बहू ससुराल को करे तो अच्छी पर बेटा ससुराल को करता बुरा क्यों लगता… (भाग 2) – रश्मि प्रकाश 

” अच्छा सुनो कल राशि के पैरेंट्स के घर जाना…. कुछ लेकर जाना होगा क्या….. पहली बार यहाँ से जा रहा तो मुझे कुछ समझ नहींआ रहा है ….वहाँ से तो तुम पता नहीं क्या क्या  थमा देती थी ।” निकुंज ने जैसे ही बोला सरला जी की रही सही चिन्ता सच में बदलतीनज़र आने लगी

“ सही है बेटा यहाँ आने का वक़्त नहीं मिलता ससुराल जाने का बहुत मन कर रहा तेरा…. चल जा ही रहा है तो ख़ाली हाथ क्याजाएगा…. गगन जी का बेटा है वो भी इतनी अच्छी कंपनी में काम करता है…. अच्छे से मिठाई फल लेकर जाना।” कह सरला जी नेफ़ोन रख दिया 

उधर निकुंज सोचने लगा ये मम्मी को क्या हुआ ऐसे क्यों बोल रही उसने फटाफट से पापा को फोन लगा दिया…

” हैलो पापा ये मम्मी को क्या हुआ है…. उखड़ी उखड़ी सी थी मुझसे बात भी ठीक से नहीं किया ।” परेशान हो निकुंज ने पूछा 

“ अरे कुछ नहीं …जानते तो हो अपनी माँ को कोई कुछ कह देगा बस दिल पर ले चिन्ता में डूब जाती।” गगन जी समझा बुझा कर फ़ोनरख दिए 

खाकर कमरे में गए तो सरला जी  रो रही थी ।




“ सरला बेटा है वो तुम्हारा…. तुम्हारा ही कहलाएगा…. और क्यों उससे ठीक से बात नहीं की …. मुझे पूछ रहा क्या हुआ मम्मी को … होगया ना वो भी परेशान…।” गगन जी ग़ुस्सा करते हुए बोले

“ ये सही है तुम्हारा जब मैं ससुराल में करता तो बहुत अच्छा दामाद , सरला का पति कितना अच्छा है सुनकर बहुत ख़ुशी होती थी … परआज बेटा ससुराल वाले शहर क्या रहने गया तुम्हें तकलीफ़ हो रही है…. वो पहले से ही वहाँ नौकरी कर रहा था…. अब राशि कामायका वही है तो उसकी क्या गलती…. तुम्हें तो तब बहुत अच्छा लगा कि बेटा इतनी बड़ी कम्पनी में  नौकरी करने गया  तब उस शहर सेकोई दिक़्क़त नहीं थी अब वो शहर ख़राब नजर आ रहा।” गगन जी ने कहा 

” आप नहीं समझेंगे सो जाइए ।” कह सरला जी मुँह फेर कर सो गई

समय गुजर रहा था और बेटे को लेकर सरला जी की चिंता भी …. पर बेटे से कुछ कह भी नहीं सकती थी…. सलाह भी तो खुद ही देतीथी दोनों घर को अपना समझ कर चलना…. जब बेटा बहू अपने फ़र्ज़ इधर बख़ूबी निभी ही रहे हो …. जब समय मिलता यहाँ आते रहतेगगन जी को भी तीन चार दिन की छुट्टी मिलते  निकुंज अपने पास बुला लेता… उधर जाते तो राशि के पैरेंट्स हमेशा अपने घर बुलालिया करते… गुजरते वक़्त के साथ सरला जी महसूस करने लगी थी जैसे बहू उनको दिल से अपना मान सब करती हर बात का ख़्यालरखती अपने माता-पिता के प्रति लापरवाह सी थी…. कहने का मतलब ये है कि जो बहू सास ससुर के रहते समय पर हर चीज़ कर के देदिया करती मायके जाती तो कुछ नहीं करती ये देख बहुत बार निकुंज कहता भी जाओ मम्मी की मदद करो पर राशि नहीं सुनती तोकितनी बार निकुंज जाकर मदद करने की कोशिश करता दामाद को यूँ मदद करने सास कभी नहीं देती पर वो आग्रह कर के कर दियाकरता।




इस बार जब सरला जी बेटे के घर गई तो राशि की माँ उनसे मिलने आई।

राम सलाम के बाद राशि दोनों के लिए चाय नाश्ता लेकर आई और दोनों को बात करने छोड़ चली गई ।

“ आप बहुत क़िस्मत वाली है समधन जी….आप लोगों के पास निकुंज जैसा बेटा है…. जो कभी भी हमें ये एहसास नहीं होने देता की वोहमारा बच्चा नहीं है….. हम तो बहुत भाग्यशाली है जो निकुंज जैसा दामाद मिला बेटी तो थी ही बेटे की जो कमी कभी-कभी खलती थीवो निकुंज ने पूरी कर दी…. इतने अच्छे संस्कार दिए आपने उसे तभी वो कभी गुमान नहीं करता वो हमारा इकलौता दामाद है… बससमझिए आपने हमारी बेटी अपना ली बस वैसे ही हमने आपके बेटे को….आपका बहुत शुक्रिया समधन जी।” राशि की मम्मी हाथ जोड़भावावेश में डूब गई 

“ ये क्या कर रही है समधन जी राशि ने जब हमें इतना मान दिया तो निकुंज क्यों नहीं देगा।” चलिए हम दोनों का परिवार इनसे पूरा होगया कह सरला जी ने राशि की माँ के हाथ पर हाथ रख अपनापन जताया 

राशि की माँ के चले जाने के बाद गगन जी जो ये सब देख सुन रहे थे सरला जी से बोले,“अब क्या होगा सरला समधन जी ने तुमसेतुम्हारा बेटा छिन लिया….।”कह हँसने लगे

“ ज़्यादा मेरा मज़ाक़ ना बनाइए मैं कितना गलत सोच रही थी जी जब बहू हमें अपना मान सब करती तो बहुत अकड़ में रहते बेटाससुराल को करता बुरा क्यों लग जाता…. देखा मेरे संस्कार मेरा बेटा कितना भाग्यशाली दो दो माँ मिल गई उसे…।” सरला जी अपनीवाहवाही करते हुए बोली 

“ और मुझे क्या मिला माँ …?” राशि कमरे में आकर नखरे दिखाते सरला जी से बोली

“ तुम्हें भी तो दो दो माँ मिल गई…।” कह बहू को गले लगा ली

गगन जी और निकुंज हँसने लगे।

बहुत बार एक बेटे की माँ को इस बात की चिंता लगी रहती है कि बेटा कहीं ससुराल का होकर ना रह जाए…. बस सरला जी को भीयही चिंता सताए जा रही थी पर अब समझ गई कि जब बहू अपना सब छोड़ ससुराल वालों को अपना सकती है तो दामाद क्यों नहीं…!

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धन्यवाद 

#संस्कार 

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रश्मि प्रकाश 

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