गौरीशंकर को आज अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया था । एक सप्ताह पहले उन्हें दिल का दौरा पड़ने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था ।
उनका बड़ा बेटा सुबोध अमेरिका में रहता था । इसलिए पिता को देखने नहीं आ पाया था । छोटा बेटा सतीश बैंगलोर में रहता था वह पिता की मदद करने के लिए आया था ।
अपने परिवार के साथ वह दस दिन से माँ के साथ ही था ।
शांता पति की देखभाल कर रही थी लेकिन बहू स्वाति को लगता है कि सासु माँ अपने पति का ख़्याल ठीक से नहीं रख रही हैं । पति के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया है परंतु उनके माथे पर एक शिकन तक नहीं आई है । वह पति के काम भी एक ज़िम्मेदारी कहकर निभा रही है प्यार की एक झलक भी नहीं दिखाई दे रही है ।
स्वाति अपने मन में जो बातें सोच रही थी वही उसने एक दिन अपने पति सतीश से कह दिया था । आपका परिवार कैसा है कोई प्यार ही नहीं है एक दूसरे से हमारे घर में माँ तो पिता जी को एक मिनट नहीं छोड़ती हैं उनके आगे पीछे घूमतीं हैं । उन्हें जुकाम भी होता है तो वे हाय तौबा मचा देती हैं । मैंने बचपन से ऐसा ही देखा है इसलिए मुझे आपके माँ के व्यवहार से आश्चर्य होता है ।
सतीश ने कहा कि हमने तो बचपन से ही ऐसा ही देखा है इसलिए मुझे कुछ अजीब सा नहीं लगता है । वैसे भी तुम हमारे घर का पुराण लेकर क्यों बैठ गई हो तुम्हें और कुछ काम नहीं है क्या?
उन दोनों की बातों को शांता ने सुन लिया था । सतीश अपने परिवार को लेकर वापस बैंगलोर जा रहा था । शांता ने दोनों बच्चों के हाथों में और बहू के हाथ में एक एक हजार रुपए पकड़ाया । बच्चों ने तो खुशी खुशी पैसों को ले लिया था । स्वाति ने कहा कि यह सब किसलिए माँजी रहने दीजिए ना ।
शांता ने कहा कि रख ले बेटा इस बार मैंने तुम लोगों के लिए कुछ नहीं किया है कुछ ख़रीद लेना ।
स्वाति के हाथों में पैसों के साथ एक लिफ़ाफ़ा भी रख दिया था । स्वाति ने लिफ़ाफ़ा ले लिया था परंतु वह यह जानना चाहती थी कि उस लिफ़ाफ़े में क्या है?
घर पहुँच ने के बाद वह उस लिफ़ाफ़े के बारे में भूल गई थी । एक सप्ताह बाद जब पति अपने पिता का हाल-चाल जानने के लिए माँ को फ़ोन कर बात कर रहे थे तब उसे लिफ़ाफ़े के बारे में याद आया तो वह सीधे कमरे में पहुँच कर अपने बैग से लिफ़ाफ़ा लेकर बैठ गई और खोलकर देखा सासु माँ ने अपने हाथों से पत्र लिखा था ।
वह उसे खोलकर पढ़ने लगी थी ।
प्रिय स्वाति ,
आशीर्वाद सदा सुहागन रहो,
तुम सोच रही होगी कि मैं तुम्हें पत्र क्यों लिख रही हूँ । बेटा मेरे लिए तुम्हारे मन में कई प्रश्न हैं । मुझे कैसे मालूम है सोच रही होगी ना!!
उस दिन रात को जब तुम सतीश से मेरे बारे में बातें कर रही थी तब मैंने उन्हें सुन लिया है । मैंने जानबूझकर तुम्हारी बातों नहीं सुना था पानी पीने के लिए उठी थी तो मेरे कान में वे बातें सुनाई दी थी ।
बेटा मैं तीन भाइयों के बीच अकेली लड़की थी । मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से पाला गया था । मैंने दसवीं पास की थी और आगे पढ़ना चाहती थी कि इनका रिश्ता मेरे लिए आया था । मैं सोलह साल की ही थी । मैंने पिताजी से कहा कि ये उम्र में मुझसे बड़े हैं परंतु पापा ने मुझे समझाया कि वह लड़का बैंक में अच्छे ओहदे पर है ।
उसका एक भाई और एक बहन ही है । साथ में उसके पिता अभी भी नौकरी कर रहे हैं इसलिए शादी के लिए हाँ कह दे बेटा वह पढ़ा लिखा है तो तुम्हें आगे ज़रूर पढ़ाएगा ।
स्वाति तुम्हारे ससुर देखने में अच्छे थे मेरी उम्र भी छोटी सी थी तो बाह्य सौंदर्य पर मोहित हो गई थी साथ ही पिताजी की कही हुई बातों ने मुझ पर असर किया और मैंने हाँ कह दी थी ।
स्वाति जिस दिन मैंने ससुराल में कदम रखा उसके कुछ ही दिनों में मुझे अहसास हो गया था कि इस घर में मेरी कोई अहमियत नहीं है । मेरे ख़याल से तुम्हारे ससुर को अपनी वस्तुओं से जितना प्यार था उसमें से एक चौथाई भाग भी मुझसे नहीं था ।
मैं सिर्फ़ रसोई में काम करती थी । अपने घर के किसी भी मसलों में मुझे बोलने का हक नहीं था ।
मुझसे छोटे देवर और ननंद की बातें सुनी जाती थी । मैं भूले भटके से कभी कुछ कहना भी चाहूँ सब एक साथ कहने लगते थे कि तुम्हें कुछ नहीं मालूम है चुप चाप खाना बनाने का काम करो और मेरे पति हँसते हुए कहते थे कि वैसे भी वही तो तुम्हें आता है कहकर झिड़क देते थे ।
माता-पिता को या किसी और को भी इनके बारे में कुछ भी नहीं बता सकती थी क्योंकि सब की सोच में पुरुष तब ही बुरा या गलत हो सकता है जब वह पत्नी को मारे ।
इसका मतलब है कि उन सबके लिए तुम्हारे ससुर बहुत ही अच्छे हैं । जब वह तुम्हें मारता नहीं है । तुम्हारे लिए रोटी कपड़ा मकान सब दे रहा है । उसे बुरा कैसे कह सकती हो । उन्हें कैसे बताऊँ कि मानसिक प्रताड़नाएं भी तो होती हैं ।
एक दिन पूरे घरवालों के सामने देवर ने मुझे अपनी शर्ट प्रेस ना करने की वजह से बहुत सारी बातें कह दीं थीं ।
लेकिन किसी ने भी उसे नहीं डाँटा की वह तुम्हारी भाभी है उसके साथ बदतमीज़ी कैसे कर सकते हो । कालांतर में मेरे दो लड़के पैदा हुए अपने घरवालों की देखादेखी वे भी मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करते थे ।
मैं सोचती थी कि मेरी एक बेटी होती थी तो शायद मेरे दिल का हाल समझ पाती थी । मैं बहुओं में बेटी को देखना चाह रही थी लेकिन वह भी नहीं हो सका था ।
कल तुम्हारी बातें सुनने के बाद मुझे लगा कि तुम्हारे मन में मेरे लिए जो ग़लतफ़हमियाँ हैं उसे दूर करना मेरा ही काम है ।
तुम ख़ुद सोचो जिस व्यक्ति ने ज़िंदगी भर मेरे लिए कुछ नहीं किया है उसके लिए मेरे दिल में हमदर्दी या प्यार कहाँ से उमड़ आएगा मैं पत्नी हूँ इसलिए अपना पत्नी धर्म निभा रही हूँ वरना उनके लिए मेरे मन में किसी भी तरह के विचार नहीं हैं ।
मैं तुम्हें बिठाकर यह सब नहीं कह सकती हूँ इसलिए पत्र लिखा है इसे पढ़ने के बाद मेरे लिए तुम्हारे मन में जो भी विचार होंगे मैं सहर्ष स्वीकार कर लूँगी बेटा मुझे लगता है कि मैंने अपनी तरफ़ से तुम्हारे सारे सवालों के जवाब दे दिया है ।
तुम्हारी माँजी
पत्र पढ़ते हुए ही स्वाति की आँखें पश्चाताप से भर आईं थीं । अगर शांता वहाँ होतीं तो शायद स्वाति आँखों में आँसू भरकर उनके पैरों में झुक जाती थी
परंतु वे उनके सामने नहीं हैं इसलिए उनसे बात करके अपने किए की माफी माँगने के लिए उन्हें गलत समझने के उन्हें आश्वासन देने के लिए कि आज से वह उनकी बेटी की तरह नहीं बेटी है कहने के लिए उसने जल्दी से सासु माँ को फोन लगाया था ।
के कामेश्वरी