बहन का ससुराल क्या घर नहीं होता!! – अर्चना खंडेलवाल

मनोरमा जी ने अपनी दोनों बेटियों को बड़े ही लाड़ प्यार से पाला, अच्छी शिक्षा और परवरिश दी। दोनों बेटियां दीप्ति और सोनल  काफी समझदार और संस्कारी थी। अपने पति को खोने के बाद मनोरमा जी पहले तो टूट गई थी, फिर बच्चों की परवरिश के लिए मजबूत बनी। घर और बाहर अच्छे से संभाला। उन्होंने पति के जाने के बाद काफी आर्थिक तंगी झेली थी। ज्यादा पढ़ी लिखी नही थी, इसलिए कहीं नौकरी नहीं कर पाई पर सिलाई का काम करके जैसे-तैसे घर चलाया। मायके में मां के जाते ही भाई-भाभी ने मुंह फेर लिया, ससुराल में बेटे के जाते ही मनोरमा जी अपने ही घर में पराई हो गई।

जीवन के कड़वे अनुभवों ने उन्हें सिखा दिया कि औरतों का आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है। ये ही आत्मनिर्भरता उन्हें जीवन क्षेत्र में मजबूती से खड़ा करती है। उन्होंने शुरू से ही प्रयास किये कि अपनी बेटियों को भी आत्मनिर्भर बनायें। बड़ी बेटी दीप्ति काफी होशियार थी, पढ़ लिखकर प्रतियोगिता परीक्षा पास करके वो बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत हो गई।

छोटी सोनल अभी पढ़ाई कर ही रही थी।

दीप्ति को बैंक में ही काम करते-करते कुछ ही समय हुआ था कि बैंक में ही काम करने वाले दीपक ने शादी के लिए प्रस्ताव दे दिया। सब कुछ अच्छा था, दीपक के दो छोटी बहनें थीं और घर में माता-पिता थे। शादी के बाद भी उन्हें दीप्ति की नौकरी से एतराज नहीं था।

दीप्ति ने दीपक को बोला कि मेरी छोटी बहन और मां मेरी जिम्मेदारी है, मैं शादी के बाद भी ये जिम्मेदारी निभाऊंगी। उस वक्त दीपक ने हामी भर दी कि हम दोनों मिलकर हर जिम्मेदारी को निभायेंगे।

दोनों की शादी हो गई। दिन अच्छे से बीत रहे थे। एक दिन सुबह सुबह खबर आई कि मनोरमा जी रात को सोई थी जिसकी सुबह उठी ही नहीं, साइलेंट हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई। दीप्ति और सोनल पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। बड़ी मुश्किल से दीप्ति ने सोनल को संभाला क्योंकि अब दोनों बहनें ही एक -दूसरे का सहारा थीं। घर तो किराये का ही था दीप्ति ने थोड़ी बहुत चीजें रखीं बाकी घर ले आई। उसने फैसला किया कि अब सोनल उसके साथ ही रहेगी। मुझे अपनी बहन की पूरी जिम्मेदारी निभानी है।




दीपक की मां खुश नहीं थीं, भला बहू की बहन उनके घर में कैसे रह सकती है? उस वक्त तो उन्होंने मौन सहमति दे दी पर अंदर से वो चाहती थी कि सोनल को हॉस्टल में भेज दिया जाएं।

सोनल और दीपक की दोनों बहनें हम उम्र ही थीं। सोनल का मन दीप्ति के घर में लगने लगा। दीप्ति की सास रोहिणी जी को सोनल पर किया गया हर खर्च अखरने लगा। कोई भी नई ड्रेस आती थी या कॉलेज की फीस जाती तो वो चिढ़ने लगती थीं। उन्हें लगता था उनके अपने घर में दो बेटियां हैं, ऊपर से ये तीसरी और आ गई।

 

 

उस पर सोनल और दीप्ति के नाम मनोरमा जी ने कोई जायदाद भी नहीं छोड़ी है।

सोनल भी समझदार थी वो रोहिणी के द्वारा किये गये पक्षपात को महसूस करने लगी थी।

दीपक की दोनों बहनें जहां खुश और बेझिझक रहती थी क्योंकि ये उनका अपना घर था। वहीं सोनल काफी संभलकर डरकर रहती थी क्योंकि वो उसकी बहन का ससुराल था, कहीं कोई गलती ना हो जायें।

दीप्ति भी आजकल अपनी सास के बदले व्यवहार से आहत रहने लगी थी। दीपक ने एक दिन उससे कहा कि हम सोनल को पढ़ने के लिए बाहर भेज देते हैं ।

ये सुनकर दीप्ति को बुरा लगा, दीपक सोनल मेरी छोटी बहन है, बड़ी बहन मां के समान होती है। अब मां भी नहीं है मैं सोनल की सारी जिम्मेदारी मेरी है, मैं सोनल को इस तरह अकेला नहीं छोड़ सकती हूं। मैं उसे मां और बहन दोनों का प्यार दूंगी।




दीप्ति, मां को सोनल का घर में रहना पसंद नहीं है, तुम या तो अपनी नौकरी करती हो या सोनल पर ध्यान देती हो, मां को लगता है कि तुम घर और मेरी बहनों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती हो। फिर बहन के ससुराल में सोनल कब तक रहेगी? हम हर महीने खर्चा भेजते रहेंगे, लोग बातें बना रहे हैं, सोनल कब तक अपनी बहन के ससुराल में रहेगी, दीपक ने कहा।

दीपक, तुम्हें क्या लगता है? क्या तुम्हारे मन में भी यही है, मैं जिस तरह सोनल से प्यार करती हूं, सोनल की चिंता करती हूं,उसी तरह मैं अपनी दोनों ननदों से भी प्यार करती हूं, वो दोनों भी मेरी छोटी बहन के समान है।

ऐसा आज तक नहीं हुआ कि मैं कोई भी चीज या ड्रेस सोनल के लिए लेकर आई तो अपनी ननदों के लिए लेकर नहीं आई। बहन का ससुराल क्या घर नहीं होता है? आखिर एक बहन दूसरी बहन के साथ क्यों नहीं रह सकती है? तुम्हें समाज और लोगों की परवाह है, मेरी ओर सोनल की कोई परवाह नहीं है।

मैंने तुमसे शादी की है कोई समझौता नहीं किया है,हर फर्ज, हर जिम्मेदारी के हम बराबर के साझेदार है, हर सुख-दुख की साझेदारी हैं, आपकी बहनों की जिम्मेदारी मेरे ऊपर भी है तो मेरी बहन की जिम्मेदारी से आप मुंह कैसे मोड़ सकते हैं?

ये मत भूलिए आपकी बहनों के ऊपर माता-पिता का आशीर्वाद है, आपकी बहनों के पास भाई का सहारा है, भाभी का स्नेह दुलार है पर मेरी बहन तो अकेली है, मेरी बहन को तो सिर्फ मेरा ही सहारा है, मैं उसे इस तरह अकेला नहीं छोड़ सकती हूं। मैं अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभाऊंगी।

क्या ये मेरा घर नहीं है? इस घर के लिए मैं दिन-रात खटती हूं, नौकरी भी करती हूं, घर भी संभालती हूं,

आपके साथ पूरे परिवार का ख्याल रखती हूं, खाने-पीने, रहन-सहन से लेकर दवाईयां देने तक मैं अपना फर्ज पूरी ईमानदारी से निभाती आई हूं। आपके साथ आपके माता-पिता, बहनें रह सकती है तो क्या मैं अपनी ही बहन को अपने साथ नहीं रख सकती? किस तरह का और कैसा नियम है? ये समाज की कैसी रीत है? क्या हम ये रीत बदल नहीं सकते? कब तक हम लोगों की बातों की परवाह करते रहेंगे? और इन दकियानूसी परंपराओं का अंधानुकरण करते रहेंगे?

 

 




इस घर से सोनल ही नहीं जायेगी, साथ में मैं भी जाऊंगी। हम दोनों बहनें कहीं भी रह लेंगी। मां को आज सच्चे मन से धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने मुझे आत्मनिर्भर बनाया ताकि मैं अपना और अपनी बहन का ख्याल अच्छे से रख सकूं।  दीपक, मैंने तुमसे शादी की है,अपनी जिम्मेदारियों से मैं समझौता नहीं करूंगी।

दीपक को अपनी गलती का अहसास हुआ, वो भी कहां अपनी मां रोहिणी की बातों में आ गया।

दीप्ति ने अपना भी सामान बांध लिया, ये देखकर दोनों ननदें भाभी से लिपट गई, भाभी मत जाओं, सोनल तो हमारी बहन जैसी है, हम सोनल के साथ बहुत खुश है।

दीपक ने भी माफी मांगी, मुझे माफ़ कर दो, मैं ही तुम्हें अपना दिया वचन भूल गया था। मैंने कहा था हम मिलकर हर जिम्मेदारी निभायेंगे पर मैं ही पीछे हट गया। आज से मेरी दो नहीं तीन बहनें हैं और हम दोनों मिलकर अपनी तीनों बहनों से जुड़ी हर जिम्मेदारी निभायेंगे।

मम्मी जी, मैंने अपनी हर जिम्मेदारी निभाई है, मम्मी के जाने के बाद आप ही मेरी मां हो, बचपन में अपने पिता को खो दिया था, पापा जी को मैंने अपने पिता की जगह देखा है। दोनों ननदों को मैंने सच्चे मन से अपनी ही बहन माना है। मुझे लगा था मुझे अपना परिवार फिर से मिल गया है, पर मैं भ्रम में थी, मुझे पता नहीं था कि

ये तो घर ही मेरा नहीं है, मैं इसमें अपनी बहन को अपने साथ नहीं रह सकती हूं? मैंने तो रिश्तों में कोई फर्क नहीं किया। रोहिणी जी का मन ग्लानि से भर गया।

दीप्ति, तुम्हें कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है, मैंने जो भी किया, कड़वे वचन बोले, उसका मुझे पछतावा है।

आज से हम सब मिलकर एक ही छत के नीचे एक परिवार की तरह रहेंगे। ये रिश्ते ये परिवार सब तुम्हारा है, तुमको ही संभालना है।

रोहिणी जी ने दीप्ति को गले लगाते हुए कहा, आज दीप्ति और सोनल को रोहिणी जी में मनोरमा जी की छवि दिखाई दे रही थी।

पाठकों, बहू ससुराल के हर रिश्ते को अपना लेती है, अपनी हर जिम्मेदारी निभाती है फिर दामाद क्यों पीछे हट जाते हैं? बहू हर रिश्ते को साथ लेकर चलती है फिर दामाद क्यों रिश्तों से मुंह मोड़ लेते हैं?

आखिर ससुराल ही तो लड़की का असली घर होता है वो अपने घर में ना तो हक से रह सकती है ना ही अपने मायके वालों को रख सकती है??? आखिर क्यों???

समाज को अपनी सोच बदलनी होगी?

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धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल ✍️

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

 

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