आज सुबह की छटा ही निराली है। शांति सदन फूलों की माला से सजा जगमगा रहा था, खूबसूरत लाइटों की रंग बिरंगी रोशनी में रौनक देखते ही बनती है। मुख्य द्वार पर बड़ी सी रंगोली शोभा को द्विगुणित कर रही थी। अनीता जी और दिवाकर जी के बेटे अमित की शादी मौली से होने जा रही है। अनीता जी के पांव जमीन पर नहीं पढ़ रहे हैं। घर भर में चकरघिन्नी बनकर घूम रही हैं, खुशी-खुशी सारे काम निपटा रही हैं।
आज वो शुभ दिन आ ही गया जब बहू मौली के शुभ कदम उसके घर में पड़े। गृहप्रवेश के बाद थोड़ी रस्मों के बाद अनीता जी ने मौली को आराम करने के लिए कमरे में भेज दिया।
अगले दिन मौली पगफेरे के लिए मायके गई। 2 दिन बाद जब मौली घर वापस आई तब घर में ज्यादातर रिश्तेदार जा चुके थे और घर वाले ही बचे थे।
उसी दिन पहली रसोई की रस्म में अनीता जी ने मौली से कुछ मीठा बनाने को कहा। अनीता जी की सहायता से मौली ने खीर बनाई । घरवालों को खीर स्वादिष्ट लगी, सभी बड़ों ने आशीर्वाद के साथ मौली को उपहार दिए।
तभी अनीता जी की जिठानी ललिता जी ने कहा,”अनीता, नई बहू की मुंहदिखाई के साथ ही नाम बदलने की रस्म भी कर लेते हैं।”
“क्षमा कीजिएगा भाभी, पर मैं नई बहू का नाम बदलने के पक्ष में नहीं हूॅ॑।” अनीता जी ने कहा
“ऐसे कैसे! अनीता रस्म है, निभानी पड़ेगी। मौली ने मना किया क्या? ” जेठानी जी उत्तेजित हो गईं
“भाभी, मौली ने कुछ नहीं कहा।”
“फिर क्या हुआ? तुम्हें भी तो दूसरा नाम दिया गया था।”
“भाभी,वहीं तो कसक है कि मैंने मना क्यों नहीं किया। बरसों से जिस नाम से लड़की की पहचान है,वो छीनकर दूसरा नाम रखना उचित नहीं है, अस्तित्वहीन हो जाती है। मुझे अपना नाम ‘सुधा’ बहुत अच्छा लगता था , विवाह के बाद मुझे नया नाम ‘अनीता’ दे दिया गया। उस दिन मुझे ऐसा लगा कि किसी ने मुझसे मुझ ही को खींचकर अलग कर दिया। बहुत दर्द हुआ था भाभी मुझे उस दिन परंतु मैं हिम्मत नहीं कर पाई थी। लेकिन आज मैं इस प्रथा को नामंजूर करती हूॅ॑। मौली का नाम नहीं बदला जाएगा। एक नारी के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने वाली इस प्रथा का मैं विरोध करती हूॅ॑। इतने बरसों से माता-पिता के द्वारा दिए गए नाम को बदलकर लड़की के आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचाने दूंगी। साथ ही मौली सरनेम को लेकर भी स्वतंत्र है। वह चाहे तो ससुराल का सरनेम अपनाएं या मायके वाला सरनेम रखें या दोनों मिलाकर रखें, उसकी मर्जी!”
सभी औरतें अनीता जी से सहमत थीं। मौली सास का मत जानकर अति प्रसन्न थी, उसे अपनी सास की प्रगतिवादी सोच पर गर्व हुआ।
दोस्तों, आशा है मेरी इस कहानी ने आपको भी सोचने पर विवश कर दिया होगा। क्या विवाह के बाद बहू का नाम बदले जाने की प्रथा से आप सहमत हैं? सरनेम के साथ भी लड़की का नाता होता तो लड़की को ही निश्चित करना चाहिए कि सरनेम वो बदलना चाहती है या मायके का सरनेम ही रखेगी या दोनों रखें। आपके हिसाब से अनीता जी ने सही किया या नहीं? अपनी राय कमेंट सेक्शन में बताइएगा जरूर।
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धन्यवाद।
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)
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