बहू ये लड्डू भेजें है तेरी माँ ने – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

” बहू ये तेरी माँ ने क्या भिजवाया है तेरे साथ… लड्डुओं का डिब्बा तो इनमें से एक भी नहीं है…माँ बेटी दोनों झूठ बोलने में माहिर हैं… कैसे कह रही थी तेरी माँ समधन जी यहाँ के खालिस घी के मावा लड्डू बनवा कर भिजवा रहे हैं बेटी के साथ आपको जहाँ बाँटना हो बाँट दीजिएगा … अब क्या हम ये बाटेंगे?” सुनंदा जी ने राशि से कहा

राशि जल्दी से दौड़ कर आई उधर से उसका छोटा भाई भी साथ में आकर देखा तो दोनों एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे….

” ये कैसे हुआ रितेश…पापा ने तो लड्डुओं का भारी डिब्बा ही बस की सीट के नीचे रखा था फिर ये चिप्स पापड़ कहाँ से आ गए… कही माँ ने ये भी तो नहीं बाँध दिए थे और हम लड्डुओं का डिब्बा घर ही भूल आए… जल्दी से फोन कर पता करो ।” राशि घबराते हुए बोली जानती थी सासु माँ सुनाने का एक मौक़ा जाने नहीं देंगी

 ” माँ तुमने लड्डुओं का पैक किया डिब्बा दिया था ना वो तो यहाँ आया ही नहीं कहीं वहीं तो नहीं रह गया.. जरा देखो तो ।” रितेश ने माँ सुमिता जी से पूछा

वीरेन जी भी फ़ोन पर आवाज़ सुन कर बोले,“ अरे बेटा तुम्हारे ही सीट के आगे वाली सीट के नीचे तो वो डिब्बा रखा था… तुम बार बार बोल भी रहे थे पापा बहुत भारी है कैसे उठेगा… अगर वहाँ नहीं है तो तुम लोग फिर लगता है बस में ही छोड़ दिए ।”

ये सब बात सुनंदा जी और राशि को भी सुनाने के ध्येय से रितेश ने स्पीकर ऑन कर दिया था

“ लो भला लड्डू आए नहीं और सब झूठ बोले जा रहे हैं ।” सुनंदा जी हाथ नचाते हुए बोली

“ अब बहू मायके से पहली बार ससुराल आई है और मैं ये चिप्स बाँटू…. हे भगवान जाने किस घर में बेटा ब्याह दिया जिन्हें जरा भी शऊर नहीं बेटी की विदाई में लड्डुओं की जगह ये पापड़ चिप्स भेज दिए ।” सुनंदा जी हंगामा करने लगी

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“ राशि को कुछ ना सूझा तो भाई को बाहर बाज़ार भेज कर जल्दी से पाँच किलो लड्डू लेकर आने बोली।

राशि अपने कमरे में जाकर सफर के कपड़े बदल घर की सूती साड़ी डाल रसोई में चली गई… पर दिमाग़ अभी भी वही पर अटका पड़ा था आखिर वो डिब्बा गया कहाँ?

माँ ने मिठाई वाले से कह कर स्पेशल लड्डू बनवाएँ थे बेटी के ससुराल भेजना है बोल बोल कर… मिठाई वाले चचा ने भी पाँच किलो के डिब्बे तैयार कर एक बड़े डिब्बे में सब को डालकर बाँध कर पैक कर दिया था…. सामान बहुत ज़्यादा था तो कुछ बस की डिक्की में रखवाया गया और लड्डुओं का डिब्बा राशि और रितेश की सीट के नीचे नहीं बल्कि उनके आगे की सीट के नीचे रखा गया ताकि वो देखते रहे….

 तभी राशि को याद आया…. अरे एक मियाँ बीबी आकर बैठे थे उस सीट पर उनके पास भी वैसा ही एक डिब्बा था और उन्होंने अपनी सीट के नीचे लड्डुओं के डिब्बे के बराबर में रख दिया था वो लोग दो स्टॉप पहले उतर गए थे…. राशि और रितेश ने बराबर से देखा था डिब्बा तो सीट के नीचे ही था… मतलब लड्डुओं का डिब्बा वो ले गए और उनके पापड़ चिप्स हमारे पास आ गया…. हे भगवान इतना नज़र रखने के बाद भी…..

राशि को समझ नहीं आ रहा था सासु माँ से ये सब कहे तो कहे कैसे वो तो सच मानेगी नहीं …

रितेश जब लड्डू लेकर आ गया तो सुनंदा जी को थोड़ी ख़ुशी तो हुई पर ये भी साथ साथ सुना ही दी कि लोग समझ ही जाएँगे यहाँ के लड्डू हैं….

शाम को जब निकुंज ऑफिस से आया राशि ने उसे सारी बातें बताते हुए कहा,“मैं तो बड़ी थी मुझे ध्यान देना चाहिए था रितेश तो छोटा है उसे क्या ही बोलूँ पर ये एक जैसे डिब्बे की वजह से गड़बड़ी हो गई आप माँ को समझा दो… मेरे माता-पिता ने उनके लिए अच्छे वाले ही लड्डू बनवा कर भेजे थे।”

निकुंज सुन कर पहले खूब हँसा और बोला,“ जिसके घर लड्डू गए होंगे वो ख़ुश होगा अरे वाह खालिस घी के मेवा लड्डू वो भी इन पापड़ चिप्स के बदले….।”

“ तुम भी… हटो… पता था सुनाओगे ही।” राशि नाराज़ होते हुए बोली तो निकुंज ने उसे तसल्ली देते हुए कहा माँ को समझा दूँगा

 दूसरे दिन दोपहर को उसी बस वाले का फ़ोन आया,“ राशि बिटिया तेरे पापा ने तेरे लिए लड्डू भिजवाएँ है किसी को भेज कर मँगवा ले… कह रहे थे कल किसी से तुम्हारा सामान अदला बदली हो गया….. अब खाने की चीज देख कर कोई खाएगा ही ।” कह कर वो भी हँसने लगा

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रितेश को आज बस पकड़ने जाना ही था इसलिए निकुंज घर पर ही था….राशि ने निकुंज से कह दिया पापा ने लड्डू भिजवाएँ है ….रितेश उसी बस से वापस जाएगा आप उसे छोड़ते हुए डिब्बा ले आना।

लड्डुओं को देख कर सुनंदा जी ने कहा,“ हाँ ये लग रहे लड्डू… जब तुम्हारे पापा भिजवा ही रहे थे तो यहाँ से मँगवाने की क्या ही ज़रूरत थी….. अच्छा हुआ जो कल ना भिजवाएँ….चलो अब ये भी आ गए है तो दोनों मिलाकर दे दूँगी मोहल्ले वाले भी खुश हो जाएँगे ।”

राशि मन ही मन सोच रही थी इन लड्डुओं के चक्कर में मेरी और पापा दोनों की जेब ढीली करवा दिया अब से जब भी सफ़र करूँगी अपनी चीजों की निगरानी सही से करूँगी और उनपर कोई ऐसी निशानी ज़रूर लगा दूँगी ताकि दूसरे भी उठाए तो समझ जाए ये मेरा नहीं किसी और का है ।

दोस्तों ये एक सच्ची घटना है…. जिसे थोड़ा कहानी में रूपांतरित कर दिया है पर जब ये वाक़या हुआ और जिसने भी सुना सबने यही कहा,“ डिब्बा देख कर वो ख़ुश तो बहुत होगा…. माना मेहनत के पापड़ चिप्स थे वो फिर से बन जाएँगे पर वो स्वादिष्ट लड्डुओं का स्वाद वो ज़िन्दगी भर याद रखेगा क्योंकि वो स्पेशल कह कर जो बनवाएँ गए थे।“

 

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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