बहू ज्यादा सज के रहेगी तो बेटा कहीं गुलाम न हो जाए – वीणा सिंह  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: वन्या कल हीं मायके आई है और आज की फ्लाईट से तनुल उसे मनाने आ गया है… वन्या से  मिन्नतें कर रहा है.. मुझे तो अचानक से नजर पड़ी तो हंसी आ गई तनुल कान पकड़े हुए था और बोल रहा था उठक बैठक करूं तो माफ करोगी. वन्या बोले जा रही थी ऐसे कान के कच्चे इंसान से मुझे कोई रिश्ता नहीं रखना… खैर बहुत आरजू मिन्नत करने और मेरे बीच बचाव करने पर तनुल को पहली और आखिरी माफी मिली…

              दिल को सकूं भी मिला… मैं अतीत में चली गई.. आज से पच्चीस साल पहले… मैं वाणी दो छोटे भाई और एक छोटी बहन मां पिताजी स्वतंत्रता सेनानी दादाजी, दो चाचा चाची और उनके बच्चे.. संयुक्त परिवार.. पिताजी शिक्षक संघ के नेता और हाई स्कूल के हेड मास्टर.. महादेव कॉलनी में रहने वाला बेहद प्रतिष्ठित परिवार… अच्छा घर परिवार और बैंक में काम करने वाले लड़के से मेरी शादी हो गई.. पति का रंग थोड़ा दबा हुआ था, वहीं मैं दूध जैसी गोरी तीखे नयन नक्श और घनी काली लंबी वेणी वाली बेहद खूबसूरत लड़की…

                       ससुराल में सास का रंग भी बहुत कम था और आगे के दो दांत निकले हुए थे.. ससुरजी सुंदर थे.. बेटा मां पर हीं गया था…

          लोग दुल्हन देखने आते तो कहते खानदान बदल देगी लड़की कितनी सुंदर है… सासु मां भले हीं अनपढ़ थी पर बेटा को कैसे अपने हिसाब से रखना है इस गुण में माहिर थी.. आए दिन राजन का कान भरती मेरे खिलाफ और कान का कच्चा राजन मुझे बुरा भला कहता…

                   मुझे बहुत शौक था मेहंदी लगाने और सजने संवरने का पर सासु मां कॉम्प्लेक्स से ग्रस्त थी बहु सुंदर है बेटा कहीं हाथ से न निकल जाए… मुहल्ले की औरतें पूछती सावन में बहु की हथेली सुनी है सासु मां कहती इसे शौक नहीं है कितना कहा पर सुनती हीं नहीं.. बहुत बोलने पर जरा सा सिंदूर लगा लेती है.. उन्हे भय था एक तो सुंदर बहु और सज के रहेगी तो बेटा उसका गुलाम न हो जाए.. कहीं भी जाना होता तो पति पत्नी के साथ सासूजी जरूर रहती..

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            आज से पच्चीस साल पहले ज्यादातर घरों में सास बेटे को एक मंत्र देती थी, तू मेरा खून है, नौ महीने कोख में रखा है, अपना दूध पिलाया, गीले पर सो कर सूखे पर तुझे सुलाया है.. शादी होते हीं बदल मत जाना.. हमारे बुढ़ापे का सहारा तुम हीं हो.. पत्नी की बात सुनना हीं मत, वो कभी नहीं चाहेगी मां बेटे में प्रेम रहे… और बेटा के दिमाग में ये बातें घर कर जाती थी.. राजन इसका उदाहरण थे… और इसका परिणाम मुझे भुगतना पड़ता.. ससुर जी बीच बचाव करने की कोशिश करते तो सासु मां चिल्लाने और रोने लगती गोरी चमड़ी है इसलिए उसकी तरफदारी करते हो.. शर्म से पानी पानी ससुर जी चुपचाप नजर नीचे किए चले जाते…

              

    वाणी थर थर कांप रही थी, और लगातार रोए जा रही थी, पर सास की तेज गुस्से वाली आवाज के सामने उसका रोना नक्कारखाने में तूती की आवाज थी.. आज फिर बेटे के आने पर अम्माजी उसके कान भरेंगी और# कान का कच्चा # राजन फिर से मुझे जलील करेगा.. दिन भर सोई रहती है, या मायके वालों से तुम्हारी और मेरी शिकायत करती है.. घर का कोई काम नहीं करती..अपने रूप का बहुत घमंड है इसे ..

आज फोन पर बात करते सुना किसी से कह रही थी अपने रूप जाल में पति को फांस कर अपने इशारे पर नचाऊंगी बहुत जल्दी..घुटने का दर्द से परेशान रहती हूं पर मजाल है बहु थोड़ा मालिश कर दे..रोज दोपहर में पूरे शरीर का मालिश करवाने वाली अम्माजी ओह..स्कूटर पर साड़ी का पल्ला पहराते रोज शाम को घूमना चाहती है तेरे साथ… दिन भर का थका हारा पति इसे आराम करने के बदले सैर कराने ले जाए.. फोन पर यही सब बात करती है.. लैंड लाइन का एक कनेक्शन इसीलिए मैंने अपने कमरे में करवा लिया था बेटा.. इसके लछन मुझे शुरू से हीं अच्छे नहीं लगे थे.. 

                   और राजन गुस्से में कई बार मेरे ऊपर हाथ भी उठा देते.. मायके भेजने और तलाक की धमकी भी देते..

          और मैं सबकुछ सहन कर रही थी कि छोटी बहन की शादी नहीं हुई थी.. दादाजी और पिताजी की समाज में कॉलनी में बहुत इज्जत थी.. कानाफूसी होने लगती इनकी लड़की को ससुराल वालों ने छोड़ दिया है.. उस समय ये बहुत बड़ी बात थी… मायके भी सहमी सहमी सी जाती और जितने दिन रहने की इजाजत मिलती उतने दिन हीं रहती.. हमेशा ये भय बना रहता कहीं वापस लेने हीं नहीं आए राजन…

                दो साल बाद वन्या का जनम हुआ. बिल्कुल मेरी जैसी शक्ल भगवान ने बेटी की भी दी थी.. राजन और अम्माजी दोनो बेटा के लिए ताना देते रहते..

                 एक दिन आटा गूथते समय अंगूठी किचेन में रख दिए थे, अचानक वन्या उठ कर रोने लगी.. मैं उसके पास गई अंगूठी का ध्यान नहीं रहा.. शाम को अम्माजी ने अंगूठी के लिए पूछा.. मैने बहुत ढूंढा पर नही मिली.. शाम को राजन के आने पर बोली देखो बेटा अपनी बहन को ,जो अंगूठी इतने शौक से तूने इसे दिया था इसने दे दिया है.. चुपके से.. बेटी होने की खुशी में… इतना काफी था कच्चे कान के राजन के लिए.. मुझे जलील करने लगा…

                  तीन साल बाद वही अंगूठी मैने अम्माजी की भतीजी के हाथ में देखा तो अंगूठी की तारीफ की.. उसने कहा बुआ दी थी मेरी शादी में पिछले साल..

           समय गुजर रहा था.. वन्या चौदह साल की हो गई थी.. दादाजी नही रहे.. वक्त बदल रहा था.. दोनों भाइयों और बहन की शादी हो गई थी… वन्या बड़ी हो रही थी.. उसकी सहेलियां अपने मां पापा के साथ घूमने सिनेमा देखने जाती थी.. वन्या भी जिद्द करने लगी.. राजन हॉस्पिटल छोड़कर मुझे कहीं नहीं ले गए थे, आजतक बेटी को भी इजाजत नहीं थी.. मैने हिम्मत की ओर वन्या को लेकर सिनेमा गई.. वहां इसके मैथ के टीचर मिल गए.. वन्या ने परिचय कराया… राजन बैंक से आ चुके थे,

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अम्माजी ने उनके कान भरे.. घर आते हीं वन्या दादाजी से खुश होकर सिनेमा के विषय में बताने लगी और कहा मेरे मैथ के टीचर भी मिले और मम्मी की बहुत तारीफ कर रहे थे.. अम्माजी ने राजन से कहा सुन रहे हो मैथ के टीचर से इसका बहुत पुराना याराना है.. फोन पर बात करते सुना है.. कितना समझाया रविवार को राजन के साथ सिनेमा चली जाना पर उस मास्टर के साथ पहले से हीं… मुझे भी नही ले गई.. राजन मुझे गालियां देने लगे.. मेरा बाल पकड़ा तब तक वन्या आ गई और राजन के पकड़ से मुझे छुड़ाने लगी..

वन्या को धक्का देते हुए कहा जैसी मां वैसी हीं बेटी है.. वन्या का सर टकरा गया दीवाल से खून निकलने लगा.. राजन चिल्ला रहा था और जाएगी यार से मिलने सिनेमा हॉल में.. मैं वन्या का हाथ पकड़े उसे बगल के डिस्पेंसरी ने ले गई.. वहीं से सीधे मायके चली गई… मां पिताजी और दोनों भाइयों से अपनी अब तक की व्यथा सुनाई… सभी रो रहे थे.. पिताजी बोले पगली तूने पहले क्यों नहीं बताया.. तुमसे बढ़कर कुछ है.. इज्जत प्रतिष्ठा हम दांव पर लगा देते…

                             अब तू कहीं नहीं जाएगी.. ससुराल में मां बेटे ने खबर फ़ैला दी अपने यार के साथ पकड़ा गई थी इसलिए हमने उसे भगा दिया..

                          वन्या आज मल्टी नेशनल कंपनी में एचआर है.. उसके पसंद के लड़के से पिछले साल उसकी डेस्टिनेशन वेडिंग गोवा में हुआ.. दोनो मामा और नाना हम मां बेटी के लिए जी जान से लगे रहे हैं.. मैं भी रोटरी क्लब की सक्रिय सदस्य हूं और कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी हूं जो महिलाओं के हित के लिए काम करती है…

                  समय कितना बदल चुका है.. वन्या की सास एक सप्ताह के लिए बेटे बहु के पास आई थी.. अपने बेटे से उन्होंने ने कहा देखना बेटा ऐसा न हो तू ससुराल का होकर रह जाए क्योंकि वन्या की मम्मी अकेली हैं और अपनी बेटी के पास हीं हमेशा के लिए आ कर रहे.. हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जायेगा. इतना समझदार लड़का वन्या से इस विषय में पूछ बैठा मजाक में हीं… वन्या गुस्से में मेरे पास आ गई.. मैने कुछ नही पूछा सोचा खुद हीं बताएगी.. और आज पीछे पीछे दामाद भी आ गए मनाने..

     #  स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

             वीणा सिंह 

#कान का कच्चा होना 

 

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