“हैलो माँ हम लोग मथुरा जाने का सोच रहे है, तुम बोल रही थी ना तुम्हारा बहुत मन है मथुरा घूमने का तो तुम यहां आ जाओ फिर हम जाएंगे। तुम आओगी ना? टिकट करवा देती हूँ। बस तुम ये बता दो कब आओगी फिर हम जाने की तैयारी करेंगे।” राशि ने माँ से पूछा।
“बेटा मैं अभी कैसे बोल सकती हूँ, तुम्हारे भाई-भाभी से पूछना पड़ेगा।”
“क्या माँ जब देखो तब तुम आने से मना करती रहती हो, ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी” कहकर राशि ने फोन कट कर दिया।
“क्या हुआ मम्मी जी दीदी का फोन था? क्या बोल रही थी?” कहती हुई राशि की भाभी निशा मम्मी के पास आकर उनका उतरा चेहरा देखकर पूछने लगी।
“राशि लोग मथुरा जाने का सोच रहे हैं,तो मुझे भी बुला रहे। पर मैं अभी कैसे जा सकती हूँ,अंश अभी छोटा (चार साल)है और वंश तो अभी आठ ही महीने का है। तुम्हारी जिम्मेदारी बढ़ जायेगी। अभी मैं हूं तो आराम से तुम अपने साथ साथ हम सबका ध्यान रख पाती हो। मेरे चले जाने से परेशान हो जाओगी। मैं राशि को समझा कर मना कर दूंगी” कहकर माँ सुमित्रा जी अपने कमरे में चली गईं।
सुमित्रा जी का बहुत दिनों से मन था एक बार मथुरा वृन्दावन घुम आऊं फिर पता नहीं कब मौका मिले । बेटी राशि उधर ही पास में रहती थी तो आना जाना आसान था।
उधर निशा को बुरा लग रहा था कि मम्मी जी उसकी वजह से नहीं जा रही। कुछ सोचते हुए वो राशि को फोन कर दी “हैलो दीदी नमस्ते।”
“हाँ निशा बोलो सब ठीक तो है, अभी मम्मी से मेरी बात हुई। सोचा उनको घुमा दूं क्योंकि अब कुछ दिनों में हमारा तबादला हो जायेगा तो इधर आना मुश्किल होगा।”
“दीदी आप लोग कब जायेंगे? ऐसा कीजिए जाने का डेट बता दीजिए तो उसके दो दिन पहले मम्मी जी को भेज देंगे। मुझे भी पता वो बहुत बार जाने की इच्छा जताई है पर हमारी वजह से नहीं जा पाईं।” निशा राशि को बोली
ठीक है फिर अगले सप्ताह हम जाने की तैयारी करते हैं शनिवार और रविवार को घूम लेंगे तुम ऐेसा करो बुधवार को उनकी टिकट करवा दो, मैं दिल्ली से उनको यहाँ ले आउंगी। अभी एक सप्ताह है मैं इंतजार करूंगी तुम मम्मी को बता देना “कहकर राशि फोन काट दी।
निशा जाकर मम्मी जी से बोली “मेरी दीदी से बात हो गई है आप आराम से जाइए एक सप्ताह की तो बात है मैं सब संभाल लूंगी।”
सुमित्रा जी थोड़ी आश्वस्त हो गई पर उनको बहु को ऐसे छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लग रहा था।
जाने की सब तैयारी हो गई। राशि भी अपनी मम्मी का इंतजार कर रही थी।अब एक दिन ही बचे है मम्मी के आने में राशि ये सोच ही रही थी कि उसके मोबाइल की घंटी बजी देखा तो मम्मी का ही फोन है। चहकते हुए फोन उठाया और बोली “माँ बहुत लंबी उम्र है तुम्हारी अभी यहीं सोच रही थी परसों इस वक्त तुम मेरे साथ होगी।”
“बेटा मैं नहीं आ पाउंगी, तुम नाराज़ मत होना। तुम लोग चले जाओ। मुझे फिर कभी घूमा देना।”परेशान स्वर में सुमित्रा जी बोली
“क्यों माँ अब क्या हुआ आपको? आपको तो बस बहू की ही चिन्ता रहती। एक ही बेटी हूँ आपकी फिर भी आपको आपकी बहुएं ही प्यारी। आप मेरे लिए सोचती ही नहीं, मुझे प्यार भी नहीं करती।”राशि उदास हो गई
“बेटा वंश की तबियत ठीक नहीं है पता नहीं कल से रोये जा रहा दूध भी ठीक से नहीं पी रहा। मैं ऐसी हालत में उनको छोड़ कर घूमने जाने का सोच भी नहीं सकती। तुम भी तो नहीं चाहोगी ना भतीजा बीमार है और मैं उसको छोड़ कर आ जाऊ।”
“पर माँ हमने पूरी तैयारी कर ली ,तुम्हारी आने की टिकट भी है कल ,सब कैंसिल करना पड़ेगा। राशि दुःखी हो गई पर भतीजे की चिंता उसे भी थी, वो बोली ठीक है माँ वो तो हम तुम्हें ही घुमाने के लिए प्लानिंग कर रहे थे।तुम वंश का ध्यान रखना।”
“बेटा मायूस मत हो। निशा भी मुझे यही बोल रही आप जाइए पर बेटा सोच कल मैं तेरे पास चली भी आऊ ना तो मैं खुश रहूंगी ना मुझे घूमने में मजा आयेगा। यहां रहूंगी तो निशा को सहारा रहेगा। बेटा जैसे तुम मेरी बेटी हो मेरी सब बहु भी मेरी बेटी ही है। अगर उनका प्यार और सम्मान पाना है तो उनको बहु नहीं बेटी समझना होगा।आज जब उसको मेरी जरूरत है और मैं उसके पास नहीं रहूंगी तो मान लो कल मुझे कुछ हुआ तो वो मेरी सेवा कैसे करेंगी?बेटा रिश्ता तो यही है ना सुख दुःख में एक दूसरे को समझे। वो मेरे पास है कुछ हुआ तो तुम से पहले वो देखेगी। तुम तो आओगी तब देखोगी।”सुमित्रा जी ने बहुत प्यार से राशि को समझा दिया।
कुछ दिनों बाद पता चला सुमित्रा जी की तबियत खराब हो गई। कोरोना का ऐसा प्रकोप फैला कि लोग बचते बचाते भी उसकी चपेट में आने लगे। जांच से पता चला उनको कोरोना हो गया। निशा ने अपने दो छोटे बच्चों के साथ पति और सास सबका बखूबी से ध्यान रखा।
राशि प्रतिदिन अपनी मम्मी से बात करती तो उसकी मम्मी बस यही बोलती “बेटा निशा बहुत ध्यान रखती मेरा।देख उस वक्त मैंने कहा था ना बहू को मेरी जरूरत है छोड़ कर कैसे आऊं।आज वो भी मुझे नहीं छोड़ रही।”सास बन कर बहु को बेटी बनाने से बहू भी माँ जैसा प्यार देती बेटा।”
राशि भी जानती है उसकी मम्मी कभी उसकी भाभी और उसमें अंतर नहीं करती। जब भी कुछ खरीदती बेटी बहु के लिए एक जैसा। सुमित्रा जी के बेटे भी अक्सर कहते मम्मी आप हमें ही डांटती है बहुओं को कुछ नहीं बोलती।
सुमित्रा जी हँस कर कहा करती “तुम तो अपने हो प्यार और डाँट दोनों बर्दाश्त कर लोगे पर बहु दूसरे घर से आई उसको अपना बनाना जरूरी है।बेटा मैं बेटियों की माँ हूँ। डाँटती तो मैं बहुओं को भी हूँ उनकी गलती पर।बेटी गलती करे तो उसको भी डाँट सकती हूँ ।बहू कब बेटी बन गई पता ही नहीं चला।”
राशि भी अकसर माँ से लाड़ करती कहाँ मैं सोचती थी अकेली बेटी हूँ मुझे प्यार दोगी पर तुमने तो भाभी को मेरे हिस्से का भी प्यार दे दिया ।
सास -बहू का रिश्ता हमेशा विवादों में ही घिरा होता है पर कुछ घर ऐसे होते हैं जिनमें आपसी समझ होती।
आप कहानी के अच्छे पहलू को समझने की कोशिश करे।🙏
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Very nice story and need of the time.
Absolutely