बहू। बहू ना हुई-पिंजरे की मैना हो गई – कुमुद मोहन 

रीना! बहू को अच्छी तरह से समझा दियो मेरे सामने मुंह उधाड़ के खड़ी ना हो जाया करे| बहुओं का खुल्ला सिर मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं” अम्माजी ने अपनी बेटी रीना को कहा जो अपनी नई नवेली भाभी रितु के कमरे में खड़ी थी।

अम्मा जी दनदनाती हुई कमरे में चली आई थीं| रितु का सिर खुला था, उसने सोचा कमरे में वे तीनों औरतें ही तो थीं इस वजह से उसने सर पर पल्ला लेने की जरूरत नहीं समझी। रितु को बड़ा अजीब लगा यह सोचकर कि अम्मा जी के सामने उसे हर वक्त सर ढक कर रहना पड़ेगा।

उसे याद आया जब उसके पापा के सामने उसकी भाभी सर ढक कर रहती तो पापा ने खुद ही उन्हें मना कर दिया यह कहकर कि एसे बंधे बंधे तो तुम्हारा घर में रहना मुश्किल हो जाएगा| मेरे लिए जैसी रितु वैसी तुम। तब से उन दोनों में बाप-बेटी का सा रिश्ता बन गया। सब एक साथ बैठकर हँसते-बोलते, खाते-पीते।

दोपहर को अम्मा जी की मित्र मंडली बहू को देखने आईं तो रितु उनके पास बैठने लगी तभी अम्मा जी ने टोका”बराबर में कहां बैठ रही हो वो पीढ़ा लो उसपर बैठो,बहुएं बराबर में नहीं बैठतीं। फिर महेश की अम्मा की तरफ देखकर बोलीं “तेरी बहुरिया तो इतनी बढ़िया है कि अगर पीढ़ा ना हो तो जमीन पर ही बैठ जाती पर बराबर मै बैठवे की हिम्मत ना करती।

एक ही दिन में रितु का दम घुटने लगा।

रीना ने एक दो बार अम्माजी को समझाने की कोशिश की पर सब बेकार !अम्मा जी अपने आगे किसी की लगने दें तब ना?

रितु के कमरे और अम्मा जी के कमरे के बीच एक दरवाजा था जो रितु और रमेश की शादी से पहले खुला रहता था ,रात में रितु उसे बंद करने लगी तो अम्मा जी ने टोक दिया “बंद करने की क्या जरूरत पर्दा पड़ा तो है।

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रमेश और रितु को अपने बैडरूम मे भी प्राइवेसी महसूस नहीं होती थी।

रितु कमरे में रात को नाईटी पहनती तो अम्मा जी ताना मारने से न चूकती कि हमने तो रात में भी कभी साड़ी के अलावा कुछ ना पहना ,आजकल की बहुरियां छोरों को रिझाने के वास्ते कैसे कैसे कपड़े पहने हैं,हद हो गई बेसरमी की!यह तो तब जबकि रितु कमरे में से निकलने से पहले साड़ी बदल कर ही अम्माजी के सामने निकलती!अम्मा जी रितु के धोकर सुखाऐ हुए कपडों से नाईटी का अंदाज़ा लगाकर अपनी तरकश का बाण चलातीं!

रितु सर धोकर बाल सुखाने घूप में बैठती तो अम्मा जी वहीं मडराती और ताना मारना ना चूकतीं “मुझे नहीं पता था तुम सिर खोले बैठी हो वर्ना मैं ना आती”!

रितु के घर से किसी का फोन आता तो अम्मा जी कान लगा कर सुनती,उन्हें रितु का फोन पर बात करना या टीवी पर अपना मनपसंद सीरीयल देखना भी गवारा नहीं था।रितु को लगता शादी ना हो गई जैसे उम्र कैद हो गई।

अम्मा जी रोज नाश्ते में परांठे बनाया करतीं रितु को सुबह सुबह नाश्ते में ब्रेड या पोहा आदि हल्का खाने की आदत थी,उसने दबी जुबान से कहा तो अम्मा जी बोलीं”हमारे यहाँ ब्रेड-वरेड कोई ना खाता,परांठा खाओ धीरे धीरे आदत पड़ जाएगी।

गर्मी के दिन थे रमेश की शादी से पहले अम्मा जी अपनी और रमेश की चारपाई आंगन में बिछवाती,उन्होनें कहा रितु के लिए भी एक चारपाई डलवा देते हैं कैसी ठंडी हवा है अंदर सोएगी बेकार कूलर चलाकर बिजली फूकेगी।

अम्मा जी की दखलंदाजी से परेशान तो रमेश भी था पर खुलकर अम्मा जी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।

तभी एक दिन रमेश के मामा जी आए,अम्मा जी ने रितु को सख्त हिदायत दी कि मामा के सामने घूंघट में रहियो!उनके सामने मत आइयो।

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मामा जी आए रितु ने खूब बढ़िया खाना बनाया,कामवाली के हाथ खाना भिजवा दिया।

मामा जी बोले”भई बहुरानी को तो बुलाओ वो भी हमारे साथ बैठकर खाना खाएंगी!रितु पशोपेश में किसकी सुने तब अम्मा जी ने खुद ही रितु को बुला लिया।

शाम को मामा जी और रमेश का मूवी का प्रोग्राम बना,मामा जी ने अम्मा जी को बताया रितु भी हमारे साथ जाएगी,भाई के आगे अम्मा जी की एक ना चली।

रितु परेशान कि घूंघट डालकर मूवी जाना मानो अपना जुलूस निकलवाना, पर कार में बैठते ही मामाजी ने रितु को घूंघट हटा देने को कहा तो रितु ने जैसै चैन की सांस ली।

रात को जब मामाजी ने देखा कि रमेश और रितु  के पलंग भी बाहर लगे हैं तब उन्होंने अम्मा जी को समझाया कि पहले की बात और थी अब रमेश शादी-शुदा है इन दोनों को साथ समय बिताने का मौका देना चाहिए।

आपका एक ही बेटा है उसके साथ ही रहना है तो उन्हें अपने हिसाब से खुलकर रहने की आज़ादी देनी पड़ेगी, बहू को स्पेस देनी पड़ेगी तभी वह आपको अपना समझेगी,नहीं तो वह आपके पास बैठने में भी कतराएगी फिर आप अकेली बैठी रहना।आप सास हो मां बन कर रहो,ससुर बनने की कोशिश मत करो।बड़ी मुश्किल से

अम्मा जी को भाई की बात सही लगी

उन्होंने अपना दरोगाई रवैया बदलने और ससुर न बनकर  मां बनने की ठानी,जल्द ही उन्हें रितु बहू नहीं बेटी सी नजर आने लगी।

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दोस्तों

कई बार ऐसा होता है जो मां जल्दी विधवा हो जाती हैं वे एक तरफ ये सोचने लगती हैं कहीं शादी के बाद लड़का उनके हाथ से निकल कर बहू के कब्जे में हो जाए और वे अकेली हो जाएं| इसलिए घर में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए वे ससुर बनने की कोशिश करने लगती हैं। शुरू से ही बहू को दबा कर रखना चाहती हैं।वे भूल जाती हैं कि बहू को भी घर में थोड़ी प्राईवेसी चाहिए कि वह खुलकर सांस ले सके और ससुराल को जेल न समझकर अपना घर समझ सके!आशा है आप सब भी मेरे मन्तव्य से सहमत होंगे!

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मुझे फौलो करें।

#बहू 

धन्यवाद

कुमुद मोहन

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