“बहू हो तो ऐसी” – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

मघु जी के पति भरी जवानी में उन्हें और उनके दोनों बच्चों मयंक और मीनू को छोड़कर चल बसे थे जब वे केवल आठ और छः साल के थे!

पति की सरकारी नौकरी के कारण उनके जाने के बाद उन्हें पेंशन मिलने लगी!उनके ससुराल का घर था!यही गनीमत थी!

उन्होंने उसी स्कूल में नौकरी कर ली जहां मयंक और मीनू पढ़ते थे!

पति के जाने के बाद मधु जी ने अपना पूरा जीवन अपने दोनों बच्चों की परवरिश करने में लगा दिया!

समय बीतता गया! बच्चे बड़

 हो गए! 

बेटी का ब्याह समीर से कर वे निश्चिंत थीं!

मघु जी का बेटा मयंक देखने में गोरा चिट्टा स्मार्ट एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत था!अच्छी तनख़्वाह के साथ रहने को घर और गाड़ी भी मिली थी!

मयंक के लिए अच्छे अच्छे बड़े बड़े घरों के रिश्ते आ रहे थे!पर मधु जी ने तय कर रखा था भले ही लड़की साधारण परिवार की हो,उसके पिता बहुत पैसे वाले न हों, वह देखने में बहुत खूबसूरत भी न हो पर संस्कारी व पढ़ी लिखी और परिवार को जोड़कर रखने वाली हो!जो रिश्तों का मान करना और रिश्ते निभाना जानती हो!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

औपचारिकता – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

एक दिन मधु जी ने एक काॅलेज के फंक्शन में विनी को देखा!

गणेश वंदना पर विनी की प्रस्तुती देखकर पंडाल में बैठे विशिष्ट अतिथी गण और श्रोता मंत्र मुग्ध होकर एकटक उसका सुरीला गायन और नृत्य देखते ही रह गए! तालियों की गड़गड़ाहट से वातावरण गूंज उठा!

मधु जी ने महसूस किया कि उनकी बहू ढूंढने की खोज आज जैसे पूरी हो गई! 

अगले दिन सुबह सुबह काॅलेज पहुंच कर वे प्रिंसिपल से मिली और विनी के बारे में पूछा!

पता चला बरसों पहले विनी को कोई वनिताश्रम के पालने में छोड़ गया था!वहीं पल बढ़कर वह बड़ी हुई!

यह वनिताश्रम शहर के जाने माने प्रतिष्ठित लोगों की स्वयंसेवक संस्था द्वारा संचालित था!जिसमें बच्चियों के सर्वांग विकास का पूरी तरह ख्याल रखा जाता था!

 वनिताश्रम की वार्डन सीमा जी एक सुलझी हुई महिला थीं!उनके आगे पीछे कोई नहीं था आश्रम में आने वाली हर बच्ची की परवरिश उन्होंने अपनी औलाद की तरह से की!उन्होंने उन बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ हर क्षेत्र में आगे बढ़ने में भी मदद की,उन्हें जीवन मूल्यों का अर्थ समझाया,उन्हें अच्छे संस्कार दिये!विनी को वे अपनी बेटी की तरह प्यार करती थी!छुट्टी के दिन जब और लडकियां टी वी देखती या घूमने फिरने जाती विनी सीमा जी के घर उनके साथ कभी खाना बनाने,कभी कढ़ाई सिलाई,बाग बगीचे में उनकी मदद करती!

विनी दिखने में सुंदर,सौम्य और भोली भाली सी लड़की थी! भगवान ने उसे सुरीली आवाज से नवाजा था!उसकी वाणी में मानो सरस्वती का वास था!गायन के साथ साथ वह नृत्य कला में भी पारंगत हो गई थी!

काॅलेज का कोई फंक्शन विनी के प्रदर्शन के बिना अधूरा रहता!उसके चेहरे पर सजी मुस्कान हर किसी को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेती!

विनी के बारे में सब मालूमात करके मधु सीमा जी से मिलने पहुंची!

जैसा सब लोगों से सीमा जी के बारे में सुना था वे उससे भी बढ़कर निकली!सौम्यता की साक्षात प्रतिमा!उनके चेहरे पर अलग सा तेज देखकर मधु प्रभावित हुए बिना न रह सकी!उन्हें समझते देर न लगी कि उनकी छत्रछाया में पली बढ़ी लड़की कैसी होगी!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

‘ पहल तो करें ‘ – विभा गुप्ता

मधु ने सीमा जी से विनी का हाथ मांगा.

सीमा जी ने मधु और उनके परिवार की तहकीकात करके विनी और मयंक के ब्याह की मंजूरी दे दी!फिर भी सीमा जी और मधु ने विनी से मयंक के बारे में उसकी राय मांगी.

विनी और मयंक ने एक दूसरे से बात की और शादी की हामी भर दी!

विनी मयंक की दुल्हन बनकर मधु जी के घर आ गई! 

आते ही विनी ने पूरे घर की बागडोर संभाल ली!

कुछ अरसे पहले मधु जी को दिल का दौरा पड़ा था इसलिए उनकी सेहत ठीक नहीं रहती थी!ऐसे में विनी कोशिश करती कि उनका ख्याल रखे,उन्हें पूरी तरह से आराम दे!

मधु जी को लगता था अब तक तो पूरी ज़िन्दगी बच्चों की देखभाल में लगा दी !अब जब उनके सुख के दिन आऐ तो भगवान ने दिल की बीमारी लगा दी!

मयंक और विनी हर कोशिश करते कि वे मधु जी का ध्यान उनकी बीमारी से हटाकर उन्हें खुश रखने की कोशिश करते!

एक दिन मधु जी ने मयंक और विनी को बुलाकर उन्हें अपनी वसीयत करने का निश्चय किया!

उनके पास जो थोड़ा-बहुत जेवर था उसे आधा विनी और आधा अपनी बेटी मीनू को देना तय किया!घर वे चाहती थी मयंक के नाम कर दें!

यह जानकर विनी ने कहा “मां मैं आपसे क्षमा चाहती हूं पर एक बात कहना चाहती हूं आप का साया हम पर सदा बना रहे अभी आपको हमारे लिए जीना है!भगवान आपको लंबी उम्र दें!

मैं तो अनाथ थी!मां-बाप क्या होते हैं जाना नहीं,रिश्तों का पता मुझे आपके साथ रहकर चला!

इस कहानी को भी पढ़ें:

हम लोग – देवेन्द्र कुमार

वनिताश्रम में सब मुझपर तरस खाते थे, अपनों का प्यार इस घर में आकर मिला!बहन भाई के अटूट बंधन को मीनू दीदी और समीर जीजा जी से समझा!

मेरे मां-बाप ने तो मुझे पैदा होते ही छोड़ दिया था !मुझ अनाथ को आपने इतना प्यार दिया कि कभी महसूस ही नहीं हुआ कि मैं आपकी बेटी नहीं बहू हूं!जन्म के मां-बाप को खो चुकी हूं,आपको नहीं खोने दूंगी!

दूसरी बात घर पर जितना हक मयंक का है उतना ही हक मीनू दीदी का भी है!

शादी का मतलब ये नहीं कि बेटी का उसके मां-बाप के घर से उसका हर हक खत्म हो जाऐ!मां !हम सबको आपके साथ ऐसे ही हंसी खुशी रहना है!बस आपको हमारे ठीक रहना है!आगे से वसीयत की बात न करें!”

विनी की बातें सुनकर मघु जी की आंखें भर आई! वे बोली “जरूर मैंने पिछले जनम में मोती दान किये होंगे जो ऐसी समझदार बहू मिली “!

उन्हें विश्वास हो गया विनी घर को तोड़कर नहीं जोड़कर रखेगी!उनके जाने के बाद भी उनकी बेटी का मायका आबाद रहेगा!

कुमुद मोहन 

स्वरचित-मौलिक 

#हम भाग्य शाली हैं जो ऐसी बहू मिली

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!