बदलाव – शिप्पी नारंग : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “अरे कहां भागा जा रहा है आ गया आयागिरी करके” मदन जी ने अपने दोस्त कैलाश जी को अपनी बालकनी से आवाज दी । कैलाश जी ने सिर उठा कर ऊपर देखा और हंस कर बोले ” हां भई कर आया आयागीरी, तेरी जैसी किस्मत कहां ।” पर आज तो स्कूल की छुट्टी है शनिवार की फिर कहां से आ रहा है?”

“अरे आज छुट्टी तो है पर बच्चों के स्कूल में स्पोर्ट्स डे है ना सोमवार को तो आज रिहर्सल है इसलिए बच्चे स्कूल गए हैं।” “अच्छा अच्छा आजा चाय पी ले ।” “नहीं, अभी नहीं, दूध और सब्जी ले जा रहा हूं बहू इंतजार कर रही होगी तू आजा शाम को भाभी के साथ, बच्चे भी घूमने जा रहे हैं तो चाय इकट्ठे पीते हैं ।” और मदन जी ने फौरन हां कर दी । कैलाश जी अपने घर की तरफ बढ़ गए घर जाकर बहू रीमा को थैला पकड़ा दिया और हंसकर बोले “लो बेटा जो कहा मैं ले आया हूं अब इस गरीब को एक बढ़िया सी चाय पिला दो ।” रीमा हंसकर रसोई की तरफ बढ़ गई ।

कैलाश नाथ और मदन लाल एक ही स्कूल में पढ़े फिर कॉलेज अलग अलग हो गए और फिर नौकरी भी दोनों की सरकारी लग गई लगा किला फतह कर लिया शादी हुई तो एक इत्तेफ़ाक और जुड़ गया कि दोनों की पत्नियां भी नौकरी वाली मिली । जिंदगी की गाड़ी आराम से चल रही थी कैलाश जी के दो बच्चे थे एक बेटी और एक बेटा । बेटी की शादी हो गई थी और अपने घर में सुखी थी । बेटे की भी शादी हो गई थी उसके दो बच्चे थे बड़ा बेटा 6 साल का और बेटी 4 साल की । कैलाश जी की पत्नी मालती एक सुलझी हुई महिला थी जिनका एक ही सिद्धांत था चुप रहो कम बोलो तो आधी समस्याओं का हल वैसे ही निकल आता है । कैलाश जी और मालती जी दोनों समय के साथ बदलाव को जरूरी समझते

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थे । दोनों की सोच थी कि बड़ों को भी समय के साथ अपने आप को अपडेट करते रहना चाहिए । दूसरी तरफ मदन लाल जी की एक अलग ही दुनिया थी। पत्नी सरोज का ज्यादातर समय पलंग पर निकलता था क्योंकि उन्हें हमेशा कोई ना कोई आधी व्याधि घेरे रहती थी । कैलाश जी और मालती जी का कहना था कि वह शरीर से कम और मन से ज्यादा बीमार थी । सरोज़ जी को हमेशा से ही शिकायत रही को उन्हें कभी भी किसी ने नहीं समझा यह ‘किसी’ उनकी सास के लिए होता था।

टीचर थी तो सुबह सुबह स्कूल के लिए निकलना पड़ता था वो भी घर का सारा काम कर के यानी पूरे घर का नाश्ता और खाना बनाकर जाना। सासू मां जो बीजी के नाम से ज्यादा जानी जाती थी मुंह अंधेरे उठ कर नहा-धो कर मंदिर चली जाती थीं और जब तक आती सरोज जी स्कूल के लिए निकल चुकी होती थी। तब बीजी का राज शुरू हो जाता था।

कामवालियों से माथापच्ची करना, टोकाटाकी करना उनका प्रिय शगल था। कोई भी बाई उनके घर तीन चार महीने से ज्यादा नहीं टिकती थी और इसका ठीकरा भी बहू के सिर पर ही फूटता था कि वो उनसे जरूरत से ज्यादा काम लेती है। मदनलाल जी सब देखते थे दबे स्वर में मां से कहते भी थे कि आप अपने काम से काम रखा करो पर ऐसी फटकार पड़ती की दोबारा बोलने के लिए दस बार सोचना पड़ता था ।

ऐसे माहौल में सरोज जी काफी चिड़चिड़ा जाती थी क्योंकि स्कूल से आने के बाद फिर से कमर कसनी पड़ती थी। एक कप चाय की उम्मीद भी बीजी से नहीं होती थी उल्टा यही सुनने को मिलता था कि अब बुढ़ापे में इनकी गृहस्थी देखो, बच्चे संभालो। कई बार सरोज जी सोचती कि नौकरी ही छोड़ दें पर सरकारी नौकरी और वो भी टीचर की, अपने विचारों को पीछे छोड़ देती थी। फिर बीजी भी हमेशा के लिए चली गईं और सरोज जी भी रिटायर हो गईं।

पर अब लगने लगा था कि अवचेतन में बीजी ही छा गईं। बीजी की जो आदतें उन्हें सख़्त नापसंद थी अनजाने में उन्हीं आदतों को अपना चुकी थी और अब वही बातें घर में दरारों का काम कर रही थी। सरोज जी की बहू राशि नौकरी करती थी और वो कैलाश जी की बहू रीमा की चचेरी बहन भी थी।

राशि अक्सर अपनी सास के बारे में रीमा से शिकायत करती थी और रीमा अपने सास ससुर से सारी बातें शेयर भी करती थी और कैलाश जी को कहती भी थी वे चाचा जी को थोड़ा सा समझाएं । कैलाश जी भी चाहते थे कि मदनलाल और उनकी पत्नी से बात करें पर मौके का इंतजार करना उन्हें आता था और अपनी बहू से कहते भी थे कि बेटा अवसर आने दो मैं और तुम्हारी मम्मी जरूर कोई रास्ता निकालेंगे ।

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शाम को 5:00 बजे मदनलाल और सरोज दोस्त के घर पहुंच गए माहौल एकदम खुशनुमा हो चुका था। मालती जी और सरोज जी की भी आपस में अच्छी पटती थी। सरोज जी अक्सर मालती जी से राशि की बुराई करती थी कि काम धीरे-धीरे करती है, बच्चों को डांटती रहती है, सफाई नहीं करती, मैं ना होऊं तो घर चल ही नहीं सकता वगैरा-वगैरा । मालती जी चुपचाप सुनती और मुस्कुराती रहती थी कभी-कभी कुछ कह भी देती थी पर जब देखती थी कि सरोज जी का वही ढाक के तीन पात तो चुप लगा जाती थी।

आज भी चाय पीते पीते बातों का रुख घर परिवार और बेटे बहू पर आ गया । मदनलाल जी ने ही बात शुरू की कि “बेटा सुमित सुनता ही नहीं है आज कहा कि बिल आए हुए हैं पानी के, बिजली के, गैस के सब जमा करा दिए क्या तो एकदम भड़क गया”, और इससे पहले कि वह बात पूरी करते कैलाश जी ने बीच में ही टोका “तो तू नहीं कराता क्या बिल जमा..?

आज कल तो सब ऑनलाइन काम होता है और यह तो कहना मत कि तुझे कम्प्यूटर नहीं आता ऑफिस में तो कंप्यूटर मास्टर था।” “अरे सुन तो, आता है सब ऑनलाइन करना पर बिल वगैरा मैं क्यों जमा कराऊं, कमाते हैं दोनों तो क्या घर के लिए इतना भी ना करें हमने अपनी ड्यूटी पूरी कर दी अब वह करें।” “एक बात बता…” अब कैलाश जी ने मुद्दे पर आना शुरू किया “तेरी और तेरी भाभी की पेंशन मिलाकर कम से कम 80000/- तो आती ही होगी और जो तूने एक छोटा सा फ्लैट ले रखा है रोहिणी में उसका किराया 30,000/- महीना तो आता ही होगा यानी एक लाख से ज्यादा आमदनी तेरी महीने की है जो तू घर बैठे कमा रहा है ।

क्यों मैं ठीक कह रहा हूं ना..? “हां तो…”मदन लाल जी ने प्रतिप्रश्न किया । “तो तू इन सब का क्या करता है ? बैंक में जमा कराता होगा।” “हां एफ डी वगैरा ले लेता हूं इंटरेस्ट भी आ जाता है।” “बिल्कुल ठीक, अब तूने सोचा है कि यह जो तू जमा कर रहा है भगवान ना करें कल को तुझे या भाभी जी को कुछ हो जाए तो यह पैसा किस के काम आएगा बच्चों के ना तो फिर अभी क्यों नहीं।” कैलाश नाथ जी ने गंभीर स्वर में कहा । मदनलाल को समझ में कुछ ना आया प्रश्न भरी नज़रों से दोस्त की ओर देखा।

“देख भाई सीधे शब्दों में समझ हम जो कुछ बचा रहे हैं वह हमारे बाद इन बच्चों के ही काम आना है तो फिर अपने जीते जी अपने हाथों से बच्चों को क्यों ना दें । मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तू सारा खर्च कर, बिल्कुल नहीं अपने लिए भी रख, जमा कर पर कुछ घर में भी बच्चों की मदद कर।” “तू क्या करता है..? और बच्चे क्या देते हैं घर में..?” मदनलाल ने दोस्त से पूछा ।

“देख भाई, यह घर है यहां तेरा मेरा अगर करेंगे तो घर की शांति तो खत्म होगी ही ना बच्चे चैन से रहेंगे ना हम” कैलाश जी ने कहा फिर बात को आगे बढ़ाते हुए बोले …”पर बच्चों को जिम्मेदारी सिखाना भी हमारा काम है आज हम हैं कल नहीं रहेंगे तो बच्चों को भी एहसास होना चाहिए कि हां अब हमारी जिम्मेदारी है घर को संभालना सब की देखभाल करना।” “पर तू बता ना क्या करता है मदद ?” मदनलाल ने अधीरता से पूछा । “भाई हर घर के अलग-अलग उसूल होते हैं, अलग सोच होती है ।

जरूरी तो नहीं जो मैं करता हूं वह तुझे सही लगे पर तूने पूछा तो बताता हूं तेरी भाभी और रीमा महीने के शुरू में ही घर के सामान की लिस्ट बनाते हैं मैं पहले जाता था ले आता था पर अब दुकानदार को देता हूं वह सामान भिजवा देता है और मैं पेमेंट कर आता हूं घर की सब्जियां फल बगैरा यहीं गली में जो आता है उससे लेते हैं कभी बच्चे बाजार जाते हैं तो ले आते हैं ।

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रही बिजली पानी गैस के बिल भरने की बात तो वो मैं करता हूं । बच्चों के अपने खर्चे बहुत होते हैं हमें उनकी कमाई नजर आती है पर सोच कर देख उनके खर्चे भी तो कम नहीं होते आजकल बच्चों के स्कूल की फीस, बस,व प्रोजेक्ट आदि के कितने खर्चें हैं वह उन्हें ही पूरा करने होते हैं तो जितनी हम उनकी मदद कर सकते हैं उतनी तो करनी ही चाहिए ना ।

मदनलाल और सरोज जी चुपचाप सुन रहे थे । अब कैलाश जी सरोज जी की तरफ मुड़े और बोले “आप बताओ भाभी जब आप नौकरी करती थी और चाची जी सुबह-सुबह मंदिर चली जाती थी तो आपको कितना बुरा लगता था और अब आप खुद वही कर रही हो बस फर्क सिर्फ इतना है कि वह मंदिर जाती थी और आप पलंग पर रहती हो ।

आपको क्या हुआ है हाई बीपी शुगर यही ना, यह तो मालती को भी है पर जितना होता है वह राशि की सहायता करती है । सुबह उठकर सब्जी बनाना और सब का नाश्ता बनाना यह मालती करती है बहू बच्चों को तैयार करती है फिर हम दोनों बच्चों को स्कूल बस तक छोड़ने जाते हैं 7:00 बजे तक वापस आते हैं बहू चाय बनाती है और वह आधा घंटा हम चारो एक साथ बिताते हैं । फिर बहू और रोहन तैयार होने चले जाते हैं और 8:30 तक घर से निकल जाते हैं ।

उसके बाद का समय मेरा और मालती का होता है घर के कामों में ही समय निकल जाता है 2:00 बजे तक बच्चे स्कूल से आ जाते हैं हम चारों खाना इकट्ठे खाते हैं और बच्चों के साथ 4:30 बजे तक मस्ती करते हैं 4:30 से 6:00 तक मैं बच्चों को होमवर्क कराता हूं। शाम के खाने के लिए कुक लगा रखी है वह 7:00 बजे तक आती है तब तक बेटा बहू आगे पीछे आ जाते हैं हम दोनों बच्चों को लेकर पार्क चले जाते हैं बच्चे खेलते हैं और हम अपनी सैर करते हैं कभी मूड नहीं होता तो बैठ जाते हैं ।

अब बता कितना काम है ? बेटा बहू खुश कि बच्चों की अच्छे से परवरिश हो रही है, बच्चे घर में रहते हैं उन्हें ऑफिस में बच्चों की चिंता नहीं रहती है और हम भी खुश कि हमें बुढ़ापे में बच्चों का साथ मिलता है।

देख भाई खुश रहना है तो अपने में भी बदलाव लाना जरूरी है हम उम्मीद करते हैं कि बच्चे हमारे अनुसार चलें जैसा हम चाहें वैसा ही वह करें तो मेरे यार आज के जमाने में यह सब नहीं चलता अब तू बता अगर हमारा इतना करने से घर में शांति रहती है इसमें क्या बुराई है तू खुद कहता था ना कि शादी एक समझौता है तो समझौता एक तरफ से तो होता नहीं दोनों पक्षों को करना होता है अब वह चाहे माता पिता के साथ हो बच्चों के साथ हो या पत्नी के साथ। आज समय बहुत आगे बढ़ गया है और देख भाई जेनरेशन गैप तो हमेशा रहेगा ।

हमारा और हमारे मां-बाप के बीच था अब बच्चों और हमारे बीच में हैं और कल को बच्चों का अपने बच्चों के साथ रहेगा । पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती है हर पीढ़ी में बदलाव आते हैं तो फिर हमें क्या दिक्कत है अपने को समय अनुसार थोड़ा सा ढालने में । मैं तो बस यही जानता हूं शांति से जीवन चलाना है तो अपने को अपडेट करते रहो किसी से अपेक्षा मत रखो ।

जितना हो सकता है मन से, तन से जरूर करो बच्चों को हम बड़े आराम से दोषी करार देते हैं, आज की पीढ़ी की लानत मलामत भी कर देते हैं सोचो यही हमारे साथ होता था तो कितना झींकते थे । अगर हमने अब भी नहीं सीखा तो फिर क्या फायदा..?” कैलाश जी दो मिनट के लिए चुप हो फिर बोले -“मेरी बात मान थोड़ा सा अपने को बदल ।

भाभी आप भी अपनी सोच को बदलो आप शरीर से नहीं मन से बीमार हो आप खुद महसूस करोगे कि थोड़े से बदलाव से ही जीवन पहले से बेहतर हो गया है । खुशी और शांति मन के अंदर होती है बस हमें उसे ढूंढने की जरूरत है ।” कहते हुए कैलाश जी चुप हो गए और रह गई सिर्फ

निशब्दता ।

शिप्पी नारंग

नई दिल्ली

 

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