“ सँभालिए अपनी बेटी और नाती – नातिन को…. इनके साथ अब हम नहीं रह सकते….।” महेश्वर जी ने जैसे ही कहा कलावती जी घबराते हुए पूछ बैठी ,“पर क्यों….?”
” देखिए बहन जी आपने अपनी अंधी बेटी हमारे बेटे के संग ये कह कर ब्याह दिया कि उसे आप लोग कुछ पैसे दे कर बिज़नेस करवाएँगे पर आप ने तीन साल यूँ ही गुजार दिए ना पैसे दिए ना अपनी बेटी का कुछ सोचा…. ।” महेश्वर जी ने रोष में कहा
“हम कोशिश कर रहे हैं भाई साहब…. आप हमारे साथ ऐसा नहीं कर सकते…।” कलावती जी गिड़गिड़ाते हुए बोली
कलावती जी का बेटा हरीश ये सब देख रहा था…. बहन मायके आ गई थी….. ससुराल वाले ले जाने को तैयार नहीं थे…..अपने खुद के दो बच्चे करें तो क्या करें…. फिर भी माँ और बहन कीं ख़ातिर वो आगे बढ़ कर बोले….,“ पिताजी बीमार थे इसलिए बहन की शादी आनन फ़ानन में कर दिया गया…. फिर उनके अकस्मात् निधन ने हमें तोड़ दिया…. आप कुछ दिनों की मोहलत दीजिए हम कुछ ना कुछ ज़रूर करेंगे ।”
ठीक से ना देख पाने की वजह से वहन हीरा लाचार थी और अब दो बच्चों को लेकर मायके आ गई थी घर की आर्थिक स्थिति उससे छिपी हुई तो थी नहीं….फिर भी वो वापस उन लोगों के पास जाना नहीं चाहती थी जो औरत की इज़्ज़त करना नहीं जानते…..उसने धीरे से माँ से कहा,“ माँ मुझे वहाँ मत भेजो ना….।”
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बेटी की बात सुन कलावती जी ने बेटे की ओर लाचार नज़रों से देखा और हरीश ने फिर एक भाई का फ़र्ज़ निभाते हुए महेश्वर जी को अकेले विदा कर दिया….।
हरीश अपने बच्चों के साथ साथ बहन के बच्चों को भी बराबर प्यार दुलार और शिक्षा दे रहे थे…..हरीश की पत्नी मीना कभी-कभी ग़ुस्सा करती तो कहती ,“बहन को कोई घर पर बिठाता हैं क्या….. बात कर के भेजिए उनके ससुराल ।”पर हरीश जी उन्हें मना लेते थे….. हीरा के पति और ससुराल वालों ने पलट कर कभी उनका हाल समाचार ना लिया और हीरा के बच्चे समझ चुके थे हमारे पापा हो कर भी हमारे लिए नहीं है….
चारों बच्चे धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे हरीश और हीरा की बेटी में साल भर का अंतर था…. हरीश की बेटी नैना बड़ी थी और शादी योग्य हो चुकी थी मीना कई बार कहती अब नैना की शादी कर दो …. पर हरीश जी कहते ,“ पहले हीरा की बेटी का ब्याह करेंगे फिर अपनी बेटी का….लोग वैसे ही कहते रहते हैं बहन को रखा बहुत है देखते है ना भांजी का ब्याह कैसे और कहाँ करता है…. अपनी बेटी को अच्छे घर भेजेगा और बहन की बेटी का हाल भी बहन जैसा ही होगा…..ये सब सुनना ही नहीं है कुछ लोगों को बोल रखा है अच्छा रिश्ता मिलते ही निशि का ब्याह पहले करेंगे ।”
मीना पति का हाल देख चाह कर भी कुछ कह नहीं पाती थी…..
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लड़का मिलते ही हरीश जी ने निशि का ब्याह तय कर दिया…. निशि ने कहा भी पहले नैना का ब्याह करें मामू… वो मुझसे बड़ी है पर हरीश किसी का भी ना सुने…..
निशि का ब्याह हो गया…. संजोग से ऐसा परिवार मिला जो उसे भी समझता था और उसके परिवार को भी…… निशि परिवार की अहमियत समझती भी थी और निभाती भी….
नैना का ब्याह करने से पहले ही एक दिन अचानक हरीश जी का हृदयघात से देहांत हो गया….. पूरा परिवार बिखर गया…. कमाने वाला हाथ चला गया था….. दोनों के बेटे अभी नौकरी करने के लिए हाथ पैर ही मार रहे थे….. ऐसे में निशि ने बहुत ही व्यवहार कुशलता के साथ नानी ,मामी, अपनी माँ और भाई बहन को सँभाल लिया….
मीना कहती ,” निशि अब तुम्हारी अपनी गृहस्थी है….उसको सँभालो….. हम किसी तरह गुजर बसर कर लेंगे….. हीरा और भाई की चिंता मत करो हम जो खाते हैं वो खिलाएँगे और जैसे रहते रखेंगे….।”
तब हीरा मीना से बोली,“ भाभी ज़िन्दगी का हर अच्छा बुरा पल एक सीख देता है…. जब मैं ससुराल से त्याग दी गई थी तब मैं यही सोचती थी मेरा और बच्चों का क्या होगा….भैया ने जैसी भी परिस्थिति थी हमें रखा अपने बच्चों की तरह मेरे बच्चों को भी सँभाला…..अपनी बेटी से पहले मेरी बेटी का ब्याह किया…… यहाँ रह कर निशि ने अपनी माँ को रोते हुए देखा तो मामा मामी के हमारे लिए किए गए व्यवहार को भी…..
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निशि की जगह अगर नैना ये सब करती तो भी आप मना करती…..आप कैसे सोच सकती हैं भाभी निशि अपने मामा के जाने के बाद इस घर को भूल जाए…. ये घर हमारा आसरा बना भाभी….. आप दोनों ने सदा हमें सबसे उपर रखा…. अपने बच्चों से ज़्यादा इन दोनों की फ़िक्र की….. तो बस अब निशि को मना नहीं कर सकती …… भगवान से बस यही प्रार्थना है कि अब नैना का ब्याह हो और ये दोनों किसी नौकरी पर लग जाए…. ।”
मीना ननद की बात सुन रो पड़ी…… सोचने लगी हरीश कहते थे देखना मीना बच्चों को बराबर समझोगी तो वो भी हमें मान देंगे…. अपना पराया करोगी तो वो भी कहाँ तक अपना पन जता पाएँगे…. निशि ब्याह बाद चली जाएगी…. और उसके बेटे के नौकरी लगते ही हो सकता है वो भी उसके साथ ही रहने चली जाए पर इतना यकीन है कुछ भी हो ये तुम लोगों का साथ ज़रूरत देंगे ।
समय एक सा नहीं रहता….. बेटों ने नौकरी पा ली….. और नैना का भी ब्याह भी हो गया….. सब अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त हो गए हैं पर एक बात उस घर ने समझा दिया ज़रूरत पड़ने पर आज भी वो एक साथ मिल कर खड़े रहते हैं चाहे सुख हो चाहे दुख।
दोस्तों कुछ परिवार ऐसे होते हैं….. और उनके बीच प्यार बना रहे बस यही कामना करती हूँ ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# बहन