बहू से उम्मीद तो दामाद से क्यों नहीं !! – मीनू झा

रेवती को समझ आ गया उसे अब क्या करना है.. क्योंकि इस मुद्दे पर जिस तरह विनीत का व्यवहार हो जाता है उसे बड़ा ही अजीब लगता है…मतलब…समझ ही नहीं पाती वो कि इतना सभ्य,सुशील संस्कारी और व्यवहारिक विनीत ऐसा क्यों करने लगता है,कारण पूछो तो कहेगा—पता नहीं क्यों मुझे अच्छा नहीं लगता…तुम उनकी बेटी हो

मैं तुम्हें तो कभी नहीं रोकता, बल्कि जब कहती हो पहुंचा भी आता हूं और ले भी आता हूं,तुम मुझे मजबूर ना करो, वैसे भी बड़े बुजुर्गो ने कहा है कि ऐसी जगहों पर ज्यादा टिको तो मान इज्जत कम होने लगती है…।

रेवती समझ नहीं पाती की ससुराल में ना ठहरने की ऐसी  भी कोई मजबूरी हो सकती है क्या???एक आध बार उसे थोड़ा बहुत विनीत ने बताया था कि उसके पिता का ससुराल का अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा था…पर क्या सारे लोग एक से होते हैं और जरूरी है जो पिता के साथ हुआ वो बेटे के भी साथ हो….रेवती के लाख समझाने पर भी विनीत अपनी जिद पर अड़ा रहता।

दरअसल रेवती अपने घर की इकलौती बेटी है,उससे छोटे दो भाई….अब रेवती की शादी हुई तो जाहिर सी बात थी मां बाप को बड़ा अरमान था कि रेवती और दामाद छुट्टियों में आकर उनके पास रहें…ताकि वो भी बेटी दामाद से संबंधित अपने सारे शौक पूरे कर पाएं…पर विनीत यूं तो बात व्यवहार में उनसे बहुत ही अच्छी तरह पेश आता,हंसी मजाक भी कर लेता पर रूकता कभी नहीं था.

.दो ढाई घंटे के फासले पर ही था रेवती का मायका, तो वो रेवती को लेकर भी जाता,आधे एक घंटे रूककर चाय नाश्ता भी करता,पर फिर वापस हो जाता… शुरू शुरू में सास ससुर रूकने का आग्रह करते तो कुछ न कुछ बहाना बना देता,फिर उन्हें भी समझ में आने लगा था कि विनीत रूकना नहीं चाहता…अंदर ही अंदर दोनों बड़े दुखी होते और सोचते कि पता नहीं

क्या चूक हुई उनसे जो दामाद जी कभी रूकते नहीं,रेवती अपनी तरफ से पूरा प्रयास करती उन्हें समझाने का पर उनके भी मन में फांस सी चुभी थी।

हर बार इस तरह माता पिता का उदास चेहरा देखकर रेवती को लगने लगा था कि अब उसे ही कुछ करना होगा ताकि विनीत को एहसास हो पाए कि उसकी इस बात से जो भले ही उसके लिए बहुत छोटी है पर सामने वाले का दिल कितना दुखता है।

उसकी योजना का ही हिस्सा था कि वो दो तीन बार से मायके जा रही थी तो विनीत को कहती कि आप छोड़ दो मैं खुद चली भी जाऊंगी और आ भी जाऊंगी।भला विनीत को इसमें क्या परेशानी होती..उसने सहर्ष स्वीकृति दे दी थी अपनी।

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दशहरा आने वाला था विनीत के गांव पर सारे परिवार वाले दशहरे की पूजा बहुत बड़े स्तर पर और धूमधाम से मनाते थे… परिवार के जो लोग बहुत दूर भी रहते थे कम से कम दशहरे में जरूर आते।

ऐसे तो हर तीन महीने में विनीत रेवती के साथ गांव के चक्कर लगा आता था…पर दशहरा था तो जाना ही था।दो महीने पहले भी गया था पर रेवती ने किसी कारण से जाने के लिए मना कर दिया था।

रेवती.. मैं क्या कह रहा था,आज दफ्तर से थोड़ा पहले आ जाऊंगा..शाॅपिंग के लिए चलेंगे…दस दिन बाद चलना है ना गांव तो सबके कपड़े वगैरह ले लेंगे।

हां…ठीक है मैं तैयार रहूंगी।

सबके कपड़े लेने के बाद विनीत ने रेवती से कहा

तुम अपने लिए भी एक अच्छी सी साड़ी ले लो…पूजा में तो नई साड़ी चाहिए होगी ना??

मैं लेकर क्या करूंगी विनीत…कौन सा मैं जा रही हूं

मतलब…तुम नहीं चलोगी —विनीत का स्वर ऊंचा हो गया पर दुकान का ध्यान आते ही फिर बोल पड़ा–अच्छा,चलो घर पर बात करते हैं।

हां अब बताओ.. क्यों कहा तुमने ऐसा कि तुम नहीं जा रही तुम्हें पता है सब कितनी बेसब्री से हमारा इंतज़ार करेंगे..अरे तुम बहू हो उस घर की…. पिछली बार भी तुम नहीं गई तो पता है सबके चेहरे उतर गए थे,कितनी मुश्किल से समझाया सबको मैंने…सब प्यार करते हैं इज्जत करते हैं तुम्हारी इतनी और तुम कह रही हो नहीं जाऊंगी..ऐसा क्या हो गया रेवती??—घर आते ही विनीत ने प्रश्नों की बौछार लगा दी।

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विनीत तुम बेटे हो उस घर के तुम जा ही रहे हो मैं जाऊं ना जाऊं क्या फ़र्क पड़ेगा भला??–रेवती ने विनीत की ही बात को हुबहु दोहरा दिया फिर भी विनीत नहीं समझ पाया।

रेवती… मैं बेटा हूं पर मेरी शादी हो चुकी है,शादी के बाद मैं और तुम नहीं होता “हम” होता है,हम दोनों अब उस घर के लिए बराबर है…तुम भी मेरी तरह मेरे घर का एक अभिन्न हिस्सा हो.. तुम्हारी भी जिम्मेदारी है मेरे घर के प्रति मेरे घरवालों के प्रति…मेरी तरह वो भी अब तुम्हारे अपने हैं, उम्मीदें जुड़ी है उनकी तुमसे,और तुम्हारा नहीं जाना उनके प्यार का सरासर अपमान होगा रेवती…!

फिर मेरा घर और मेरे घरवाले आपके अपने क्यों नहीं है और उनकी उम्मीदों और प्यार के अपमान का क्या विनीत????

विनीत के होंठों पर मानों एकाएक चाभी सी लग गई।

पिछले दो सालों से मैं यही तो समझा रही हूं आपको..मेरे माता पिता और भाइयों का उदास चेहरा क्यों नहीं दिखता आपको,उनका आपके प्रति प्रेम और साथ रहने की ललक क्यों नहीं दिखती आपको….उनके प्रति आपकी जिम्मेदारी क्यों नहीं दिखती आपको…जबकि आप ज्यादा जिम्मेदार है… हैं इन प्रश्नों के उत्तर आपके पास विनीत???

आप अभी तक बीसियों बार मना कर चुके हैं मेरे मायके में नहीं रहने के लिए… मैंने तो सिर्फ दूसरी बार मना किया तो आपको कितना बुरा लगा विनीत…एक मर्द ससुराल में ना रहना चाहे ये उसके लिए शान का विषय है और वही एक औरत ससुराल में ना रहना चाहे ना जाना चाहे तो वो ससुराल का अपमान है…ऐसा दोयम नजरिया क्यों विनीत???

अपने दिल से मेरे दिल का हाल समझिए और बताइए क्या मैं ग़लत हूं????

रेवती को विनीत के चेहरे से अंदाजा हो गया था कि उसका तीर निशाने पर लगा है…।

फिर भी…फिर भी मैं आपके साथ जरूर जाऊंगी… क्योंकि मैं नहीं चाहती कि जिस दुख से मेरा परिवार गुजरता है उससे आपका भी गुजरे…और ना जाने की बात मैंने सिर्फ आपको एहसास दिलाने के लिए कहीं थी कि दिल को कितना बुरा लगता है।

सुबह उठकर विनीत को बालकनी में चुपचाप बैठा देख रेवती ने पूछा

क्या बात है ऑफिस नहीं जाना है क्या?? आज तो फ्राइडे है, छुट्टी तो नहीं है ना?

छुट्टी ली है रेवती… तुम्हारे घर जाना है…माफी मांगने के लिए…कल सच में मुझे सारी रात सोचने के बाद एहसास हुआ कि उन्हें कितना दुख होता होगा और तुम्हें भी उन्हें समझाना कितना मुश्किल होता होगा।

बस माफी मांगने जाओगे???

ना… इस बार दो दिन ससुराल का लुत्फ उठाकर ही लौटूंगा…—विनीत ने मुस्कुराकर कहा तो उस मुस्कराहट से रेवती का भी चेहरा चमक उठा और मन किया अपनी पीठ थपथपा कर कह ही ले—“वाह रेवती वाह” तू सफल रही।

मीनू झा 

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