बहू, कल सुबह बहुत काम रहेगा, कल तेरी ननद आ रही है, थोड़ा समय से पहले उठ जाना ताकि तन्वी के आने तक सारा काम हो जायेगा, तो हम आराम से साथ में बैठ जायेंगे, ये कहकर साधना जी अपने कमरे में चली आई।
नेहा भी सोने जा रही थी, पर अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो पहले नींद ले या कल सवेरे क्या बनाया जाएं, ये सोचे, वो इसी उधेड़बुन में थी,और रसोई में चली गई, ताकि सामान देखकर दिमाग चल जाएं कि कल सुबह क्या बनाना है?
वो अंगड़ाई लेते हुए रसोई में गई तो देखा वहां एक
भगोने में मूंग दाल भीगी हुई है, और दूसरे में मम्मी जी ने दही कपड़े में बांधकर लटका रखा है, शायद वो श्रीखंड बनायेगी, मम्मी जी तो उसके उठने के दो घंटे पहले ही उठ जाती है और हमेशा की तरह वो हंस दी, वो भी बेकार ही चिंता कर रही थी,।
फिर मम्मी जी ने जल्दी उठने को कहा है, नाशते में क्या बनाना है, ये तो नहीं कहा, और नेहा आराम से जाकर सो गई।
सुबह उसके उठने से पहले साधना जी ने दाल पीस दी ताकि गर्मागर्म चीले बनाये जा सकें, और हरे धनिए की चटनी बनाकर रख दी, वो जब तक चाय का काम कर रही थी, तब तक साधना जी ने श्रीखंड बनाकर फ्रिज में रख दिया, तन्वी को मूंगदाल चीले और श्रीखंड दोनों ही बड़े पसंद है।
नेहा ने सास-ससुर जी को चाय दी और बाकी साफ-सफाई करने में लग गई, आज सन्डे था तो मनीष भी सो रहे थे, काम होने के बाद उसने मनीष को जगाना चाहा कि तन्वी आ रही है, स्टेशन पर लेने जाइये, लेकिन तभी फोन बजा, भाभी मै खुद कैब करके आ जाऊंगी, आज संडे है, भैया की नींद खराब मत करना, छहो दिन काम में लगे रहते हैं, इतनी भागादौड़ी करते हैं, एक संडे को तो आराम करने देना।
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नेहा ने हामी भरी और उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई, ये कैसी ननद है , जिसके आने से घर में खुशियां फैल गई है, एक बार भी नेहा के माथे पर शिकन नहीं आई, मनीष भी सूकून की नींद सो रहे हैं, उन्हें भी पता होगा कि उनकी छोटी बहन उनकी नींद खराब नहीं करेगी, वरना नोएडा से दिल्ली रेलवे स्टेशन लेने जाओ तो एक घंटा पहले निकलो, वहां पहुंचकर इंतजार करो, ट्रेन कभी देरी से भी आती है तो वहीं बैठे रहो, फिर घर लेकर आओ, पूरे तीन घंटे चाहिए, पर तन्वी ने कह दिया कि वो कैब से आ जायेगी, तो घर में किसी को जरा सा भी तनाव नहीं है।
नेहा की शादी अभी छह महीने पहले ही मनीष के साथ हुई थी, शादी के अगले दिन तन्वी के ससुर जी की अचानक मृत्यु हो गई थी तो तन्वी को ससुराल जाना पड़ा तो वो अपनी भाभी के साथ रह भी नहीं पाई थी, अब जाकर उसे समय मिला तो तन्वी अपने मायके भाभी के साथ रहने आ रही थी।
आठ बजते ही घर की घंटी बजती है, तन्वी के आते ही साधना जी और कैलाश जी अपनी बेटी को देखते ही खिल जाते हैं, मनीष अपने कमरे में ही सो रहा था, तन्वी ने चुपचाप पर्स रखा और अपनी भाभी को गले लगा लिया, भैया को आज सोने दो, मै तो अपनी भाभी से बात करूंगी, नेहा रसोई में चाय बनाने चली गई, सबने साथ में चाय पी, फिर नाशते का समय हो गया, तन्वी नहाने चली गई, साधना जी ने फटाफट चीले उतारने शुरू किए, नेहा को प्लेट लगाने को बोला।
नेहा ने नाश्ता लगा दिया तब तक तन्वी भी आ गई, तब तक नौ बज गये थे, बहुत भूख लग रही है मम्मी, अब तो खाने को दे दो, हां ये कहते हुए साधना जी ने तन्वी के साथ नेहा को बैठा दिया, तुम दोनों साथ में बैठकर खा लो, अभी मनीष तो दस बजे पहले उठेगा नहीं, और तेरे पापा ने चाय पी ली तो वो अभी खायेंगे नहीं, मै उनके साथ ही बाद में खा लूंगी।
ये सुनकर नेहा को आश्चर्य हुआ, सासू मां बनायेगी और वो ननद के साथ खायेगी, उसने तो आज तक ऐसा ना सुना और ना ही देखा, भाभी आपका ध्यान किधर है? ये कहकर पहला कौर तोड़कर तन्वी ने नेहा के मुंह में दे दिया।
मम्मी के हाथ के चीले, कितने स्वादिष्ट है, और तन्वी फिर खुद भी खाने लगी, दोनों ने नाश्ता किया था, इतनी देर में मनीष उठकर आ गया।
मै मनीष के लिए चाय बनाऊंगी, ये कहकर तन्वी रसोई में चली गई, दीदी आप इनके साथ बैठिए मै बना देती हूं, नेहा ने कहा।
ये सुनकर तन्वी हंसने लगी, आपके हाथ की तो चाय भाई रोज ही पीता है, आज मै बनाऊंगी, और आप भी पीकर देखना, ये कहकर तन्वी चाय बनाने लगी।
थोड़ी देर बाद सब बैठकर चाय पी रहे थे, उसके बाद नेहा ने सास-ससुर के लिए चीले उतार दिए, तन्वी ने परोसकर फटाफट रसोई समेट दी, नेहा ने बर्तन धो लिए।
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मम्मी जी, दोपहर के खाने में क्या बनाना है? मै तैयारी शुरू कर देती हूं, ये सुनकर तन्वी हंसने लगी, भाभी दोपहर में हैवी लंच बाहर लेंगे और शाम को हल्का-फुल्का चाट बाजार से खाकर आयेंगे, आज भाई की जेब ढीली करानी है, आप तो आइये हम सब बैठकर बातें करते हैं।
नेहा के लिए ये सब नया था, क्योंकि उसने तो अपने मायके में देखा था कि जब उसकी बुआ आती थी तो मम्मी को जरा भी समय नहीं मिलता था, दादी दिन भर मम्मी को काम में लगाएं रखती थी, मम्मी सबको खिलाकर अन्त में खाती थी और उसे याद ही नहीं है कि कभी उसकी मम्मी उसकी बुआ के साथ कभी दो घड़ी बैठी हो, पापा बुआ को स्टेशन लेने नहीं जाते थे तो दादी एक लगा देती थी, जब बुआ आती थी तो वो अपना ननद पना दिखाती थी, एक काम को हाथ नहीं लगाती थी।
क्या सोच रही हो बहू? साधना जी ने कहा तो नेहा चुप थी, पर साधना जी उसकी मनःस्थिति को समझ गई, नेहा इतनी परेशान मत हो, जैसे तन्वी मेरी बेटी है, वैसे ही तुझे भी बेटी ही माना है, जब एक बेटी गरम नाश्ता कर रही है तो दूसरी भी उसका साथ देगी ना, सब कुछ आपकी सोच पर निर्भर करता है।
नेहा, सिर्फ तेरी ननद ही नहीं आई है, मेरी बेटी भी आई है, जब एक मां बेटी की पसंद की चीज बनायेगी, बेटी के लाड़ करेगी, तो बहू समान बेटी के भी तो लाड़ करेगी।
जब एक बेटी मायके आती है तो उसकी सारी जिम्मेदारी कैसे बहू पर डाल सकती हूं? बहू भी तो नई आई है, बहू को तो उसकी पसंद-नापसंद के बारे में कुछ पता भी नहीं होता है, धीरे-धीरे सब जान जायेगी, फिर तन्वी ने ये सब अपनी बुआ को करते हुए देखा है, मेरी ननद बहुत अच्छी थी, आज होती तो तुझसे मिलकर खुश होती पर एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनके वही गुण तन्वी में आ गये है। अब मेरी एक बेटी तो मेरे साथ नहीं रहती है, पर जो दूसरी बेटी घर में आई है, उसे भी तो भरपूर प्यार मिलना चाहिए।
तुझे अपनी ननद से खौफ खाने की कोई जरूरत नहीं है, वो तो तुझे छोटी बहन ही मानती है, तन्वी कहती थी, मम्मी मनीष की पत्नी और मै बहनें बनकर रहेंगे, ननद भाभी नहीं, तन्वी अपना यही रिश्ता ईमानदारी से निभा रही हैं, तू भी अपना रिश्ता ईमानदारी से निभाना, ये सुनकर नेहा की आंखें भर आई, मम्मी जी मै आपको कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगी।
तभी कार का हार्न बजता है, जल्दी करो वहां होटल में खाना खत्म नहीं हो जाएं, तन्वी की बात सुनकर सब हंसने लगते हैं, और घूमने निकल जाते हैं।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
#ननद