइट बंद रखी, जब देखा मां जी के खर्राटों की आवाज़ आ रही है, नैना ने झटपट लिखना शुरू कर दिया।

उन दो दिनों में नैना ने जैसे तैसे कहानी पूरी कर के भेज दी।

कुछ दिनों बाद मैसेज आया नैना की कहानी को पाँच हज़ार रूपये का पहला अवार्ड मिला था।

खुश तो पतिदेव भी थे पर शो कैसे करते।

और माँ जी वो बोली टाइम निकाल के लिख लिया करो।

नैना ने मन ही मन में कहा “आप थोड़ी छुट्टी दें तो लिख लिया करूँ”।

दोस्तों!

ऐसा वक्त हम लिखना चाहने वालों की जिन्दगी में अक्सर आता है पर मेरा मानना है,

जिस को बड़ी शिद्दत से चाहो,वो काम ज़रूर पूरा होता है ।आप सबकी लेखनी भी अनवरत चलती रहे यही कामना है। हम सब एक दूसरे को पढ़ते रहें सराहते रहें ।

आपके कमेन्ट्स-लाइक का इतज़ार रहेगा। धन्यवाद।

कुमुद मोहन

 

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