वंदना हड़बड़ती हुए घर में प्रवेश करती है इसी जिसे देखकर लीला जी पूछ लगी “ये कौन सा वक्त है बहू बाजार से घर आने का”????? भले घर की बहुएं सूरज ढले घर में घुसते अच्छी लगती है क्या???? और तुम क्या लेने गई थी तुम्हारे हाथों में तो कोई झोला दिखाई नहीं देता… हम्मम ये पर्स मटकाते हुए तफ़री करने गई थी… लीला जी की पारखी नजरें अपनी बहू को ऊपर से नीचे तक एक्स-रे कर देख चुकी थी!! मांजी आप यहां अचानक कैसे सब ठीक तो है???? अच्छा अब अपने बेटे के घर में आने से पहले तुमसे इजाजत लेनी होगी… तुमसे पूछना होगा कि महारानी घर में मिलेंगे कि नहीं???? ये मेरे बेटे का घर है मैं जब चाहें आऊं जब चाहे जाऊं तुम्हें क्या??? मांजी मेरे कहने का वो मतलब नहीं था… बिल्कुल ये आप ही का घर है… बस आप अपने आने की खबर कर देती तो मैं आपके लिए चाय, नाश्ते की व्यवस्था पहले से कर रखती… वंदना ने बात को संभालते हुए कहा..!! अरे तुम क्या हमें चाय नाश्ता कराओगी??? हमें पहले से ही अंदाजा था तुम्हारी कामचोरी का इसलिए हम गांव से ही अपना खाना वाना लेकर आए है
और देखो एक घंटा हो गया यहां आए… तुम्हारे कुछ अता पता ही नहीं थे तो हमने चाय बनाकर भी पी ली… लीला जी गुस्से में बोली। तब बेटा धीरज बोला मां शांत हो जाओ अब वंदना आ गई है ना शाम के खाने की आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं… चलो आप थक गई होगी अपने कमरे में आराम करो… उसने वंदना की तरफ सब संभाल लूंगा ऐसा इशारा आंखों ही आंखों में कर दिया!! अरे बेटा मेरी थकान तो तुझे देखते ही उतर गई चल अब मुझे भी तुझसे बहुत सारी बातें करनी है… बोल अपने साथ ही धीरज को अपने कमरे में ले गई। वंदना फटाफट हाथ मुंह धोकर रसोई में जुट गई, सबकी पसंद का खाना बनाया, खिलाया, साफ सफाई कर सुबह के नाश्ते के लिए सब्जियां काटकर, आटा लगाकर रख दिया… इसी बीच वो धीरज से बात करना चाहती थी
लेकिन मांजी ने ऐसा करने का एक मौका भी नहीं दिया… फिर उसने सोचा रात को कमरे में बात कर लेगी… लेकिन उन्होंने धीरज को अपने पांव दबाने और घर की बातें करने में इतना समय लगा दिया कि धीरज अपनी मां के साथ ही सो गया। वंदना को भी बहुत देर हो रही थी इसलिए वो अपने कमरे में जाकर सो गई… जो बात वो करना चाहती थी वो अधूरी रह गई सुबह 5:00 बजे उठकर फटाफट कुकर लगा गैस पर सब्जी चढ़ा पराठे बनाने लगी, मिक्सी में मसाला पीसी रही थी कि रसोई में होती खटपट की आवाज सुन लीला जी भुनभुनाती हुई रसोई में आई और बोली “क्या बहू ये सुबह से कुकर की सीटियां लगा रही हो,
मिक्सी भुनभुना रही हो तुम्हें पता है ना मुझे 6 बजे उठने की आदत है फिर ये सुबह से क्या लगा रखा है???? क्या आप अपनी सास को थोड़ा सा चैन से नहीं सोने दे सकती तुम…??? मां जी स्कूल,ऑफिस का टिफिन नाश्ता खाने की तैयारी कर रही हूं अगर अभी से नहीं करूंगी तो फिर मुझे बहुत देर हो जाएगी। स्कूल 9:00 के ऑफिस 10:00 बजे का 5:00 बजे से ठंडा बसा, खाना खिलाने की कौन सी आदत पड़ गई है तुम्हें???? मेरे बेटे और बच्चों को तुरंत तवे से उतरे गरमा गरम पराठे खिलाया करो और घर में ही तो पड़ी रहती हो तुम्हें क्या परेशानी होगी भला?????? असल में पिछले एक साल से वंदना साड़ी के शोरूम में नौकरी कर रही है… और ये बात उसने अपने ससुराल में किसी को नहीं बताई है सभी लोग गांव में रहते हैं। शहर बहुत कम आते जाते थे इसीलिए इस बात की खबर अभी किसी रिश्तेदार को भी नहीं थी… और फिर बताती भी क्या ससुराल वालों को बहू नौकरी करें ऐसा पसंद भी नहीं है।
बहुत हिम्मत करके बोली “जी मुझे भी दुकान के लिए 9:30 बजे निकलना होता है”!! दुकान कौन सी दुकान… सासू मां ने आंखें बड़ी करते हुए पूछा???? मैं एक साड़ी के शोरूम में कंप्यूटर पर बही खाते देखती हूं…मतलब “नौकरी” करती हूं!! तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है आज तक हमारे खानदान की किसी बहू में नौकरी नहीं की और तुम साड़ियां बेच रही हो???? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा छोटा काम करने की!! हे भगवान!! इसीलिए मैं धीरज से कहती थी गांव में ही काम संभाल ले शहर जाकर नाक कटवाने की जरूरत नहीं है… जाने कौन सी पट्टी पढ़ाई मेरे बेटे को जो अपनी पत्नी से काम करवाने लगा… जब मेरा बेटा लाखों में कमाता है
फिर तुम्हें ऐसी कौन सी जरूरत आन पड़ी??? मुझे बहुत अच्छे से पता है तुम जैसी औरतें घर के कामों से बचने के बहाने ढूंढती, कामचोरी करती है, बच्चों का ध्यान नहीं देती इसलिए वे आवारा हो जाती है, बजार में घर खानदान की इज्जत नीलाम कर देती है और भी न जाने क्या-क्या करती है। अपनी मां से चिल्ला पुकारी सुन धीरज भी रसोई में आ गया… “बस चुप हो जाओ मां” अब में एक और शब्द नहीं सुनूंगा मैं वंदना के बारे में …अगर “आपकी नजरों में लायक बेटा हूं तो मेरी नजरों में मेरी लायक बीवी है”…और क्या कहा इसने आपके खानदान की इज्जत नीलाम कर दि दुकान पर साड़ी बेचकर तो आपको बता दूं वंदना कंप्यूटर पर काम संभालती है मैनेजर है वहां की????? आपको खबर भी है आपके लायक बेटे को कटोरा लेकर भीख मांगने नौबत नहीं आने दी इसने… जिस नौकरी पर आप इतना इतरा रही हो वो कब की जा चुकी है। अब आपका बेटा एक मामूली नौकरी के सहारे अपना परिवार चला रहा है। कंपनी में छटनी हुई जिसमे मेरी नौकरी चली गई…एक साल तक मिली नहीं थी तब वंदना ने एक स्टोर में नौकरी कर घर की आर्थिक स्थिति को सुधार आया।
यहां तक कि पापा के ऑपरेशन पचास हजार भी इसी ने भिजवाए थे…!! अरे तो तू एक बार मुझसे तो कहता और तेरे भाई चाचा लोग मर गए हैं तूने अपनी तकलीफ बताई नहीं अगर हम में से किसी को पता होता तो हम तेरी मदद करते… इतना बड़ा और रईस खान नाम है हमारा, खेती-बाड़ी है भूल गया??? तू बस इतना बता बहू को बाहर काम करने की इजाजत कैसे दी??? तुझे अच्छे से पता है हमारे खानदान में आज तक किसी औरत ने नौकरी नहीं की फिर भी तूने इतना बड़ा फैसला बिना पूछे ले लिया… “और अब तो बुरा वक्त कट गया है छुड़वा दें इसकी नौकरी वरना तेरे घर और बच्चों का सत्यानाश हो जाएगा… कौनसा इसके दो पांच हजार से तेरे घर का खर्चा चलता है”। अच्छा आपको लगता है मैंने नौकरी जाने वाली बात किसी को नहीं बताई बड़े भाईसाहब से मैंने कुछ रुपए उधार मांगे उन्होंने कहा “इस बार सारी फसल उजड़ गई है” घर में तीन बच्चे, मां बाबूजी हैं सबका खर्चा चलाना है तुझे पैसा दे दूंगा तो हम क्या साहूकार उधार लेंगे और चाचा उन्होंने तो बात सुनते ही मेरा फोन हीं उठाना बंदकर दिया फिर किससे कहता तुमसे???? जिसे कोई बात समझ में आती भी है…. ठीक है
“आपके घर की बहू की नौकरी नहीं करती होंगी मेरी पत्नी नौकरी करती है” और मुझे उस पर गर्व है जब सब ने मुंह फेर लिया तब आपकी बहू ने पूरी दृढ़ता के साथ मेरा साथ दिया। मैं खुद उसके नौकरी करने के खिलाफ था फिर भी उसने हार नहीं मानी अपने आपको साबित करने के लिए मौका मांगा और घर गृहस्ती, बच्चों के साथ आर्थिक रूप से मजबूत होकर भी दिखाया… वंदना की वजह से हमें किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ा और इसकी नौकरी ने हमारा “स्वाभिमान” भी बचाए रखा… जिसे जो कहना है
वो कहे मगर मुझे अपनी पत्नी का साथ देने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि जिसने मेरे जीवन का सुख नहीं दुख भी आधा बांट लिया हो उसका मुझे एहसानमंद होना चाहिए। “माना आज मुझे वंदना की नौकरी की जरूरत नहीं है मगर आज ये नौकरी उसका “स्वाभिमान” है जो कि मैं बनाए रखना चाहता हूं”…हो सकता है मां इसके “स्वाभिमान” से आपकी नाक कटी हो लेकिन इसने मेरी नाक ऊंची कर दी है इसीलिए आपसे मैं अपने घर के मामलों में किसी का दखल नहीं चाहूंगा… अगर किसी को इस बात से तकलीफ है तो मेरे घर आने, मुझसे बात करने की जरूरत नहीं!! पता नहीं उन्हें कुछ समझ आया या नहीं मगर अपने बेटे की बात सुन लीला जी आगे कुछ नहीं बोल पाई और चुपचाप अपने कमरे में चली गई!! आशा करती हूं आपको मेरी रचना जरूर पसंद आएगी…
धन्यवाद
आपकी सखी
कनार शर्मा
(मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित)
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