“सुनो मुझे कुछ पैसे चाहिए पीहू की किताबे आनी है”| कहते हुए विभा ने अपने पति प्रवीण को ब्रेकफास्ट सर्व किया|
खर्चे की बात सुनकर प्रवीण का मुंह बन गया और वह फटाफट अपना ब्रेकफास्ट फिनिश करने लगा- “तुम्हें हर महीने खर्चे के लिए पैसे देता हूं | मगर उसके बावजूद भी तुम हर वक्त पैसे मांगती रहती हो, अभी 1 तारीख को ही मैंने तुम्हें ₹25000 दिए थे उसी में से पीहू की किताबें भी ले आओ|”
“मगर प्रवीण वह पैसे तो तुमने महीने के घर खर्च के लिए दिए थे, उसमें भी कुछ ही रुपए बाकी है| अभी दूध वाले और किराने का वाले को भी पैसे देने के लिए पूरे नहीं होंगे फिर उसमें से पीहू की किताब कहां से लाऊं|” विभा ने कहा|
“तुम तो आजकल हाथ खोल कर पैसे खर्च करने लगी हो | जरा कमाने जाओगी तब मालूम पड़ेगा कि पैसे कमाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है| तुम्हारा क्या तुम तो कुछ भी काम हो पैसे मांग लेती हो| जब तुम्हें महीने के खर्च के लिए पैसे दिए थे ,तो उस में से दूध वाले और किराने का हिसाब क्यों नहीं होगा| प्रवीण ने सवाल किया|
प्रवीण की बातें विभा की चुभ गई-” तुम तो ऐसे कह रहे हो ,जैसे मैं तुम्हारे पैसों पैसे पैसे बचा कर अपने मायके भेज देती हूं |तुम्हारे घर परिवार के खर्चे की पूरे नहीं होते हैं तो मैं क्या करूं| इस महीने पापा जी के तबीयत ठीक नहीं थी, तब उसी घर खर्च के पैसे में से मैंने तुम्हें दवाई और जांच कराने के लिए ₹5000 दिए थे|
“यह तो सिर्फ इस महीने की बात है ,मगर आजकल हर महीने तुम्हारे पास एक्स्ट्रा खर्च की लिस्ट तैयार रहती है| यह तो समझो किसी किसी की कमाई ही ₹25000 महीना होती है| यदि वह लोग भी तुम्हारी तरह खर्च करने लगे तो बचत के लिए कुछ नहीं बचेगा| पहले भी तो तू ₹25000 में से खर्च करने के बाद बचा लेती थी ,मगर अब तुम्हें रुपए ही पूरे नहीं पड़ते|” कहते हुए प्रवीण विभा को समझाने लगा|
विभा के पास प्रवीण की इस बात का जबाब भली-भांति था ,वह प्रवीण को समझाना चाहती थी,की घर मे पहले 3 लोग थे, वो प्रवीण ओर पीहू | मगर पिछले साल भर से सास ससुर भी यही शहर आए हुए हैं, उनकी दवाइयां और दूसरे खर्चा भी तो है |बेटी भी बड़ी हो गई है | पिछले 2 सालों से स्कूल नहीं जाना था ,तो आने जाने का खर्चा और दूसरे एक्टिविटी का खर्चा बच रहा था |मगर अब सब कुछ करना पड़ रहा है |सामने ही सास- ससुर बैठे थे उनके सामने वह कुछ भी नहीं बोल पाई और उनकी ओर देखने लगी|
उसकी सास विभा का चेहरा देखकर समझ गई, उसने आंखों से विभा को शांत रहने का इशारा किया|
फिर अपने बेटे की ओर देख कर बोली -बेटा विभा तेरी अर्धांगिनी है ,यानी कि तेरा आधा अंग| तुम दोनों की जिम्मेदारियां साझी है| यदि तुम घर परिवार के लिए पैसे कमाते हो तो विभा उन पैसे का सदुपयोग कर कर घर को भली भांति संचालित करती है| तुम इस तरह पैसों के लिए उसे समझाइश क्यों दे रहे हो क्योंकि गृहणी का तो पहला काम बचत करना होता है और पिछले 1 साल से जब से यहां आई हूं| विभा को कभी फिजूलखर्ची करते नहीं देखा|”
मां की बात सुनकर प्रवीण को गुस्सा और तेज हो गया- मां आप फिजूलखर्ची की बात करती हो| यह तो अपने हिसाब किताब में इतने लापरवाह है ,कि आज यदि इस से पूछूंगा कि 25000 का हिसाब दो तो इसके पास कोई हिसाब नहीं होगा| 10 बार कहा है जो भी खर्चा करो एक डायरी में लिख कर चलो| ताकि हिसाब मिलाने में आसानी रहे हिसाब देखकर फिजूलखर्ची भी नहीं हो सकती|”
प्रवीण की बातें सुनकर मां को समझ में आ गया था कि इसे समझाना बेकार है |वह भी प्रवीण की भाषा बोलने लगी- “विभा मेरा बेटा सही कह रहा है तुम्हारे पास तो कोई हिसाब-किताब ही नहीं रहता| वह बात अलग है कि पिछले 1 सालों से हम लोग यहां हैं तो हमारी दवाइयां, फल और दूसरे खर्चे बढ़ गए हैं| बच्चे भी बड़े हो गए हैं उनकी स्कूल की एक्टिविटी और क्लासेस सब में पैसे लगते हैं |मगर फिर भी तुम्हें घर देखकर खर्चा करना चाहिए| अगले महीने से तुम प्रवीण से महीने के खर्च के पैसे नहीं लोगी|”
विभा -“माँ जी यदि पैसे नहीं लूंगी तो घर खर्च कैसे चलेगा|”
मां विभा की और देख कर मुस्कुराने लगी-” घर का खर्च प्रवीण देखेगा| वह तुमसे बेहतर तरीके से घर खर्च चला सकता है तुम्हें किसी भी खर्चे की जरूरत हो तो प्रवीण से पैसे मांग लेना|”
प्रवीण को समझ ही नहीं आया कि उसकी मां उसे समझाने के लिए विभा के साथ मिलकर खेल रही थी|
प्रवीण- “अभी तो तुम ये ₹10000 महीने का घर चलाओ| और अगले महीने देखना मैं कैसे पूरे ₹25000 में अच्छी तरह घर चला लेता हूं|”
महीना शुरू ही हुआ था कि प्रवीण घर खर्च के नाम पर परेशान होने लगा था कभी यह खर्च तो कभी वह खर्च| ऊपर से विभा को नीचा दिखाने की सनक महंगे से महंगे फल ,सब्जी भी आने लगे| दो-चार दिन तक तो भली भांति चलता रहा ,मगर फिर प्रवीण को खर्चे के नाम पर चक्कर आने लगे थे| 10 दिन में ही वो आधे से ज्यादा पैसे खर्च कर चुका था|
अचानक मां के डॉक्टर ने कुछ जरूरी जांच कराने का कह दिया। तो डॉक्टर का खर्च और मां के चेकअप में पूरे पैसे खत्म हो गए थे और अभी 15 दिन बाकी थे|
प्रवीण को अपनी गलती का एहसास हो गया था|
वह विभा से माफी मांगने लगा-” सॉरी विभा मैं तुम्हें गलत समझ रहा था| मगर तुम तो भली-भांति घर चला लेती हो ,एक्स्ट्रा पैसे कभी कभार ही मांगती हो| मगर मुझे देखो लगभग ₹30000 खत्म कर चुका हू और अभी 15 दिन के खर्चे बाकी है| तुम सही कह रही थी, 25000 में घर-घर चलाना मुश्किल हो रहा होगा|”
मां जो दोनों की बातें सुन रही थी मुस्कुरा कर सामने आई और बोली- “अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे| तुम्हें पता चला ना हम औरतों के लिए घर चलाना कितना मुश्किल होता है ,तुम मर्द केवल पैसे कमा कर लेकर आते हो घर हम औरतें बनाते हैं|”
मां की बात सुनकर प्रवीण शर्मिंदा हो गया और बोला- जिसका काम उसी को साजे |आज के बाद मैं कभी तुम्हारे घर खर्च के मामले में इंटरफेयर नहीं करूंगा|”
मां-” इंटरफेयर तो नहीं करोगे मगर यदि एक्स्ट्रा खर्च होगा उसका क्या?”
प्रवीण-” मां आप एक्स्ट्रा खर्च की बात कर रही हो, मैं तो विभा को गिने में पैसे देने के बजाय, अपना एटीएम कार्ड ही दे रहा हूं| मुझे पता है वह उसका दुरुपयोग नहीं करेगी|”
मां विभा की ओर देखने लगी-” मगर फिर हिसाब किताब का क्या? मेरी बहु तो हिसाब किताब की कच्ची है।”
“मां और कितना शर्मिंदा करोगी | मुझे घर खर्च का हिसाब नही चाहिए|” प्रवीण की बात सुनकर विभा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई |
वह अपने साथ के गले लग कर बोली- थैंक यू मां|”