मां आपके लिए चाय लाऊं या काफी…
रोशनी ने अपनी सासू मां से पूछा।
कुछ नहीं बेटा, तुम रुको मैं बनाती हूं, रोशनी का हाथ पकड़ कर रेखा जी ने रोशनी जी ने कुर्सी पर बैठा दिया।
अरे मां…आप भी कैसी बात करती हैं, मैं कह रही हूं न मैं बनाती हूं।
नहीं-नहीं बेटा तुम भी सुबह से कितना काम करती हो,थक गई होगी।अब देखो जब तुम इस घर में नहीं थी तब सारा काम मुझे ही करना पड़ता था। अगर मैंने एक कप चाय बना दी तो क्या फर्क पड़ता है,और इतना कहकर रेखा जी रसोईघर की ओर बढ़ चली।
रोशनी मेज पर बैठकर मां का इंतजार ही कर रही थी,इतने में दरवाजे की घंटी बजी,और घर के बगल वाली कमला ताई अंदर आ गई।
अरे…तुम यहां रेखा कहां है?…कमला ताई ने आंखें तरेरते हुए रोशनी से कहा।
आइए बैठिए कमला दीदी, मैं यहां हूं ये लीजिए गरमा गरम चाय पीजिए, रोशनी लो बेटा, तुम भी ले लो।
ये क्या कमला ज्यादा बहुओं को सिर पर चढ़ाना ठीक बात नहीं है।
जब रोशनी इस घर में है फिर तुम रसोईघर में क्या कर रही थी,ये क्या इस घर में आराम करने आई है,गुस्से में कमला रोशनी को घूरे जा रही थी।
कोई बात नहीं कमला दीदी।
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अरे ऐसे कोई बात क्यूं नहीं,वैसे भी मेरी बात सुनता ही कौन है कमला की आवाज में तेजी साफ झलक रही थी।
रोशनी को कमला की बातें अच्छी नहीं लग रही थी लेकिन दो बड़ों के बीच में उसने बोलना उचित नहीं समझा।
आखिर में रेखा जी ने इशारे में रोशनी को अंदर जाने के लिए बोला।
रोशनी उठ कर अंदर चली गई,मन ही मन सोच रही थी कि मेरी सासू मां ने आज तक कभी ऐसा नहीं कहा,कभी मुझमें और नेहा दीदी(ननद) में फर्क नहीं किया।
शांत हो जाइए कमला दीदी हौले से रेखा जी ने माहौल संभालने की कोशिश की।
खैर आज आपका कैसे आना हुआ दीदी?
क्या बताऊं रेखा,अब तुमसे क्या छिपाना वो रोहिणी खुद तो मायके चली ही गई है, मेरे पोते को भी साथ ले गई,और जिद पर अड़ी है कि उसे घर में अलग रहना है,जब देखो बंटवारे की बात।
मैं तो तंग आ गई हूं रोज की चिक चिक से,सोचती हूं थोड़े दिन के लिए बेटी के घर चली जाऊं।
रेखा जी सारी बातें ध्यान से सुन रही थी।कमला जी की बातें सुनने के बाद वह बोली…कितने दिन के जाएंगी बेटी के घर।
और कब-कब जाएंगी।
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बेटी के ससुराल वालों को क्या जवाब देंगी,जब वो बहू रोहिणी के बारे में पूछेंगे।
अब कमला शांत थी,रेखा की बातों का उसके पास किसी भी प्रकार का कोई प्रत्युत्तर नहीं था।
अच्छा दीदी आपने कभी सोचा कि रोहिणी आखिर मायके क्यू गई?
आपने कभी उसके मन की बात जानने की कोशिश की।
मैं क्यू कुछ पूछूं उससे बहू है बहू बनकर रहे मेरी सास बनने की कोशिश न करें एक बार फिर कमला के स्वर में तल्खी झलक आयी।
अरे आप फिर नाराज़ हो गई, मैं आपसे कह रही हूं न कि चीजों को शांत होकर समझिए उनके परिणाम तक पहुंचिए।
अच्छा आप एक बात बताइए,आपकी बेटी तो दोनों बेटों में सबसे बड़ी है,पांच साल हो गए अंकिता की शादी के और नकुल की शादी अभी पिछले साल ही हुई है।
इन चार सालों में घर का काम कौन करता था।सारी जिम्मेदारियां कौन निभा रहा था??
आप ना… रेखा जी बोली।
जब आप पहले सारी जिम्मेदारियां अकेले उठा लेती थीं फिर आज क्यू नहीं।
पहले रोहिणी का स्वभाव,उसकी मनोदशा समझिए,उसकी आपसे अपेक्षाएं समझिए,उसे वही प्यार दीजिए,जो उसे उसके मायके में और आपकी बेटी को उसके ससुराल में मिलता है।
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फिर देखिए घर में सुख शांति कैसे व्याप्त होती है, कुछ जिम्मेदारी आप संभालिए और कुछ जिम्मेदारियां रोहिणी को दीजिए उसे हर वह काम सिखाइए जो उसे नहीं आता, हां अगर काम आपके अनुरूप नहीं है आपका नाराज होना जायज़ है परंतु वह भी आप प्यार से समझा सकते हैं।
अब रेखा जी की बातें कमला ताई पर कुछ कुछ असर कर रही थी।
देखिए दीदी ताली एक हाथ से नहीं बजती दोनों को सामंजस्य बिठाना होगा।
आपने देखा कभी रोशनी और मेरे में अनबन हुई हो किसी तरह की।
जब हम ही बहुओं को मान सम्मान नहीं देंगे,अपने घर का अभिन्न अंग नहीं समझेंगे फिर हम उनसे कैसे ये उम्मीद कर लें कि वह हमें अपना लेंगी।
इतने वार्तालाप के बाद कमला ताई विदा लेकर अपने घर चली गई।
कुछ दिन बाद फिर वही शाम का समय और कमला ताई हाथ में मिठाई का डिब्बा लेकर रेखा जी के घर आई।
लो रेखा मुंह मीठा करो…
तुम्हारे विचारों ने सच में कमाल ही कर दिया, रोहिणी लगता ही नहीं वही रोहिणी है,ऐसा लगता है कि वह पूरी तरह से बदल ही गई।
कमला ताई के चेहरे पर एक मोहिनी मुस्कान आ गई।
दीदी ये सब हमारे नजरिए पर निर्भर करता है,खैर अंत भला तो सब भला दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं।पूरे घर में प्रसन्नता का माहौल छा गया।
स्वरचित मौलिक रचना
… अमिता गुप्ता “नव्या”
कानपुर, उत्तर प्रदेश