बदलाव  – आरती झा”आद्या”

 

एक आम सी गृहिणी है सुचित्रा। सबके काम पर निकलने के बाद सुबह के काम निपटाने के क्रम में बिछावन ठीक करती हुई, उसी बिछावन पर निढ़ाल सी बैठ जाती है। 

क्या हो गया उसे.. एक जगह मन ठहरता ही नहीं है..

हमेशा अतीत में भटकने की आदत सी हो गई है मुझे…सुचित्रा सोचती है। 

बहू दो कप चाय बना लाओ…सासु माँ की आवाज से उसकी तन्द्रा भंग होती है। 

अभी इस समय चाय के लिए माँ जी कह रही हैं.. जबकि इस समय स्नान ध्यान कर नाश्ता ही करती हैं.. चाय तो सिर्फ शाम में में लेती हैं..सुचित्रा आश्चर्य से सोचती है। रसोई में जाकर अभी चाय के लिए दूध निकाल ही रही होती है कि सासु माँ उसके घुँघरूओं के साथ रसोईघर में आती हैं। घुँघरूओं की आवाज़ से सुचित्रा पीछे मुड़ कर देखती है। एक चमक चेहरे पर पल भर ठहर कर चली जाती है। 

मैं बालकनी में हूँ.. बोल कर सासु माँ चली जाती हैं..

घुँघरू क्यूँ निकाला क्या है। क्या उससे कोई गलती हो गई है…सुचित्रा पशोपेश में पड़ जाती है।

उसे याद आ गए कॉलेज के दिन.. जब उसके कत्थक और भरतनाट्यम की धूम थी.. कितने सारे महारथियों के साथ उसे मंच साझा करने का मौका मिला था..घुँघरू उसकी जान हुआ करते थे… आज भी उसका दिल उन्हीं घुँघरूओं में रमता है.. ऐसे ही किसी मंच पर साहिल ने उसे देखा और पसंद किया था.. घर बैठे बैठे ही अच्छा घर वर मिलते ही माता पिता ने भी बिना उसकी राय जाने अपने सिर से बोझ उतार दिया।

पहले ही दिन उसके सामान में घुँघरू देख सासु माँ ने ये कहते हुए कि यहाँ गाना बजाना नहीं चलेगा.. घुँघरू उठा कर अपनी अलमारी में रख दिए। एक दो बार साहिल सी दिल की बात कहने की कोशिश भी की थी उसने। लेकिन साहिल भी मां की इच्छा सर्वोपरि है बोल चुप्पी लगा गए। उसने भी थक हार मन मार कर हालात के सामने घुटने टेक दिए और इसे ही नियति मान समझौता कर लिया था। फिर आज अचानक मां जी  घुँघरू क्यूं निकाली हैं।

चाय के खौल कर नीचे गिरने की आवाज़ से सोच से बाहर आई सुचित्रा.. . जल्दी जल्दी चाय छान कर और कुछ बिस्किट लेकर सासु माँ के पास बालकनी में आती है..



सास बहू चाय पीते हुए बातें कर रही होती है..

सासु माँ – क्या बात है बहू.. आजकल बहुत बहुत थकी थकी रहती हो…तबियत तो ठीक है ना.. 

सुचित्रा – हाँ माँ जी.. सब ठीक है।

सासु माँ – घुमा फिरा कर बात नहीं करुँगी.. तुम फिर से अपने नृत्य का अभ्यास शुरू कर दो और चाहो तो किसी स्कूल में नृत्य प्रशिक्षका के रूप में जॉइन कर लो या चाहो तो घर पर भी सीखा सकती हो।

सुचित्रा – क्या सच… आपको और पापा जी को…

सासु माँ – मैंने भी अपने जीवन में भी बहुत कुछ करना चाहा था .. सही को सही और गलत को गलत नहीं कह सकी कभी और दिन रात समझौता समझौता। स्त्री का जीवन ही समझौता से प्रारंभ होकर चिता तक साथ जाता है। जीवन में कोई पसंद नापसंद नहीं बचती। पर दिल कहां कर पाता है समझौता। दिल के हाथों मजबूर होकर तुम्हारी तरह मैं भी निढ़ाल रहती थी।

सुचित्रा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए.. गलती हो गई मुझसे, जो तुम्हारी प्रतिभा को अपनी कुंठा के नीचे दबाना चाहा मैंने। जब साहिल ने तुम्हारी तुम्हारे नृत्य की तारीफ की तब ही मेरी ईर्ष्या मुझ पर हावी हो गई। अब नहीं.. अब तुम घुट घुट कर नहीं खुली हवा में सांस लोगी । ये लो और  आज से ही अभ्यास शुरू…घुँघरू सुचित्रा को देती हुई है..

सुचित्रा घुँघरू को माथे लगा कर रोने लगती है…

सासु माँ – रोने से काम नहीं चलेगा.. आज तुम एक कसम खाओ..

सुचित्रा – सासु माँ को देखने लगती है..

सासु माँ – प्रण ले लो कि सही को सही और गलत को गलत कहोगी। तभी जीवन सार्थक होगा अन्यथा यूँ ही निढ़ाल जीवन गुजर जाता है…

ठीक है.. तो मेरी पहली शिष्या आप होंगी माँ जी.. सीखने सिखाने की कोई उम्र नहीं होती कि तर्ज़ पार हम नई शुरूआत करेंगे। आज से हम सास बहू की जुगलबंदी का आरम्भ होगा.. सुचित्रा मुस्कुराती हुई प्यार और सम्मान भरी नजर से सासु माँ को देखती हुई कहती है। 

#समझौता 

आरती झा”आद्या”(स्वरचित व मौलिक) 

दिल्ली 

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