अरे!! घर में इतनी शांति कैसे हैं? मुझे तो लग रहा है कि तुम दोनों सास-बहू में आज कुछ तो हुआ है, दमयंती काकी जानबूझकर मन को कुरेदते हुए बोली तो सावित्री जी सब समझ गई और वो ज्यादा बात को तूल नहीं देना चाहती थी।
सब कुछ भुलाकर उन्होंने अपनी बहू राखी को आवाज लगाई तो वो भी होंठों पर मुस्कान लिए हुए तुरंत आ गई।
काकी के पांव छूकर आशीर्वाद लिया और हाल-चाल पूछने लगी, आपके लिए गरमागरम अदरक वाली चाय बना लाऊं ? राखी की बात सुनकर दमयंती काकी सकपका गई, कुछ देर पहले बरामदे से आती आवाज को सुनकर वो तो चटपटी बातों का मजा लेने आई थी, पर यहां तो उनके आते ही नजारा बदल गया।
फीकी हंसी हंसते हुए अपने ऐनक को ऊपर चढ़ाकर वो बातो की मीठी चाशनी लपेटते हुए बोल ही पड़ी, “अभी मै बाहर बरामदे में बैठी साग सब्जियां साफ कर रही थी, तेरे घर से तेज आवाजें आ रही थी, कोई बात हो तो बता दें, सावित्री में तो तेरी मां समान हूं, तेरे ही पक्ष में बोलूंगी, हो जाता है, ये आजकल की बहूएं सास का वैसे भी कहां आदर करती है, दो दिन आये हुए होते हैं और बराबर जबान चलाने लगती है।”
तभी सावित्री जी बोली, काकी कुछ ना हुआ है, वो तो टीवी में से आवाज आ रही थी, फिर मैंने बहू को आवाज कम करने के लिए कहा तो उसने आवाज कम कर दी, आप तो राखी की हाथ की ये चाय पीजिए, बहुत अच्छी चाय बनाती है, उन्होंने चाय का गिलास काकी के हाथ में दे दिया।
चाय का गिलास उनके हाथ में ही रखा रहा तो सावित्री जी ने फिर से राखी को कहा, “बहू थोड़ी मठरी भी ले आ, काकी कोरी चाय गले से ना उतारती है।”
राखी रसोई से मठरी ले आई, और काकी के पास ही बैठ गई, दोनों सास-बहू को देखते हुए काकी चाय पीने लगी, और कुछ बातों का मसाला ना मिला तो चुपचाप अपने घर चली गई, सावित्री जी ने जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया।
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तभी राखी ने उनसे माफी मांगी, ” मम्मी जी मुझे माफ कर दीजिए, आपने और सास की तरह काकी से मेरी कोई शिकायत नहीं की, और बात को दबा दिया।”
राखी, मै नहीं चाहती कि छोटी सी बात कोई बड़ा रूप ले लें, पडौसी तो बातों का रस लेने ही आते हैं, हमारे हाथ में होता है कि हम अपने घर की कितनी इज्जत रखते हैं, चाहती तो मै काकी के आगे रोना रो देती, पर वो कुछ नहीं करती, बल्कि चार घरों में बढ़ा-चढ़ाकर बातें फैला देती, हमारे बीच जो समस्या है वो जगजाहिर हो जाती,
पर उसका कोई हल नहीं निकलता, शादी के बाद बहू का फर्ज होता है, वो ससुराल की इज्जत संभाल कर रखें, तो सास का भी फर्ज होता है, वो अपनी बहू की बुराई किसी से भी नहीं करें, जो भी बात हो आपस में हल करें।”
मम्मी जी, मुझे आपसे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी, मेरी मम्मी भी तो मुझे डांटती थी, पर मै उनको जवाब नहीं देती थी, सुबह शिरीष को ऑफिस जाने में देर हो रही थी और मै अपनी मम्मी से बातों में लगी थी, आपका कहना भी सही था कि पहले शिरीष को ऑफिस भेज दो,
फिर अपनी मम्मी से आराम से बात कर लेना, और इस बात करने के चक्कर में मैंने शिरीष का लंच बनाने में देर कर दी और गुस्से से चले गए, दरवाजा भी बंद करके नहीं गये, सब कुछ कितना गड़बड़ हो गया, मुझे सच में माफ कर दीजिए, मै आगे से ऐसा नहीं करूंगी।”
कोई बात नहीं बहू ये तो छोटी बात थी, रोजमर्रा में ऐसी बातें होती रहेगी, कभी तुम गलती करोगी, कभी मै गलती करूंगी। बहू जब घर में आती है तो एक सास की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है, वो बहू को टोकती भी है, सिखाती भी है, ताकि गृहस्थी अच्छे से चल सकें, और सास की ये भी जिम्मेदारी होती है कि जैसे वो अपनी बेटी की हर बुराई को ढकती है, वैसे ही अपनी बहू की गलतियों पर भी खुद ही परदा डालें।
मम्मी जी, मैंने बहुत अच्छे कर्म किये होंगे जो आप जैसी समझदार सास मिली है, और ये सुनते ही सावित्री जी ने राखी को गले से लगा लिया।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना