बहू कुछ दिन और मायके रूक जाती…. – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ बहू तू इतनी जल्दी मायके से आ गई… समधी जी अब कैसे हैं….. कुछ दिन उनके पास ही रूक जाती…. क्या सोचते होंगे तुम्हारे मायके वाले ज़रूर सास  मायके में रूकने नहीं देती होगी ।” कौशल्या जी ने बहू निशिता से कहा 

“ बिल्कुल नहीं मम्मी जी…. सब तो मुझे दूसरे दिन ही भेज रहे थे….. पर मैं दो दिन रूक गई पता है आपको मेरे जो भी दोस्त मिलने आए कह रहे थे …. तेरा ससुराल अच्छा है जो तुम्हें यहाँ इतने दिन रूकने दिया नहीं तो हमें तो अगले दिन ही ससुराल पहुँचना पड़ता …. पापा अब पहले से ठीक है …. पर पूरी तरह कब ठीक होंगे कहना मुश्किल हैं….

उम्र भी हो रही है तो हारी बीमारी लगी ही रहेगी…. अच्छा आप ये बताइए अपनी दवाइयाँ ले रही थी और नहीं…. सुबोध आपका ध्यान तो रख रहा था ना…।” निशिता एक साँस में सारी बातें कह डाली 

“ अरे मेरी प्रिंसिपल साहिबा मैं दवा तो तब भूलती ना जब तेरा फ़ोन नहीं आता…. घड़ी की सुई वक़्त बताती उससे पहले तेरा फ़ोन आ जाता … उपर से सुबोध को इतनी हिदायत देकर गई थी कि वो भी वक़्त पर सब कर रहा था…..बता भला मैं दवा लेना कैसे भूल सकती थी।” कौशल्या जी ने कहा 

तभी सुबोध भी अपने दोनों बेटों के साथ सामान लेकर उपर घर में आ गया ।

बच्चे दादी से गले मिल बोल रहे थे आपकी बहुत याद आ रही थी…. 

निशिता आते ही रात के खाने की तैयारी करने रसोई में चली गई और उसके बच्चे दादी को नानी घर के क़िस्से सुनाने में लग गए ।

तभी फ़ोन की घंटी बजी फ़ोन स्पीकर पर रख कर कौशल्या जी बातें करने लगी… दूसरी तरफ़ कौशल्या जी की जेठानी बोल रही थी,“ क्यों रे छोटी आ गई तेरी बहू….कैसे तुम्हें छोड़ कर अपने मायके चली गई जरा भी ख़्याल ना किया कि कुछ दिन पहले ही तो सास को छाती में दर्द उठा छोड़ कर नहीं जाना चाहिए था… मायके में चार चार भाई उसके वो सँभाल नहीं रहे थे क्या जो

अपने पापा को सँभालने चली गई ज़रूर पैसे भी खर्च कर आई होगी….. कहा था ये लव मैरिज बहुत बुरी मत करने दे बेटे को पर तेरी तो मति मारी गई थी…. ख़ानदान की इज़्ज़त का भी ख़्याल ना किया….इकलौता बेटा है जीजी उसकी पसंद का ना करूँगी तो ज़िन्दगी भर खुद उदास रहेगा और उसे देख देख कर मैं भी…. ले अब देख जब मन करता मायके चल देती ज़रा सास का ख़्याल ना रखती ।”

“ बहू आ गई है जीजी … आप बेकार ही सोच रही हो…. बहुत ख़्याल रखती आपकी छोटी का…. सच कहूँ तो सुबोध से ज़्यादा उसे मेरी फ़िक्र रहती है…. अब ये भी तो अपने पापा की लाडली इकलौती बेटी है जब उनकी तबीयत ज़्यादा बिगड़ गई अस्पताल चले गए तब मैं ही ज़िद्द कर के उसे भेजी थी…. वो तो कह रही थी मैं आपकी देखभाल नहीं करूँगी तो कौन करेगा…

बहुत हुआ तो सुबोध को भेज दूँगी मिल कर आ जाएँगे पर जीजी बाप का दिल भी तो करता होगा ना बेटी से मिलने का कैसे ना भेजती… अब आ गई है ना रखेंगी मेरा ख़याल ।” कौशल्या जी ज़्यादा बात करने के मूड में नहीं थी बस फ़ोन रख दी

निशिता सब बातें सुन कर भी रसोई में लगी रही…. याद करने लगी सच में शादी की डगर आसान नहीं होती ….सुबोध के साथ पहली मुलाक़ात एक एनजीओ में हुई थी अपने ऑफिस के बाद वो अक्सर इस एनजीओ के साथ मिलकर काम करते थे ग़रीबों को खाना खिलाना या फिर कपड़े आदि की व्यवस्था करना…. आकर्षक व्यक्तित्व का सरल सुबोध एक ही नज़र में निशिता को भा गया… पर सुबोध कभी निशिता पर ध्यान नहीं देता था….

निशिता ने ही बातचीत शुरू की फिर मिलते मिलाते कब एक दूजे के बनने की क़समें खाने लगे उन्हें पता ही नहीं चला… सुबोध के पिता कुछ साल पहले ही गुजर गए थे बस घर में माँ थी और वो भी परिवार वालों के हर फ़ैसले पर ही सहमति देती थी लव मैरिज ख़ानदान में आज तक किसी ने नहीं किया था … वहीं निशिता के पैरेंट्स बहुत खुले विचार के थे…बच्चों की ख़ुशी सर्वोपरि,…चाहे बाकी परिवार वाले सहमत हो ना हो…।

स्वभाविक था सुबोध के घर पर पूरे परिवार वालों की ना थी उसमें कौशल्या जी भी शामिल थी…. पर सुबोध की ज़िद्द यही कि “एक बार निशिता से मिल तो लो … फिर फ़ैसला करना… माँ ख़ानदान की इज़्ज़त को लेकर उसे पहले ही ना करना सही नहीं है … तुम्हें भी पसंद नहीं आई फिर तुम जो कहोगी कर लूँगा पर सच यही है मेरी ख़ुशी निशिता के साथ है।” कहते हुए सुबोध थोड़ा उदास हो गया था 

ये सब सुन कर कौशल्या जी ने निशिता से मिलने का फ़ैसला किया….जब निशिता से मिली तो सोचने लगी…. खोजकर भी इतनी सुशील और सुलझे विचारों वाली बहू नहीं ला पाऊँगी….. किसी तरह परिवार वालों को मना सुबोध और निशिता की शादी करवा दी गई ।

रिश्तेदारों ने ख़ानदान की इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी के सौ अफ़साने गढ़ दिए पर कौशल्या जी ने बेटे की पसंद और ख़ुशी को सबसे आगे रखा ।

ये शादी किसी समझौते पर तो नहीं हुआ था अपितु दोनों की पूर्ण साझेदारी शामिल थी ….. जितना सुबोध अपनी माँ के लिए करता उतना ही फ़र्ज़ वो निशिता के पैरेंट्स के लिए भी समझता था…. और निशिता वो तो घर में आते ही कौशल्या जी के लिये इतना कुछ करने लगी की उन्हें एक बेटी की जो कमी कभी कभी खलती थी वो भी ख़त्म हो गई।

वक़्त बहुत अच्छे से गुजर रहे थे पर परिवार वाले अभी भी कौशल्या जी को बेटे की शादी का ताना दे ही देते थे।

पन्द्रह दिन पहले कौशल्या जी को अचानक छाती में दर्द महसूस हुआ डॉक्टर को दिखाया तो बोले ,“बस वक़्त पर दवा ले और खाने पीने का पूरा ध्यान रखें… वी पी , शुगर उम्र के साथ हो जाता पर परहेज़ रखना बहुत ज़रूरी है…. थोड़ी ब्लॉकेज की समस्या लग रही है कुछ दिनों बाद फिर चेक कर के देखना पड़ेगा फ़िलहाल आप यें दवाइयाँ वक़्त पर लेती रहें…. निशिता अब हर दिन कौशल्या जी के लिये सोच समझ कर खाना बना रही

थी वक़्त पर दवा भी दे रही थी… सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि  एक दिन फ़ोन आया निशिता के पापा की तबियत ख़राब है…. निशिता बहुत असमंजस में थी करें तो क्या करें यहाँ सास को छोड़ कर जा नहीं सकती उधर अपने पिता की हालत सुन रहा भी नहीं जा रहा था….. ।

कौशल्या जी ने बहुत कहा जाकर पापा को मिल लो…. पर निशिता कौशल्या जी को छोड़कर जाने को राज़ी नहीं हो रही थी तभी सुबोध ने कहा,“ माँ मैं ऐसा करता हूँ पापा जी अस्पताल में है …. निशिता उधर जाकर कहाँ अस्पताल में रहेंगी…. मैं इसके भाइयों के साथ उनका उधर ध्यान रख लूँगा यहाँ निशिता आपका ध्यान रख लेगी…. हमने शादी एक दूसरे को समझ कर परिवार को अपना मान कर की है…

दोनों ख़ानदान की इज़्ज़त और ज़िम्मेदारी अब हमारी भी है ….जब आज वो आपकी जी जान से सेवा कर रही है तो मैं क्यों ना ससुर जी के बेटे का फ़र्ज़ अदा कर आऊँ …..आप बताइए क्या मैं गलत कह रहा?”

 कौशल्या जी बेटे की बात सुन गौरवान्वित महसूस करने लगी….. सच ही तो कह रहा है शादी कोई समझौता तो नहीं है ये एक साझेदारी है जो दोनों एक दूसरे के साथ बाँटते है चाहे वो किसी भी परिस्थिति में क्यों ना रहें अपनी भूमिका बख़ूबी निभा सकें ।

“ सही कह रहा है बेटा … ऐसा कर तू अभी चला जा जब समधी जी घर आ जाएँगे तब निशिता भी कुछ दिन रह कर उनसे मिल आएँगी…. बस इतना याद रखना जैसे निशिता मेरा ख़याल रख रही तू भी उनका उतना ही ख़्याल रखना।”कौशल्या जी ने कहा 

सुबोध तीन दिन रह कर निशिता के पापा के घर आने तक वहीं साथ साथ रह कर वापस अपने घर आ गया ।

एक दिन बाद निशिता को जाना था वो बच्चों को साथ लेकर जाने वाली थी पर पीछे से सुबोध को एक एक बात समझा रही थी मम्मी को ये खाना देना …. इस दवाई को इस वक़्त….. सब कुछ अच्छे से समझा कर एक पेपर पर सब लिख कर सुबोध के हवाले करने के बाद वो मायके गई पर हर पल कौशल्या जी की फ़िक्र लगी रही वहाँ चार भाई भाभियाँ माँ सब थे करने के लिए पर यहाँ….

ये फ़िक्र उसे मायके में ज़्यादा दिन रहने नहीं दे रही थी बस किसी तरह दो दिन रूक कर वो आ गई पर परिवार के अन्य सदस्य आज भी यही सोचते की मम्मी जी ने हमारी शादी करवा कर गलती की है ।

निशिता ख़्यालों में ही खोई रहती अगर कुकर ने सीटी ना बजाई होती ।

 तभी कौशल्या जी रसोई में निशिता के पास किसी काम से आई तो निशिता का उतरा चेहरा देख समझ गई की उसने फ़ोन पर की बातें सुन ली है ।

“ बहू एक बात कहूँ…. बस इतना याद रखना जब तक हम दोनों एक दूसरे को समझते रहेंगे किसी तीसर की क्या मजाल जो हमारे बीच दरार ला सकें….तू क्यों जीजी की बात पर ध्यान देती हैं….. मैं खुश हूँ बहू सुबोध खुश है फिर हमें क्यों सोचना कौन क्या कह रहा है… दिल छोटा मत किया कर….. कोई कुछ भी कहें तू भले सुबोध का प्यार होगी पर बहू मेरी पसंद की हैं जीजी की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दिया करो बहू…

अपने बेटे की शादी अपनी पसंद की लड़की से की ये सोच कर उनकी सेवा सुश्रुषा करेगी…पर वो तो सास से बात तक ना करती सेवा कहाँ से करेगी… ख़ानदान की इज़्ज़त बनी रहे सोच कर किसी से कह नहीं पाती…. ये सब तो मुझे दो साल पहले पता चल गया था जब मैं उनके गिर जाने पर उनसे मिलने गई थी… उनकी बहू बहुत कड़वे बोल बोल रही थी और सास को कह रही थी पता नहीं बुढ़िया कब ठीक होगी …

जब जीजी ने दरवाज़े पर मुझे देख लिया तो चौंक गई थी और बहू से डरते डरते बोली चाची सास के लिए चाय नाश्ता ले आओ… बता बहू ख़ानदान की इज़्ज़त की दुहाई दे कर मुझे सबसे ज़्यादा जीजी ने ही सुनाया पर हुआ क्या…बस तब से मैं जीजी की बात पर ध्यान ना देती बस अपनी बहू की फ़िक्र करती हूँ जो मेरी फ़िक्र करती है। कहते हुए कौशल्या जी ने निशिता को गले लगा लिया 

“सच कह रही है  मम्मी जी आज भी बहुत लोग लव मैरिज के खिलाफ रहते हैं एक दूसरे के कान भरते रहते है पर सच यही है कई बार अरेंज मैरिज भी बस समझौते पर टिक कर रह जाती है ना प्यार होता ना साझेदारी…. ख़ानदान की इज़्ज़त की बात कह कर किसी दूसरे के संग बाँध दिया जाता है और फिर बहुत मुश्किल हो जाता है सामंजस्य बिठाना या यूँ कहें रिश्ता निभाना ….

इस से अच्छा है ऐसे रिश्ते को अपना लिया जाए जिसमें हमारा भविष्य ख़ुशी से गुजर पाए क्योंकि हम भी तभी खुश रह सकते जब हमारे बच्चे खुश रहेंगे ।चाहे शादी कोई भी हो  वो समझौते पर नहीं साझेदारी पर ज़रूर टिकी होनी चाहिए और ख़ानदान की इज़्ज़त की बात कह कर बच्चों पर अतिरिक्त बोझ डाल कर उसे किसी और के संग बांधने से बेहतर है

एक बार उसकी पसंद को परख कर देख लिया जाए… जैसे आपने मुझे परखा समझा और प्यार ममता लुटाया ।” निशिता सासु माँ को प्यार और सम्मान के साथ देखते हुए बोली 

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

मौलिक रचना 

# ख़ानदान की इज़्ज़त

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