बहू जी भर कर खाना नहीं देती..….. – भाविनी केतन उपाध्याय 

‘क्या हुआ माँ ? ऐसे मुह बिगाड़ते हैं अपनी भोजन से? छुट्टियों में अपने मायके आई हुई काव्या ने अपनी मां रमा जी से कहा

 

‘ये भी कोई भोजन है? सब फीका फीका..!! ना नमक है ना मिर्ची..!! कोई स्वाद ही नहीं है ” रमा जी ने उदास होते हुए कहा।

 

‘माँ, अब इस उम्र में ज्यादा तेल, मिर्च मसाले वाला खाना हजम नहीं होता और भाभी ने तो आपको ध्यान में रखते हुए आलू टमाटर की सब्जी बनाई है देखो तराई वाली कैसा तेल और मसाले ऊपर आए है जिसे देखकर ही खाने का मन कर जाए “काव्या ने समझाते हुए रमा जी से कहा।

 

‘ये सब तो ठीक है पर तुम्हें पता है ना कि जबतक H. थाली में अचार वो भी तेल और मसाले का रेला बाहर निकलता हुआ ना हो तब तक मुझे खाना खाने में स्वाद नहीं आता और यह तुम्हारी भाभी है जो मुझे अचार खाने ही नहीं देती। हफ्ते में एक बार देती है वो भी चुटकी भर…!! इससे मन भरता है भला?” रमा जी ने कहा।

 

“बिल्कुल सही तो कर रही है भाभी आप का कितना ख्याल रखती है और आप है कि उन्हें ही भली बुरी कहती हैं…!! आप को पता है डॉ ने आप को नमक मिर्च सबकुछ बंद करने को कहा है फिर भी भाभी इस तरह से खाना बनाती है कि आप को इस में स्वाद लगे। पर आप की सुई तो वो अचार पर ही अटकी हुई है। मैं आज भाभी से कह देती हूँ कि आप को रोज़ चम्मच भर कर के अचार दिया जाए बिमार पड़ोगे या अपनी जान से हाथ धो बैठोगेतो भाभी को क्या करना है? अच्छा है ना भाभी को तो रोज की इस टकटक से आजादी मिल जाएगी. और माँ एक बात बताऊं इतना चटोरापन भी अच्छा नहीं…!!” काव्या ने गुस्से में कहा क्योंकि बहुत समझाने पर भी रमा जी समझ नहीं रही थी और खुद की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही थी, साथ ही अपनी बहू को सब के सामने बुरा बता रही थी कि बहु जी भर कर खाना भी नहीं देती। इस की वजह से अपने घर की इज्जत को बचाने के लिए काव्या ने आज अपनी मां को गुस्से में कहा। दरअसल रमा जी खाने की बहुत शौकीन है, उन्हें रोज़ अचार के साथ ही खाने की आदत है पर जब से उन्हें हाई ब्लडप्रेशर हुआ है तब से उनकी बहू मनीषा ने उनके खानपान का ध्यान रखते हुए कम नमक मिर्च वाला खाना बनाकर परोसती हैं और उनके भोजन में से अचार को विदा कर दिया है। अब रमा जी को यह बात हजम नहीं होती और वो आए दिन सब के सामने मनीषा को भला बुरा सुनाती है। मिलों दूर बैठी काव्या इस बात से अनजान हैं पर रिश्तेदार द्वारा पता चला तो वे छुट्टियां मनाने और सच्चाई जानने चली आई। भाभी मनीषा को अपनी मां का इतना ख्याल रखते हुए देख उसका दिल भर आया पर जब रमा जी सच्चाई मानने को तैयार नहीं हुई तो गुस्से में काव्या ने कह दिया।



 

काव्या की बात सुनकर रमा जी सोच में पड़ गई कि सच ही तो हैं अगर मैं ज्यादा नमक मिर्च वाला और अचार खाऊंगी तो परेशानी तो मुझे ही होंगी इसमें बहू का क्या जाएगा? वो तो बेचारी सुबह से शाम तक मेरा कितना ख्याल रखती है और में हूँ कि उसे भला बुरा कहती हूँ

 

आंखों में आसू लिए रमा जी ने कहा, ” बेटी, तुम सच कह रही है। मैं खाऊंगी तो मैं बिमार पडूंगी उसमें मनीषा का क्या जाएगा ? आज तुम्हारे गुस्से ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया जिसमें मुझे सच्चाई नजर आई। मेरी बेटी अचार की तरह ही है कभी खट्टी तो कभी तीखी..!! मैंने ही मेरी बहू को क्या क्या नहीं कहा पर वो तो मेरी सेहत के साथ कभी खिलवाड़ नहीं किया। आज से वो जो भोजन देगी मैं खुशी खुशी खा लूंगी आइंदा से तुम्हें मेरी माँ बनकर गुस्सा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि मेरे पास मीठे अचार सी मेरी बहू है। “

 

‘अच्छा गुस्सा कर के खट्टी और तीखी बनूं मैं और मीठी मेरी बहू? क्या जमाना आ गया है सुना भाभी आप ने? आज बेटी पराई हो गई और बहू अपनी हो गई” हंसते हुए काव्या ने कहा तो मनीषा ने गरमागरम फुल्का रखते हुए रमा जी को गले लग गई।

 

दोनों सास बहू को गले मिलते देख खुशी से उछलते हुए काव्या ने कहा, ” अच्छा, चलो भाई, अब यहां परायों का क्या काम ? अपने जो मिल गए।” ” दीदी, ये सब आप की वजह से तो हुआ है ” कहते हुए मनीषा उसके पैर छूने लगी तो काव्या ने उसे गले लगा लिया।

 #अपने_तो_अपने_होते_हैं 

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

भाविनी केतन उपाध्याय 

 

धन्यवाद

 

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