बहू और बेटी – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

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आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के सिवाय कुछ दिखाई ही नहीं देता। अपनी हालत देखो जरा? इस उम्र में जबकि आप और पापा को निश्चिंत होकर आराम से रहना चाहिए था उस समय बैठकर बच्चों की आयागिरी कर रहे हो। पार्क में घूमने के लिए पापा जाते हैं तो बाकि सब लोग तो आराम से बैठे होते हैं और पापा का ध्यान रिंकू पर ही रहता है। 

आप भी सारा दिन काम वालियों और कोरियर लेने के लिए दरवाजा खोलने में उलझी रहती हो‌ आपने अपनी जिंदगी का नर्क बना रखा  फिर भी  आपको अपनी बहू में कोई बुराई नहीं नजर आती। मेरी सास ने हम हम दोनों बहुओं अलग-अलग फ्लोर पर करा हुआ हैं। सासू मां जरा भी बीमार होती है तो हम दोनों बहुओं को  उनका खाना पहुंचाना पड़ता है ।ननद के आने पर मां बेटी दोनों मौज करते हैं और खाना हम बनाते हैं।  आपकी तरह नहीं  बहू के बच्चों को लेकर घर में ही बैठी रहो।भाभी अपने बच्चों का आप इंतजाम करें। 

निधि लगातार अपनी मम्मी को सुना रही थी।

         आइए आपको मालती जी और उनके परिवार से मिलाएं । उनका एक बेटा गगन और बेटी निधि थी। निधि के दो बेटे थे।  मालती जी के पति वर्मा जी पीडब्ल्यूडी के सीनियर इंजीनियर के पद से रिटायर हुए थे। उनका बेटा गगन और बहु प्रिया दोनों सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। प्रिया के एक बेटा रिंकू था और बेटी के जन्म  के 6 महीने के बाद उसने फिर से अपना ऑफिस ज्वाइन कर लिया था।

प्रिया तो अपनी नौकरी छोड़ने के लिए भी तैयार थी लेकिन मालती जी ने उसको समझाया कि वर्मा जी और मैं मिलकर  बच्चों का ध्यान रख लेंगे। घर के काम और खाना बनाने के लिए भी शांताबाई आने लगी थी। फिर भी घर में कोई भी और काम होता तो प्रिया ऑनलाइन आर्डर करके सब कुछ मंगवा लेती थी। गगन भी घर के सारे बिलों की ऑनलाइन पेमेंट कर देता था । कभी-कभी वह दोनों वर्क फ्रॉम होम भी कर लेते थे।

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      उनकी बेटी  निधि स्कूल में टीचर थी और अक्सर छुट्टियां होने पर अपने बच्चों को लेकर वह अपनी मम्मी के पास आ जाती थी। निधि को लगता था कि उसकी मम्मी इस उम्र में भी गगन और प्रिया की गृहस्थी में ही फंसी रहती है। पहले जब भी वह अपने दोनों बेटों के साथ घर आती तब मालती जी  मार्केट तक जाकर बच्चों को बहुत सामान दिलवाती थी लेकिन अब वह अपनी स्वास्थ्य की समस्याओं और घर के काम में ही उलझी दिखती थी। वर्मा जी भी रिंकू को पढ़ाने इत्यादि में व्यस्त रहते थे। यह सब देख कर निधि कहती मेरी सासू मां ने तो कभी भी

हम दोनों बहुओं  के बच्चे नहीं पाले। वह तो अकेली मजे करती है। मालती जी कहती हमने तुम्हें नहीं पाला क्या?  अब तो घर के काम करने के लिए भी सहायक लगे हुए हैं। अब तो एक फोन पर ही बैंक का या बिलों के भुगतान का सारा काम गगन ही करता है । बच्चों के साथ खेलना हम को अच्छा लगता है अब तुम्हारे भी तो दोनों बेटों को पापा पार्क ले जाते हैं।

तुम्हारी सासू मां की मानसिकता तो मैं नहीं बदल सकती परंतु अपने घर में तो अच्छा माहौल में बना ही सकती हूं। अब हम को कहीं जाने की जरूरत ही नहीं होती प्रिया सारा सामान ऑनलाइन मंगवा देती है। हालांकि मालती जी के मन में था वह कहे कि रघु राघव के लिए भी तो गगन कितने अच्छे खिलौने और खाने के लिए प्रतिदिन कुछ ना कुछ भिजवाता ही रहता है परंतु मालती जी को पता था वह जितना भी वह अपनी बहू की तारीफ करेंगी उतना ही प्रिया और निधि में दूरी बढ़ाएंगी। वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट थीं। ‌

वर्मा जी और मालती को कभी अपनी दिनचर्या से परेशानी नहीं थी लेकिन उनकी बेटी ही नहीं अपितु  उनके पड़ोसियों को उनका यूं संतुष्ट रहना रास नहीं आता था।

     मालती जी और वर्मा जी कई बार  बच्चों के साथ  माल इत्यादि  में खाने और शॉपिंग के लिए चले जाते थे। 

    मालती जी अपनी बेटी को समझाती भी थी तुमको अपनी सासू मां की बीमारी मैं उनका कोई अतिरिक्त काम करना भी भारी पड़ता है ।अगर सास को बहू के लिए परेशानी होती है तो उनकी बहुओं को भी तो  उनका काम करने में परेशानी होती है। परंतु बेटी के मन को कोई ठेस ना लगे इसलिए वह अक्सर चुप ही रह जाती थी। 

         उस दिन वर्मा जी को अचानक ही सांस लेने में भी कुछ परेशानी हो रही थी।निधि अपने घर जा चुकी थी।‍ गगन  ऑफिस चला गया था प्रिया वर्क फ्रॉम होम कर रही थी जैसे ही उसे वर्माजी की तबीयत ज्यादा खराब लगी उसने गाड़ी उठाई और वर्मा जी को हॉस्पिटल ले गई। वर्मा जी को माइनर हार्ट अटैक आया था और समय पर पहुंच जाने के कारण वह खतरे से बाहर थे। प्रिया ने गगन को बुलाकर मालती जी को अस्पताल लाने के लिए कह दिया था। बच्चे मालती जी के पास निश्चिंत थे। पिता के अस्पताल होने की सूचना पाकर निधि भी अस्पताल में पहुंच गई थी।

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गगन भी मालती जी को ले आया था और हमेशा के जैसे मालती जी अपनी बहू की ही तारीफ कर रही थी। वर्मा जी को तभी जोर की खांसी आई और खांसी के साथ थोड़ा थूक भी बाहर आ गया था। वर्मा जी का मुंह साफ करने के लिए निधि टिशू पेपर या रूमाल ढूंढ ही रही थी कि इतने में ही प्रिया ने अपने हाथ से ही वर्मा जी का मुंह साफ कर और वॉश बेसिन में हाथ धो लिए। आज निधि को यह देखकर महसूस हो रहा था कि मम्मी सही रहती है कि बहू भी परिवार की बेटी होती है। वह अपने ही पापा के मुंह पर लगे हुए तोक को साफ करने के लिए कुछ ढूंढ रही थी और उनकी बेटी प्रिया ने बेटी का कर्तव्य निभाया। 

ताली दो हाथों से बजती है मम्मी सही कहती है। निधि की सासू मां के बीमार होने पर दोनों बहुओं मैं यह प्रतिद्वंद्विता चलती है कि हम क्यों करें ?दूसरा भाई क्यों नहीं करता? बिल जमा करने के समय पर दोनों भाई इधर-उधर हो जाते हैं। रिश्ते निभाने  के लिए पहले अपनापन होना बहुत जरूरी है यह बात निधि को आज समझ आ चुकी थी।

मधु वशिष्ठ फरीदाबाद हरियाणा।

आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के सिवाय कुछ दिखाई ही नहीं देता प्रतियोगिता के अंतर्गत

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