Moral stories in hindi : स्कूल से जैसे ही घर के दरवाजे पर पहुंची ,देखा डाकिया निमंत्रण पत्र लिए खड़ा था। देखते ही बोला–मैडम, आप ही का इंतजार कर रहा था,मुझे पता था कि अब आप आने वाली होंगी।मैंने उसके हाथ से कार्ड लिया और उसे मिठाई खाने और पीने के लिए पानी दी। गरमी भी इतनी है कि दिमाग को कुछ सूझ नहीं रहा।
जैसे ही डाकिया गया,मैंने कार्ड को पलट कर देखा, स्वागतोत्सुक –रवि एवम शिवानी वर्मा लिखा हुआ था। कार्ड के साथ एक दो लाइन में लिखी चिट्ठी भी थी जिस पर रवि ने अपनी सुन्दर लिखावट में बड़े मनुहार के साथ अपनी बेटी दिशा की शादी में बुलाया था।कार्ड देख मुझे सारी बातें याद आ गई और मैं तीस साल पहले अपने मायके जो एक छोटे से कस्बे में था,ख्यालों में गुम हो वहीं पहुंच गई।
मेरा मायका एक छोटे से कस्बे में था। रवि मेरे पड़ोस में ही रहता था । पढ़ने लिखने में बहुत ही तेज। जब भी मुहल्ले में कोई प्रोग्राम होता ,सारे लोग वहां पहुंच जाते और खूब मस्ती करते।
रवि सिर्फ पढ़ने में ही तेज नहीं था,बल्कि मानवता भी उसके अंदर कूट कूट कर भरी हुई थी। हमेशा कहता–दीदी, मैं जब कुछ बन जाऊंगा तो देखना वैसी लड़की से शादी करूंगा जिसे समाज ने बहिष्कृत किया हुआ हो। तब ये बातें हमें मजाक लगती और हम इसे हँसी हँसी में उड़ा देते। तब कहां मालूम था कि यह भावुकता में कही गई अपनी बातों को सही साबित कर लेगा। उसने बारहवीं कक्षा के बाद मेडिकल की परीक्षा दी और उसमें सेलेक्ट हो गया। पूरे मुहल्ले में खुशियां मनाई गई। उसके घरवालों ने सभी घरों में मिठाइयां बांटी।
फिर वह आगे पढ़ने के लिए दिल्ली चला गया। हर सेमेस्टर के बाद जब वह छुट्टियों में घर आता तो मुझसे मिलने जरूर आता और मैं उसे चिढ़ाते हुए कहती–तब, शादी कर रहे हो न उस लड़की से,जिसे समाज ने बहिष्कृत कर दिया हो और वह और भी दृढ़ता से कहता–हां दीदी,भगवान ने चाहा तो जरूर करूंगा।
फिर मेरे लिए लड़के देखे जाने लगे और एक जगह बात पक्की होने पर शादी हो गई। शादी भी दिसंबर में हुई थी और उस समय उसकी सेमेस्टर के बाद की छुट्टियां चल रही थी। रवि भी आया हुआ था मेरी शादी में। फिर शादी के बाद मैं चेन्नई आ गई,जहां राज की नौकरी थी। अब मेरा मायके जाना भी कम हो गया था। फिर एक दिन उड़ती सी खबर आई कि राज ने शादी कर ली है,पर किससे की , पता नहीं चला। किसी से बात भी नहीं हो पाई।
पर मैने मन बना लिया कि दिशा की शादी में जरूर जाना है। राज को कह मैंने दिल्ली के लिए टिकट बुक करवाया और ठीक शादी वाले दिन दिल्ली पहुंच गई। मुझे देख कर उनकी खुशियों का कोई ठिकाना न था।
शिवानी पचास की होने के बाद भी बड़ी प्यारी, सुन्दर और समझदार लग रही थी। रवि के कनपट्टी के बाल भी सफेद हो चले थे पर उसका व्यक्तित्व तो शुरू से ही गरिमामय रहा था और दिशा,वो तो मानो स्वर्ग से उतरी अप्सरा हो,सादगी और सौम्यता की प्रतिमूर्ति। बहुत ही प्यारी बच्ची। वह भी डॉक्टर थी। बड़े प्यार से बुआ कह गले लग गई,ऐसा लग रहा था ज्यों रवि ने उन्हें मेरे बारे में बताया हो।शाम में शादी बड़े धूमधाम से संपन्न हुई,चूंकि लड़के वाले दिल्ली के ही थे तो बाराती और मेहमान सबने जयमाले के बाद विदा ले ली।
रवि ने इसरार करके मुझे दो दिन और रोक लिया,या यूं कहें कि मुझे भी शिवानी और रवि के बारे में जानने की इच्छा हो रही थी तो मैं भी रूक गई।
शाम में जब शिवानी थक कर लेटने चली गई तो मैंने दो कप चाय बनाया और लॉन में टहलते हुए चाय पीने लगे तभी मैंने पूछ ही दिया, तुम्हें इतनी सुन्दर और प्यारी शिवानी कहां मिल गई।तुम बहुत ही भाग्यशाली हो जो इतनी अच्छी पत्नी और बेटी मिली है।
रवि यह सुन मुस्कुराने लगा और बोला– दीदी, मैं न कहता था कि जब भी शादी करूंगा तो वैसी ही लड़की से करूंगा जिसे समाज ने बहिष्कृत कर दिया हो।वही किया मैंने
एक दिन शिवानी घबराई हुई मेरे क्लिनिक में आई और बोली–डॉक्टर साहब, मैं बहुत मुसीबत में हूं,मुझे गर्भपात करवाना है और कहीं दूर चले जाना है ताकि अपनी मां की तरह मुझे जिल्लत की जिंदगी न मिले।
मैंने उसे कुर्सी पर बिठाया और पानी का ग्लास दिया,जब वह थोड़ी संयत हुई तो मैंने कहा कि अब तुम विस्तार से सारी बात बताओ।
मेरे इतना कहते ही वह फफक कर रोने लगी और जो बताया उससे यही पता चला की उसकी माँ अनाथालय में काम करती थी और अनाथालय की आड़ में कई कुकर्म भी होते थे,जिसके चलते शिवानी का जन्म हुआ। उसके पिता का कोई नामोनिशान नहीं था,दो साल पहले माँ भी इस दुनिया से चली गई। पर आज भी उस अनाथालय का स्वरूप वही है, अनाथालय के संरक्षक की बड़े बड़े लोगों से सांठ गांठ थी, और संरक्षक ने धोखे से इसे भी उसी कुएं में धकेलना चाहा जिसके कारण वह गर्भवती हो गई है। पर वह ऐसा बच्चा नहीं चाहती जिसे बाप का नाम नहीं मिले,वो अपने जैसी स्थिति इसकी नहीं चाहती।मेरे पूछने पर उसने कहा कि वह इस गर्भ को खत्म कर कहीं दूसरी जगह चले जाना चाहती है,जहां वह नई जिंदगी शुरू कर सके।
मेरे कहने पर कि क्या गारंटी है कि वहां तुम्हें ऐसे दरिंदे न मिलें तो वह और फफक कर रोने लगी की मैं क्या करूं। जब मैंने अल्ट्रासाउंड किया तो देखा की बच्चे की ग्रोथ हो चुकी है,इसे उस बच्चे को जन्म देना ही होगा।
पूछने पर उसने अपना नाम शिवानी बताया, मैंने तुरंत घर फोन कर माँ पापा को इतला दी कि मैं शिवानी नाम की लड़की को स्टाफ के साथ घर भेज रहा हूं,बाकी वस्तुस्थिति मैं आकर बताऊंगा।
माँ ने सारी स्थिति को समझ कर शिवानी को संभाला। सच कहूं दीदी ,कभी कभी अनपढ़ औरतों में भी पढ़े लिखे लोगों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमानी और इंसानियत होती है और शिवानी थी भी ऐसी,अपने व्यवहार से उसने मां पापा दोनों का दिल जीत लिया।
एक दिन रात में जब मैं अपने कमरे में किसी पेशेंट की रिपोर्ट देख रहा था तो माँ मेरे पास आई और बोली–रवि,अगर बुरा न मानो तो एक बात कहूं, क्यूं न शिवानी को मैं अपनी बहु बना लूं । ऐसी लड़की हमें ढूंढने से भी नहीं मिलेगी। वैसे भी जो हुआ है उसमें शिवानी का तो कोई दोष नहीं। अगर कहा जाय दीदी तो शिवानी से मेरी शादी होने में मुझसे ज्यादा माँ ने जिम्मेवारी ली। पास पड़ोस वालों के सवालों का जवाब भी मां ही देती रही। फिर तो धीरे धीरे लोग भी अपनी जिंदगी में व्यस्त होने लगे।नियत समय पर दिशा का जन्म हुआ,वो भी बचपन से ही अपनी माँ की तरह समझदार और होशियार बच्ची थी। उसने भी डॉक्टर बनने की इच्छा जाहिर की,आज छोटी उम्र में ही एम्स में प्रतिष्ठित डॉक्टर है वो। और मुझे क्या चाहिए था दीदी,सब कुछ मिला मुझे।
मेरे यह कहने पर कि शिवानी बहुत भाग्यवान है जो उसे तुम मिले तो उसने तपाक से उत्तर दिया–नहीं दीदी, भाग्यवान तो मैं हूँ शिवानी को अपनी पत्नी के रूप में पाकर। उसने माँ,बाबूजी और पूरे घर को जिस तरह से संभाला है कि उसके बिना मैं पंगु हूँ।
उसकी बातें सुन मैं रवि के आगे नतमस्तक हो गई। सच में जीवन यही है,किसी और की गलती की सजा शिवानी क्यों भुगते। रवि और शिवानी के सुखद जीवन की कामना करते हुए मैं वापस अपने घर लौट आई।
वीणा
झुमरी तिलैया, झारखंड
#घर-आंगन