बहन जी मैं बहू नहीं बेटी ले जा रही हूं कल्याणी जी बड़े रुतबे से आयुषी की मम्मी को कह रहीं थीं और आयुषी की मम्मी संतोष की सांस ले रही थी और भगवान को धन्यवाद देते नहीं थक रहीं थीं कि उनकी बेटी अच्छे घर में व्याह कर जा रही है। जहां उसे बेटियों सा लाड़ – दुलार मिलेगा और मायके के कष्ट को भूल जाएगी।
विदा हो कर ससुराल की दहलीज पर कदम ही रखा था कि
कल्याणी जी ने रंग बदलना शुरू कर दिया,शायद गिरगिट भी इतनी जल्दी रंग नहीं बदलता होगा। आयुषी” लम्बा घूंघट
निकाल लो हमारे यहां रिवाज है कि जबतक सारे रिश्तेदार ना चले जाएं तुम ऐसे ही रहना और देखो शिकायत का कोई मौका नहीं देना इन सभी को। वरना चार लोग चार मुंह तो चार बातें…किस – किस को जबाब देती फिरूंगी मैं” कल्याणी जी तो किसी हिटलर से कम नहीं लग रहीं थीं और दिखावटी रीति रिवाज की आड़ में आयुषी को फर्क बताना शुरू कर दिया था बेटी और बहू में।
दूसरी सुबह ही पहली रसोई के नाम पर पूरे घर का खाना
बनवाने के नाम पर रसोई घर में लगा दिया। जिन हाथों की
मेंहदी अभी रंग भी नहीं बदली थी उनको रिवाज की आड़ में
लगा दिया था और बेचारी आयुषी को कुछ नहीं समझ में आ रहा था की क्या चल रहा है। मम्मी जी के व्यवहार से वो समझ ही नहीं पा रही थी कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है किसी के साथ। नई दुल्हन थी तो कुछ भी बोलना उचित नहीं लग रहा था।वो सोचने लगी कि मायके में भले ही धन दौलत ज्यादा नहीं था पर परियों सी जिंदगी बिताई थी मैंने।
खाना बनाकर थक हार कर कमरे में गई तो रोहित उस पर नाराजगी दिखाते हुए बोला कि “तुम को मेरे साथ वक्त बिताना चाहिए…कल ही तो हमारी शादी हुई है और तुम घर के कामों में लग गई। “मां आईं थीं बोल रहीं थीं कि” उन्होंने तुम्हें कितना मना किया कि कोई भी काम करने की जरूरत नहीं है,पर तुमने कहा की तुम्हारी आदत है काम करने की और तुम्हें बहुत अच्छा लगता है कि सबके लिए खाना बनाना।”
आयुषी स्तब्ध रह गई थी कि मम्मी जी तो बहुत ही चालाक हैं पर इतनी जल्दी रोहित को भी कुछ कहना रिश्ते में दरार ला सकता है और अभी तो हम कितना ही जानते हैं एक दूसरे को ।
मुस्करा कर बिस्तर पर लेट गई। उसके मन-मस्तिष्क में हलचल सी चल रही थी क्योंकि घर में ऐसा माहौल कभी देखा ही नहीं था। अपने ही लोगों में दांव-पेंच भला कौन करता है। शादी की थकान उतरी ही नहीं थी कि इतने लोगों का खाना बनाना….ना जाने कब नींद लग गई।
शाम को उठी तो रोहित चाय लेकर सिरहाने खड़ा था। अरे मेम साहब उठो…”बंदा हाजिर है आपकी खिदमत में।”
चौंक कर बैठ गई….”जगाया क्यों नहीं आपने मुझे “
जल्दी से मुंह – हांथ धुले और दोनों चाय पीने लगे।
वाह!” चाय तो बड़ी अच्छी बनी है…. बिल्कुल मेरी पसंद की…पता है मां ऐसी चाय बनाती थीं।”
रोहित मुस्कुराया ” मां ने ही बताया था कि तुम को अदरक की कड़क चाय पसंद है पानी कम दूध ज्यादा।”
ओह!” मां दूर रह कर भी अपने करीब होने का एहसास दिलाती हैं।”
“मैंने पूरी कोशिश की है की तुम वैसे ही इस घर में रहो प्रसन्न होकर जैसे अपने घर में रहती थी” रोहित की आंखों और बातों में कितनी सच्चाई थी। सचमुच वो एक नेक दिल इंसान है।अब तो कोई भी चुनौती क्यों ना दें मम्मी जी रोहित के लिए सब मंजूर है।
रोहित ” घर में सन्नाटा है… मेहमान सब गए क्या? और मम्मी जी कहां हैं?” आयुषी ने पूछा।
मम्मी सभी रिश्तेदारों को लेकर मंदिर गईं हैं।
अब जाकर दोनों को साथ में वक्त बिताने को मिला था। रोहित ने आयुषी को बांहों में जकड़ लिया और आयुषी का चेहरा गुलाबी सा पड़ गया था और चुपचाप सिमट सी गई थी रोहित की बाहों में वो।
रात को सभी बाहर से खाना खा कर आए थे और रोहित और आयुषी के लिए खाना पैक करा कर लाई थी मम्मी जी।
अगले दिन मेहमानों का जाना शुरू हो गया था और आयुषी भी सभी के पैर छूकर आशीर्वाद ले रही थी। सारे मेहमान बहू के संस्कार की तारीफ करते नहीं थक रहे थे और कल्याणी को किस्मत वाली बोल रहे थे कि बहुत सुंदर और सुशील बहू मिली है।एक दिन में ससुराल को अपना घर बना लिया।
कल्याणी जी ने भी संतोष की सांस ली और सबको विदा कर के अपने कमरे में चली गई।
मम्मी जी! ” क्या नाश्ता – खाना बनाना है? आप बता दीजिए मैं तैयारी कर लेती हूं।”
“आयुषी बेटा मुझे माफ कर दो…कल मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया…पर क्या करती ये रिश्तेदार सिर्फ बातें बनाना जानते हैं और मैं बिल्कुल नहीं चाहती थी कि कोई भी मेरी बहू के बारे कुछ भी कहे। इसीलिए मैंने तुम्हारे साथ सख्ती की। तुमने भी मेरे बारे में क्या धारणा बनाई होगी पर मैं तुम्हारी मां के दिए संस्कार की तारीफ करतीं हूं कि तुमने बिना सवाल – जबाब किए सबकुछ खुश हो कर किया।
तुम्हारे चेहरे पर मैंने जरा सी शिकन नहीं देखी और तुमने रोहित से भी इस बारे में कुछ नहीं कहा। जबकि मैंने रोहित को भी झूठ कहा था। सचमुच में तुम मेरी बेटी ही हो जिसने एक ही दिन में अपनी मां का साथ निभाया।”
आयुषी चकित थी कि मम्मी जी तो सचमुच में बेटी ही मानतीं है मुझे और मैंने बिना जाने – समझें उनके बारे में ना जाने कैसी धारणा बना लीं थीं।
ये बात सच है कि हमें कुछ काम मजबूरी में समाज और रिश्तेदारों के लिए करने पड़ते हैं क्योंकि घर वालों को कोई परेशानी नहीं होती है पर समाज ही सबका जीना हराम कर देता है।
आयुषी” मैंने काम करने के लिए मेड रखी है… तुम तो ज्यादा से ज्यादा वक्त रोहित के साथ बिताओ…ये दिन जिंदगी में दोबारा लौट कर नहीं आते हैं और हां मेरी फ़िक्र नहीं करना। मैं सास तो हूं पर इतनी बूढ़ी भी नहीं हूं की अभी से मेरी सेवा में लग जाओ।बेटा मुझे हमेशा से एक बेटी की चाहत थी और ईश्वर ने तुम्हें भेजा है मेरे पास।हम दोनों सास बहू नहीं दोस्त बन कर रहेंगे और हां मुझसे कुछ भी कहने में झिझकना मत।”
आयुषी सचमुच में बहुत खुश थी कि एक मां को छोड़कर दूसरी मां को पा लिया था उसने।काश! सचमुच में लोग ऐसे ही होते तो कभी भी किसी लड़की को अपने ही घर में परायापन सा नहीं महसूस होता।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी