“ मम्मी जी आज शाम की पार्टी में कौन से कपड़े पहनूँ एक बार मुझे बता दीजिए… नहीं तो फिर…।” सुकन्या ने सासु माँ गरिमा जी से पूछा
“ हाँ हाँ आकर बता रही हूँ…।” कह गरिमा जी काम में लग गई
कुछ देर बाद सुकन्या के कमरे में जाकर उसकी पूरी अलमारी खंगालते हुए बोली ,“ पता नहीं कहाँ से ऐसी रंगत वाली बहू ले आया है समृद्ध जिस पर कोई रंग फबता ही नहीं…।”
किसी तरह एक साड़ी निकाल कर गरिमा जी सुकन्या को देती हुई बोली,” ये वाली साड़ी ही पहनना और मैचिंग ज्वैलरी पहन लेना.. वैसे भी तुम कुछ भी पहनो… अच्छी तो लगोगी नहीं।”तानों के साथ गरिमा जी अक्सर सुकन्या का दिल दुखाने से बाज नहीं आती थी ।
ख़ैर शाम को घर में गरिमा ने भव्य पार्टी का आयोजन किया था….सुकन्या गरिमा जी के पति विभोर जी के दोस्त महेश जी की इकलौती बेटी …. समृद्ध को पता नहीं वो शुरू से ही बहुत भाती थी फिर अपनी पढ़ाई के सिलसिले में वो विदेश चला गया था जब लौट कर आया तो पता चला सुकन्या का विवाह जहाँ भी तय होता उसकी रंगत की वजह से इंकार कर दिया जाता…. लड़के वाले पैसे भी बहुत माँगते जिसे देने से महेश जी कभी मना नहीं करते पर लड़के को सुकन्या पसंद नहीं आती ऐसे में हताश सुकन्या जब समृद्ध से मिल कर रोते हुए ये सब बता रही थी तभी उसने कहा,“ सुकू मुझसे शादी कर लो ना… क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं…?”
“ ये कैसी बात कर रहे हो समृद्ध…एक तुम ही तो हो जो आज तक मुझसे कभी दोस्ती नहीं तोड़े हो….मैं जैसी हूँ वैसी स्वीकार करते रहे… पर तुम पापा के दोस्त के बेटे हो उपर से आँटी जी को तो मैं जरा भी पसंद नहीं आती… वो मुझसे कभी सीधे मुँह बात तक नहीं करती… मैं तुम्हारे ज़िन्दगी बरबाद नहीं कर सकती… प्लीज़ आगे से ऐसी बातें कभी मत कहना..।” सुकन्या ने कहा
देखते देखते एक महीना बीत गया… पता चला सुकन्या की शादी तय हो गई है…. लड़का फ़ोटो देख कर हाँ कर दिया है,…परिवार वाले पैसे की भरपूर माँग कर रहे हैं जिसे महेश जी ख़ुशी ख़ुशी दे रहे हैं ताकि बेटी का वैवाहिक जीवन सुगम रहे साथ ही तसल्ली इस बात की है कि लड़के ने हाँ कर दी है… सारी तैयारी के बाद शादी वाले दिन जब लड़के ने सुकन्या को देखा तो वो मंडप में जाने को तैयार ही नहीं हुआ… उसे लग रहा था तस्वीर वाली लड़की तो ये है ही नहीं….महेश जी का पूरा परिवार सदमे में आ गया था….तब हिम्मत कर समृद्ध ने अपने दिल की बात अपने पिता और महेश जी से कह दी…
“ बेटा जी आप बहुत अच्छे और समझदार हो फिर भी कहूँगा… सुकन्या पर कोई एहसान कर के शादी मत करना…. उसकी शादी कहीं नहीं भी होती तो भी हम बेटी को अपने पास रख सकते है ।” महेश जी ने हाथ जोड़कर कहा था
“ मैं सब सोच समझ कर बोल रहा हूँ अंकल जी…. सुकन्या का दिल मुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता… उसका स्वभाव सबसे अलग है।”समृद्ध ने कहा
सुकन्या को किसी तरह मना कर समृद्ध से शादी करवा दी गई थी पर गरिमा जी सुकन्या को दिल से अपना नहीं पा रही थी…उन्हें घर में हर चीज़ ख़ूबसूरत पसंद थी…और उनकी नज़र में बहू उनकी सोच के जैसी तो बिलकुल भी नहीं थी इसलिए उसे बातों से शर्मसार करने से वो बाज नहीं आती थी।
सुकन्या बहु बन कर जब से आई यही कोशिश करती रहती कि गरिमा जी उससे खुश रहे वो हर काम उनसे पूछ कर ही करती …. उसकी कोशिश यही रहती कि मम्मी जी को मेरी वजह से शर्मसार ना होना पड़े… इसी चक्कर में आज की पार्टी के लिए कपड़े भी वो गरिमा जी से ही पूछ कर पहनना चाहती थी।
तैयार हो कर जब सुकन्या पार्टी में पहुँची तो सभी उसकी तरफ़ आश्चर्य से देख रहे थे…गरिमा तेरी बहू तो….
उनकी ख़ास सहेली ने जैसे ही बोलने को मुँह खोला गरिमा जी बिना सुकन्या की तरफ़ देखे कहने लगी,“ हाँ यार मेरे बेटे को पसंद आ गई वर्ना मैं तो कुछ और ही सोच कर रखी थी अब तो जो है यही है….।” कह ज्यों ही वो पलट कर सुकन्या की तरफ़ देखी खुद ही आश्चर्य में पड़ गई…. ये तो वो साड़ी है ही नहीं जो वो पसंद कर के उसे पहनने बोली थी।
“ ये क्या पहन कर आ गई तुम… तुमसे कहाँ था ना वो वाली साड़ी पहन कर आना…।” धीमे से गरिमा जी ने सुकन्या से कहा
तभी पार्टी में आई महिलाएँ सुकन्या के पास आई और बोली,“ बहुत ख़ूबसूरत लग रही हो….. ये किसकी पसंद है।”
“ जी ये समृद्ध ले कर आए ज़िद्द करके पहनने बोले… मैं बोली भी मेरे कॉम्पलेक्स पर ये काली साड़ी …. पर वो बोले तुम पहनो तो सही….मैं बदल कर आती हूँ।”गरिमा की ओर देखते हुए सुकन्या ने कहा
“ अरे नहीं सुकन्या बहुत ग्लैमरस लग रही हो…. बदलने की ज़रूरत नहीं है…. सच में गरिमा तुम्हारे बेटे की पसंद वाक़ई बहुत अच्छी है।” गरिमा जी की दोस्त ने सुकन्या के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा
गरिमा जी कुछ कहने को हुई तभी उनके पति पास आकर उनकी हाथ धीरे से पकड़ कर किनारे पर ले गए और बोले,” अब तो शर्मसार करना बंद करो…. कोई अपनी ही बहू का ऐसे सबके सामने अपमान करता है क्या… मैं नहीं चाहता तुम कोई भी तमाशा खड़ा करो.. सब सुकन्या की तारीफ़ कर रहे हैं थोड़ा तुम भी तो कर ही सकती हो!”
गरिमा जी चेहरे पर एक मुस्कान लेकर सुकन्या के पास आई और बोली,“ हाँ बहुत अच्छी लग रही हो…आओ अब सब से मिलो..।” कह गरिमा जी सबसे सुकन्या को मिलवाने लगी
सब सुकन्या की तारीफ़ कर रहे थे…. पहली बार गरिमा जी ने महसूस किया उनकी बहू को वो जैसा समझ रही है वो वैसी नहीं है…उसके अंदर एक अलग ही आत्मविश्वास है जो उसके पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है और जिसे गरिमा जी की वजह से ही सुकन्या दबा कर रखा करती है ।
पार्टी के बाद सब चले गए…. दूसरे दिन गरिमा जी की पार्टी की थकान की वजह से तबियत नासाज़ लग रही थी… सुकन्या ने उन्हें बिस्तर से उठने नहीं दिया… बहुत अच्छी तरह से उनकी सेवा की….. ये सब देख गरिमा जी को अपने आप में ग्लानि महसूस हो रहा था… दो महीने से सुकन्या बिना कुछ बोले गरिमा जी के दिल में जगह बनाने की कोशिश कर रही थी… पर उनके उपर तो रंगत की परत चढ़ी हुई थी जिसके आगे सुकन्या का सुन्दर दिल व्यवहार वो देख ही नहीं पा रही थी…
“ सुकन्या मैंने बहुत बुरा किया ना तुम्हारे साथ…मैं ना केवल अपने पति और अपने बेटे की पसंद को नापसंद करती रही बल्कि उसके साथ बहुत कटु व्यवहार भी किया फिर भी तुमने मेरी किसी बात पर विरोध नहीं जताया …. ना समृद्ध से ना विभोर से कभी कुछ कहा… यहाँ तक की अपने माता-पिता के पास भी मेरी तारीफ़ करती रही…हो सके तो मेरे व्यवहार के लिए माफ कर देना।” गरिमा ने सुकन्या से कहा
“ बिल्कुल नाराज़ नहीं हूँ मम्मी जी… आपकी जगह कोई भी होता तो यही करता… मेरे मन में बस यही रहता था कि आपको दुखी ना करूँ… मम्मी जी शक्ल सूरत और रंग तो जो है उसे बदल नहीं सकती पर अपना व्यवहार तो बदल ही सकते हैं… बस मैं अपना व्यवहार अच्छा रखना चाहती थी और देखिए आपने आज मुझे दिल से अपना भी लिया मुझे और कुछ नहीं चाहिए… बस आपके प्यार की कमी थी इस घर में अब वो भी मिल गया ।” सुकन्या गरिमा जी का हाथ पकड़कर बोली
गरिमा जी को आज सुकन्या के हाथ की पकड़ में पहली बार अपनेपन का एहसास हुआ….शायद दिल से पहली बार जो बहू को अपना पाई थी।
मैं यहाँ किसी रंग भेद की बात नहीं कर रही…हम सब अलग अलग है …जैसा भगवान ने हमें बनाया… हम अपने व्यवहार से किसी के दिल में जगह बनाते हैं… रंगत या सूरत से जगह क्षणिक बनती हैं व्यवहार से हमेशा के लिये अमिट छाप छोड़ जाते हैं ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#वाक्यकहानीप्रतियोगिता
# अब तो शर्मसार करना बंद करो…