“ सुनो जी, अब तो अभि की शादी कर ही देनी चाहिए, तीस का होने वाला है”
रेवती ने पति नवेंदु को जूस का गिलास पकड़ाते हुए कहा।
“ अरे भई, मैनें कब मना किया, मेरे गले में तो यह ढ़ोल बाईस की उम्र में ही बांध दिया गया था, नवेदुं ने चुटकी लेते हुए कहा
“ अच्छा, तो मैं ढ़ोल हूं”, रेवती ने आंखे तरेरते हुए कहा।
“ जानेमन, मैं तो मजाक कर रहा हूं,अरे मैं तो खुद चाहता हूं घर में रौनक हो, काव्या बिटिया की शादी को पांच साल हो गए,उसके बाद तो घर सूना पड़ा है, तुम्हारे डाक्टर बेटे को तो मरीजों से ही फुर्सत नहीं मिलती । नौकरी तक तो फिर भी ठीक था, जबसे अपना क्लीनिक खोला है, उसकी शक्ल भी मुशकिल से दिखाई देती है।
अभिनव डैंटल डाक्टर था, कुछ साल नौकरी के बाद उसने अपने घर की उपर वाली मंजिल पर ही क्लीनिक खोलने की इच्छा जताई तो माता पिता सहर्ष मान गए। कोठी काफी बड़ी थी। तीन साल पहले रेनोवेशन वगैरह करके सब सैटप हो गया था। सब आधुनिक उपकरण। नवेदुं भी अच्छी पोस्ट से रिटायर हुए थे,रेवती ग्रेजुएट थी,
शादी से पहले किसी प्राईवेट फर्म में लगी हुई थी, शादी के बाद भी कुछ समय नौकरी की, मगर परिवार की जिम्मेवारियों के चलते छोड़ दी।दरअसल रेवती तेज स्वभाव की थी, उसकी ससुराल में ज्यादा बनी नहीं, संयुक्त परिवार था, उसने नौकरी की धौंस जमानी चाही जो कि चली नहीं। नवेंदु का अच्छा खाता पीता परिवार था, किसी को रेवती की नौकरी में दिलचस्पी नहीं थी,
परंतु किसी ने कुछ कहा भी नहीं। नवेदुं ने शांति बनाए रखने के लिए अपना ट्रांसफर दूसरे शहर में करवा लिया।समय तो पंख लगाकर उड़ ही जाता है। दोनों बच्चे बड़े हो गए। बिटिया अपने घर चली गई।
उन्के मन के किसी कोने में डर सा था कि इसकी बहू से भी बन पाएगी या नहीं।क्योंकि रेवती की कुछ आदतों से परेशान तो नवेदुं भी थे, मगर कुछ कह नहीं पाए, वैसे भी वो शांत स्वभाव के थे।
अभिनव से जब शादी की बात की तो हमेशा टालने वाले ने पहली बार हां की तो माता पिता की खुशी का ठिकाना न रहा। अभिनव की इच्छा थी कि लड़की भी दांतों की डाक्टर ही हो। रिशते तो पहले से ही आ रहे थे। ऐम. बी. बी. एस. ऐम. डी. के भी। चलो जल्दी ही डेंटल डा. लतिका घर की बहू बन कर आ गई। शादी की गहमागहमी में दस दिन निकल गए।
क्लीनिक तो चलता ही रहा क्योंकि स्टाफ तो था ही, क्लीनिक का प्रवेशद्वार घर के अंदर से तो था ही, साईड से भी था।दोनों सुबह से लेकर रात तक मरीजों को अटैंड करते। अभिनव के साथ साथ लतिका को भी मरीज बहुत पंसद करते, वो थी भी बहुत प्यारी, गोरी, लंबी, पतली और साफ्ट स्पोकन। हालात ये थे कि कुछ मरीज तो उससे ही इलाज करवाना पंसद करते।
क्लीनिक जाने से पहले लतिका रसोई में भी हाथ बंटाती क्यूकिं नौकरानी के हाथ का बना खाना रेवती को पंसद नहीं था। अभिनव और नवेदुं को तो कोई फर्क नहीं पड़ता था, लेकिन रेवती की अपनी ही सोच थी। रात देर तक काम करना और फिर रसोई में जाना लतिका के लिए बहुत मुश्किल था। सुबह तो वह फिर भी मैनेज कर लेती,
मगर रात को वह थक कर चूर हो चुकी होती। लगभग छ: महीने हो चुके थे। कुछ दिन पहले उसके सास ससुर एक हफ्ते के लिए किसी रिश्तेदारी में गए थे तो लतिका ने खाने में कामवाली सुमन की मदद ली। वो तो बहुत अच्छा खाना बनाती और थी भी साफ सुथरी। फुल्के तो वो रेवती और लतिका से भी ज्यादा हल्के और फूले फूले बनाती।
रेवती के आने पर फिर वही काम का सिलसिला शुरू। अब तो वो और भी टोकाटोकी करती। एक इतवार को अल्मारी सैट करने में उसने सुमन को साथ लगा लिया तो बाद में रेवती ने इस पर भी एतराज किया कि इन नौकरों का क्या भरोसा। अभिनव सब देख कर भी अनदेखा करता।
लतिका ने कई बार अभिनव से बात करने की कोशिश की, लेकिन वो ध्यान न देता। नवेंदु चाहते हुए भी कुछ न कह पाते। जहां एक तरफ मरीज बढ़ रहे थे, वहीं लक्ष्मी की भी खूब कृपा थी।जहां काम करना जरूरी था, वहां नई तकनीक से भी अपडेट होना जरूरी है और उसमें भी समय लगता और अब रेवती के मन में दादी बनने की चाहत भी थी।
तीन साल होने को आए। अब तो कई बार मन न होने पर लतिका कोई न कोई बहाना बना कर रात को सीधा अपने कमरे में चली जाती और खाना भी वहीं मंगवा लेती।
उसने कई बार अभिनव से कहा भी कि न नौकरों की कमी है न पैसों की, फिर ये रसोई के काम की टेंशन क्यों। आखिर बहू भी तो इंसान है। उसने देखा था कि काव्या जब भी आती उसे समझाती कि ममी शुरू से ही ऐसी है,उसे अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होगी। काव्या लतिका की ननद होने के साथ साथ दोस्त भी थी।
लेकिन रेवती को कौन समझाए। इसी बीच लतिका प्रैगनेंट हो गई। उसकी तबियत खराब रहने लगी। इधर मरीज उधर रसोई, वो खड़ी भी न हो पाती।ज्यादातर दांतों के डाक्टर का काम भी खड़े होकर ही करना पड़ता है।अब वो क्लीनिक में बैठकर कुछ खास मरीज ही अटैंड करती, और डाक्टर भी थे।
अगले दिन इतवार था। क्लीनिक बंद था, लतिका आराम कर रही थी, एक मरीज का एमरजैंसी फोन आया , अटैंड करना पड़ा। लतिका का सांतवा महीना चल रहा था, अभी वो नीचे उतर ही रही थी कि रेवती की आवाज आई” लतिका, जरा ये पूड़िया तल दे, बाकी काम तो हो गया” लतिका की हिम्मत जवाब दे चुकी थी।
वो चुपचाप जा कर सोफे पर आंख बंद करके बैठ गई। रेवती दनदन करती हुई वहां आई, अभी वो कुछ बोलने ही वाली थी कि लतिका ने कहा, “ मांजी, आपको बहू नहीं, चलता फिरता रोबोट चाहिए, जो कि मैं नहीं बन सकती”। और वो जाकर अपने कमरे में लेट गई। रेवती को काटो तो खून नहीं और नवेदुं सोच रहा था कि एक दिन तो ये होना ही था।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
#आपको बहू नहीं चलता फिरता रोबोट चाहिए—