“बाहरी” – नीरजा नामदेव

अलीना को पढ़ना बहुत पसंद था ।जब भी समय मिलता है पत्रिकाएं पढ़ती। अब तो इंटरनेट पर भी उसे पढ़ने को बहुत सारी सामग्री मिल जाती थी। एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब वह पढ़े बिना रह पाती। आज ही उसने एक पत्रिका में कहानी पढ़ी शीर्षक था ‘आउटसाइडर’ जिसमें बेटा विदेश पढ़ने जाता है।माँ  स्काइप पर बात करती है तो वह बताता है ‘मम्मी मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। यहां के लिए तो मैं आउटसाइडर ही हूँ।’ वह उसे तो समझा देती हैं कि धीरे-धीरे तुम्हें सब अच्छा लगने लगेगा सब कुछ सामान्य हो जाएगा लेकिन वह अपने बारे में सोचने लगती है कुछ ही घरों में बहू को पूरी तरह अपनाया जाता है ,नहीं तो बहू जीवन भर आउटसाइडर ही रह जाती है।

इस कहानी को पढ़कर अलीना अपने विवाह के बाद के दिनों को याद करती है। वह घर की बहू थी लेकिन उसे बहुत सारी बातों में शामिल ही नहीं किया जाता था। वह सोचती थी ‘अभी मैं नई आई हूं इसलिए मुझे ऐसा लग रहा है। समय बीतने पर सब सामान्य हो जाएगा’। लेकिन ऐसा कभी भी नहीं हो पाया। घर के सभी लोग मिलजुलकर आपस में बातें करते लेकिन उसे उनकी बातों में शामिल नहीं किया जाता। उसे किसी काम में उलझा दिया जाता था। वह घर के किसी सामान को अपने मन से उपयोग नहीं कर सकती थी ।कभी अपने मन से बगीचे से कुछ फल फूल तोड़ लिए या खाने में कुछ बना लिया तो उसकी सास नाराज हो जाती थी। उसने कुछ भी तोड़ना छोड़ ही दिया । वह अपने 

कमरे तक ही सीमित हो गई थी ।

अलीना समय से अपना काम करती और कमरे में चली जाती।वह सब से घुलने मिलने की कोशिश करती लेकिन उसे वह अपनापन कभी नहीं मिल पाया। अपनी सास को कोई भी उपहार देती तो वह उसे उपयोग नहीं करती थी, किसी ना किसी को दे देती थी ।उसके मायके से आए सामानों का भी वही करती थी, जबकि वे उनकी पसंद को ध्यान में रखकर ही उपहार देते थे।अलीना समझ ही नहीं पाती थी कि यह सब क्यों हो रहा है। पति निखिल मितभाषी थे अपने काम में व्यस्त रहते थे।वह उन्हें छोटी छोटी बातें बता कर परेशान नहीं करना चाहती थी। एक दो बार उसने इस बारे में बात करने की कोशिश भी की लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। वैसे भी वह अपने घर के लोगों की इस तरह की बातों को सुनते ही नहीं थे ।




      उसकी ननदें जब भी आती एक कमरे में सब इकट्ठे हो जाते और हंसी मजाक, बातचीत चलती रहती ।कभी अलीना अपना काम खत्म कर उनके बीच चली जाती या चाय नाश्ता देने चली जाती तो वह सब बातें करना बंद कर देत और चुप हो जाते या फिर बात का विषय ही बदल देते। उसे बहुत ही अनकंफरटेबल लगता। वह थोड़ी देर बैठती और उसके बाद अपने कमरे  में आ जाती। उसकी ननदें कभी उसे अपने साथ कहीं घुमाने नहीं ले जाती। उनका कहना यही था कि घूम फिर कर आओ तो थकान हो जाती है, कम से कम घर में कोई रहे जो खाना बनाकर रखे। अलीना को यही लगता कि वह बस खाना बनाने की मशीन बन गई है ।सबको सिर्फ उसके खाना बनाने और काम करने से ही मतलब है। बाकी उससे कोई मतलब नहीं है।

     वह अपने मन को समझा लेती कि चलो कभी तो सब ठीक हो जाएगा। सास ससुर के जाने के बाद उसने सोचा अब तो ननदें उसके साथ समय बिताएंगी।लेकिन दोनों जब साथ में आती तो उन्हें किसी तीसरे की जरूरत ही नहीं होती ।वे अपने आप के लिए ही काफी होती ।कहीं आना जाना ,घूमना फिरना,खाना पीना, सोना, बात करना सब साथ ही करती। हां फॉर्मेलिटी के लिए उससे थोड़ी देर के लिए बात कर लेती। कभी उससे  सुख-दुख के बारे में नहीं पूछती की आप कैसी हो।आपको कोई परेशानी तो नहीं है। घर की बहुत सी बातें ऐसी होती जो उसे मालूम नहीं होती लेकिन उसकी ननदों को मालूम होती क्योंकि आजकल तो फोन है। यहां कुछ भी हो तो उन्हें तुरंत पता चल जाता जबकि वह घर में ही रहती है और उसे बाद में उनके मुंह से पता चलती थी। उसे बहुत ही दुख होता था।वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती कि ननदें जब मायके आएं तो उन्हें अपने माता-पिता की कमी ज्यादा महसूस ना हो ।जब भी वह आती वह उनके जरूरतों को पूरा करती ।पहले से उनके लिए उपहार लेकर रखती। विदाई में जैसा उससे हो सकता उन्हें विदा करती। फिर भी उसे समझ नहीं आता कि मुझसे क्या कमी रह जाती है जो इतने साल होने के बाद भी सब उसे बाहरी ही समझते हैं।                 अलीना सोचती यह बात सौ फ़ीसदी सही है कि कई घरों में बहु आजीवन  बाहरी ही रह जाती है।




       यह सब सोचते सोचते  उसकी आंखें नम हो गई। आउटसाइडर कहानी में बेटा तो एक दिन अपने साथियों के साथ घुल मिल जाएगा लेकिन मेरा जीवन तो ऐसे ही बीत गया। वह अपने मन को समझाती ‘ मैं इन बातों को सोच कर दुखी नहीं होऊँगी।’ लेकिन अक्सर यह बातें छोटी छोटी घटनाओं से याद आ ही जाती हैं,फिर उसका मन दुखी हो  जाता है। 

     वह अपने मन में निश्चय करती हैं कि अपनी बेटी को ऐसी स्थिति के बारे में पहले से ही समझाऊँगी ताकि कभी उसके साथ भी यही परिस्थिति आये तो वह मेरी तरह दुखी ना हो। 

  ये सारी बातें याद करते करते बहुत रात ही गयी थी। वह भगवान का नाम लेती हैं और एक नए सवेरे की आशा में शांति से सो जाती है।  

 

स्वरचित 

नीरजा नामदेव

 छत्तीसगढ़

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