क्या कह रही हो बहू?दिक्मग तो दुरुस्त है तुम्हारा?लीलावती चिल्लाई थीं बहुत तेज़ी से जब उनकी बहू श्वेता ने
धीमी आवाज़ में उनसे कहा था, राखी अपने मृत पिता को मुखाग्नि देने को कह रही है।
दरअसल श्वेता के दो बेटियां ही हैं,उसे कोई पुत्र नहीं हुआ लेकिन उसके पति अशोक ने अपनी बेटियों को
बिलकुल बेटों की तरह ही पाला पोसा था, वैसे ही पढ़ाई लिखाई के अवसर दिए और दोनो बढ़िया जॉब्स भी
कर रही थीं।दुर्भाग्य से अशोक की एक दुर्घटना में अकाल मृत्यु हो जाने से,जब मुखाग्नि देने की बात आई तो
बड़ी बेटी राखी जो पापा के बहुत करीब थी,बोली,अपने पापा को मुखाग्नि मैं दूंगी।
उसकी दादी ये सुनते ही भड़क गई,ये क्या अनर्थ करने जा रही हो तुम?कहीं सुना है आजतक कि लड़की पिता
की चिता को अग्नि दे,लड़कियां और औरतें तो शमशाम तक जाती भी नहीं!घोर कलियुग है…वो बड़बड़ाई।
दादी!ये सब पुरानी बातें थीं,अब लड़कियां सब काम करती हैं,जब वो प्लेन उड़ा सकती हैं,युद्ध में लड़ सकती हैं
तो इसी में क्या रखा है,जब हमारे भाई नहीं है तो हम ही करेंगे! राखी ने कहा तो लीलावती बड़बड़ाने लगी।
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श्वेता!समझा ले इन छोरियों को,अनर्थ न करें ये घर में,पहले ही अशोक जा चुका है अब और क्या करना बाकी
है?
तो क्या पापा के जाने में हमारा हाथ है मम्मी?दोनो बेटियां बिलबिला गई।
चुप रहो…दादी से जुबान नहीं लड़ाते,श्वेता ने कहा।
तो ये क्यों नहीं समझती समय बदल रहा है और लोगों की सोच भी बदल चुकी है,कोई अनर्थ नहीं होगा अगर
हम मुखाग्नि देंगे पापा को बल्कि उनकी आत्मा को शांति ही मिलेगी।
कुछ लोगों ने बीच बचाव किया और राखी को समझाया कि तुम कर लेना जो करना चाहती हो,दादी को मत
बताओ।
ये तो कोई बात नहीं हुई,कल को फिर ये परेशान करेंगी किसी दूसरी बात को लेकर,उन्हें ये समझना होगा कि
बदलाव प्रकृति का नियम है और वो गलत ही नहीं होते।
ठीक है बेटा!अभी गमी का माहौल है,ऐसे में कम बोलो।
अगले ही महीने,राखी की शादी थी जो अशोक अपने सामने ही तय कर गए थे,बड़ा चाव था उन्हें अपने सामने
दोनो बेटियों को अपने घर का होते देखने का लेकिन विधि के विधान के आगे भला किसकी चली है।
फलस्वरूप पांचवे दिन की तेरहवीं और अगले हफ्ते ही बरसी भी करा ली गई थी।उसके बाद,जबरदस्ती ही
घर का माहौल सकारात्मक करने के लिए मंगलगीत गाए जाने लगे।
आखिरकार वो दिन भी आया जब राखी दुल्हन बनी।श्वेता को आज अपने पति अशोक की बहुत याद आ
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रही थी,बात बात में उसकी आंखें भीग जाती लेकिन वो धैर्य पूर्वक सब काम कुशलता से निबटा रही थी।
बारात आ चुकी थी और द्वाराचार के लिए श्वेता तैयार थी आरती का थाल लिए।
तभी दादी गुस्से से चीखी,क्या तमाशा कर रही हो बहू,कितना अनर्थ करोगी अभी और,क्या कभी विधवा भी
शुभ कामों में आगे रहती है?कोई सुहागन कर लेगी ये काम,जाओ, अंदर जाओ!
श्वेता रोती हुई अंदर कमरे में भागती चली गई,वो बडबडा रही थी,कितना समझाया था राखी को पर ये लड़की
सुनती नहीं,मुझे जलील करवाना जरूरी था सबके सामने।
तभी राखी ने एलान कर दिया,या तो मेरी मां आरता करेगी नहीं तो मै शादी नहीं करूंगी?
सब लोग उसे समझाने बुझाने में लग गए,क्या नादानी कर रही है राखी?ये कोई हंसी मजाक नहीं है,शादी की
बात है। उसकी बुआ बोलीं।
तभी तो कह रही हूं बुआ,आज अनर्थ तब हो जायेगा जब मेरी मां को मेरे दूल्हे का टीका करने से रोका
जाएगा,जिस मां ने अपने खून पसीने से सींच कर मुझे पाला,है दुख तकलीफ सहकर हमारे मकान को
“घर”बनाया वो आज विधवा हो गई ये क्या कम बड़ी मार है उनपर जो हम सब मिलकर अब ये प्रहार करें कि
वो अपनी ही बेटी की खुशियों में शामिल नहीं हो सकतीं।अगर ये सही है तो मै नहीं मानती ऐसे नियमों को।
सब हतप्रभ थे,दादी गुस्से में उबल रही थीं,लोगों में खुसुर पुसुर शुरू हो गई,बात इतनी गलत भी नहीं कह
रही,आखिर बेचारी श्वेता का क्या कुसूर अगर अशोक नहीं रहे, हमें तो उससे सहानुभूति होनी चाहिए,हमें उसे
मोरल सपोर्ट करना चाहिए और हम उसे मुख्य धारा से काट कर फेंक रहे हैं जो सरासर गलत है।
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आखिर ने दादी को सबकी बात माननी पड़ी,सच में,कुछ पुरानी, सड़ी गली रीतियों को त्यागने में ही भलाई है
नहीं तो नई जेनरेशन हमारा साथ कभी नहीं देगी और न ही हमें वो सम्मान देगी जिसके हम हकदार हैं।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद।
#ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने?