बहू ये रख लो काम आएँगे – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ माँ तब से देख रही हूँ आप कभी इस दराज मे तो कभी उस दराज में.. तो तो कभी अलमारियों में पेपर के नीचे , तो अपनी साड़ियों के तह में तब से कुछ खोजने में व्यस्त है …. आख़िर बात क्या है? निशिता सासु माँ सुमिता जी से पूछी

“ यह एक राज की बात है…. मैं तुम्हें अभी नहीं बता सकती हूँ ।” कहते हुए सुमिता जी ने एक पुरानी साड़ी निकाली और उसे जैसे ही झाड़ा कुछ पैसे निकल कर फ़र्श पर गिर पड़े

निशिता पैसे उठाते हुए सासु माँ को दिखाते हुए बोली ,“ माँ ये पैसे …?”

“ आख़िर मिल ही गए … कब से इसे ही खोज रही थी…. आजकल ध्यान ही नहीं रहता कौन सी चीज़ कहाँ रख दी है।” कहते हुए सुमिता जी साड़ी तह कर अलमारी में रख दी

निशिता पैसे सुमिता जी को देते हुए बोली,” आपको पैसे की ज़रूरत थी तो रितेश से माँग लेती इतना परेशान होने की क्या ही ज़रूरत थी ।”

 “ अच्छा चल ला ये पैसे इधर दे।” कहते हुए सुमिता जी निशिता से पैसे लेकर गिनने लगी… उसमें से कुछ पैसे निकाल कर निशिता को देते हुए बोली,“ बहू किसी दिन बाज़ार चली जाना… एक सोने का कान का और एक अच्छी सी साड़ी या सलवार सूट ला देना।”

“ वो सब क्यों माँ… परी के लिए लाना है क्या?” निशिता ने पूछा

“ हाँ बहू अब मेरी एक ही तो भतीजी है उसकी शादी में जाऊँगी तो बुआ होने के नाते सोने का कुछ तो देना ही होगा ।” सुमिता जी ने कहा

“ हाँ माँ पर हम ले आएँगे ना … आप ये पैसे रखिए ।” कहते हुए निशिता पैसे सुमिता जी को देने लगी

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” बहू …कभी कभी जो राज हम अपनों से बस इसलिए छिपा लेते कि उन्हें पता चला तो कितना बुरा लगेगा बस वैसे ही तुम भी ये राज रितेश से छिपा लेना….और जो मैं कह रही हूँ वो ध्यान से सुनो…. आज सुबह मैंने तुम दोनों की बातें सुन ली थी….रितेश के पास पैसे हैं पर ये ममेरी बहन की अचानक शादी की बात सुन कर वो घबरा गया है… क्योंकि उसको पता है माँ को पहले से ही बहुत मन था परी की शादी में सोने का कुछ गहना दे…

पहले से लेकर इसलिए नहीं रख रही थी कहीं डिज़ाइन पुराना ना हो जाए…..फिर हम सबके लिए कपड़े और उधर जाने के लिए कुछ सामान ख़रीदना होगा फिर आने जाने में खर्च ये सब देख कर वो परेशान हो रहा था…. तब तुमने कहा हम बस माँ को भेज देंगे…. हम कुछ बहाना बना लेंगे ….बहू तुम लोगों को परेशानी में देख कर मैं शादी में जाऊँगी ये कैसे सोच लिया… जाएँगे तो सब साथ में….बस अब तुम परी को जो देना है वो लेकर आ जाओ… और रितेश हम सबके लिए एक एक कपड़ा ले आएगा…. फिर आने जाने का खर्च भी तो होगा… उतना रितेश कर लेगा।” सुमिता जी निशिता को समझाते हुए बोली

 “ पर माँ ये पैसे…. रितेश पूछेंगे तो सही।” निशिता इतने पैसे देख आश्चर्य करती पूछी

“ ये पैसे मैं कब से जमा करती जा रही थी वो गाँव के खेतों से जो भी आता तुम लोग को कहाँ कुछ पता है कितना आता क्या आता वो सब जमा ही तो हो रहे थे….वैसे भी मुझे खर्च करने की ज़रूरत ही कब पड़ती तुम लोग सब पूरा कर देते हो… बस ये ऐसे ही रखे रहते…और मेरी आदत ऐसी कहीं भी रख कर भूल जाती बस वही खोजने में लगी थी…. पता भी तो नहीं था इधर उधर रख कर इतने जमा हो गए होंगे ।” सुमिता जी ने कहा

“ पर माँ ये आपके पैसे है इससे कैसे हम …।” निशिता कुछ सोचते हुए बोली

“ मेरे पैसे है मतलब…. पगली ये हमारे पैसे है…. जब ज़रूरत में ये काम ही ना आए तो जमा करने का क्या फ़ायदा…. वैसे मुझे शुरू से ही आदत रही है जब भी तेरे ससुर जी पैसे देते थे मैं पहले से ही उसमें से कुछ अलग रख देती थी बचत भी हो जाता और जो कभी अचानक ज़रूरत पड़े तो काम भी आ जाता… तेरे ससुर जी के देहांत के समय किसी के आगे हाथ ना पसारी तेरी सास …

रखे हुए थे इतने पैसे जो उनके ही काम क्रिया में काम आए… रितेश तब नौकरी कहाँ करता था….मैं तो कहती हूँ बहू तुम भी कुछ पैसे अलग रखा करो… जब अचानक लगे ज़्यादा पैसे खर्च होने वाले तुम अपनी तरफ़ से मदद कर दोगी तो रितेश को भी अच्छा लगेगा… ।” सुमिता जी बहू को समझाते हुए बोली

 “ आप सही कह रही है माँ सच में ये छिपाने का राज हर औरत को पता होना चाहिये और जब ज़रूरत पर पैसे निकाल कर दे तो कह सकते…. ये राज की बात है क्यों बताए आप को … आप तो बस काम पूरा कीजिए … अब से मैं यही करूँगी ।” निशिता ने कहा

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निशिता जाकर परी के लिए सूट और सोने के कान के छोटे झुमके ले आई…. रितेश से कहा,“ ये हम औरतें का पुराना राज है जो हम ज़रूरत पड़ने पर मदद कर पाते है… बस अब तुम बाकी का देख लेना…।”

रितेश को भी राहत मिला… क्योंकि अचानक से सब कुछ अरेंज करना उसके लिए मुश्किल हो रहा था ।

सुमिता जी ने सूझबूझ से बात सँभाल कर बेटे की भी मदद कर दी और बहू को भी एक राज की बात बताते हुए बचत के गुर सिखा दिए।

दोस्तों आप बचत कैसे करती है…. पति को सब बता कर या राज रख कर… अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर व्यक्त करें ।

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धन्यवाद

 लेखिका :  रश्मि प्रकाश

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