सुजाता जी अपने पोते-पोतियों का ख्याल रखते हुए पूरे दिन भाग-दौड़ में लगी रहती हैं। जब से उनके बेटे ने काम छोड़ दिया और बहू ने नौकरी शुरू की, सुजाता जी का पूरा दिन बच्चों के आसपास घूमते हुए ही बीतता है। सुबह से लेकर शाम तक वह बच्चों को तैयार करना, स्कूल भेजना, उनके लिए खाना बनाना और फिर शाम के लिए सब्जियाँ काटकर रखना, आटा गूंथकर बहू के आने के बाद के कामों को आसान करना—सब करती हैं।
राजो, जो कि उनकी पड़ोसन है, यह सब देखकर ताने देती रहती है। वह मजाक में कहती है, “क्या सुजाता दीदी, देखती हूँ कि तुम अपने नाती-नातिन के पीछे पूरे दिन भागती रहती हो। खुद तो एक पल भी आराम नहीं करती हो। यहाँ तक कि दोपहर में भी सोने का समय नहीं मिलता। जैसे ही बच्चे स्कूल से आते हैं, तुम्हें उनके कपड़े उतारने, उन्हें खाना खिलाने, उनके पीछे-पीछे भागने में लगा दिया जाता है। जब तक बहू नहीं आती, तब तक चकरघिन्नी की तरह काम करती रहती हो।”
राजो का मकसद सुजाता जी को यह बताना होता है कि वह बहू के लिए बहुत ज्यादा कर रही हैं। वह कहती है, “आखिर कौन सी सास इतना करेगी! और तुम्हारी बहू तो तुम्हें कभी पूछती भी नहीं है। मैंने देखा है कि वह सुबह ऑफिस जाने के वक्त तुम्हें बिना नमस्ते किए, बिना राम-राम बोले सीधे निकल जाती है। और शाम को भी आकर बस अपने कमरे में आराम करती है। कभी तुम्हारी सेवा करते नहीं देखा उसे, कभी तुम्हारे कपड़े धोते नहीं देखा। उल्टी ही गंगा बह रही है यहाँ पर।”
सुजाता जी अपने स्वभाव के अनुसार राजो की बातों को सुनती हैं लेकिन उन्होंने राजो को हलके अंदाज में डांट दिया, ‘‘चुप कर राजो। घी का लड्डू टेढ़ा ही भला। वह नौकरी कर रही है, तभी तो यह घर चल रहा है। समझी? अगर वह काम ना करे, तो इस घर में खाने को रोटी भी ना मिले। तू जानती ही है, बिटवा कुछ नहीं कर रहा है। इसलिए चुप रहना ही भला है। दो रोटी खाने को मिल रही है, यही क्या कम है।’’
उनकी बातों से राजो थोड़ी सी चौंकी, लेकिन बात खत्म कर घर लौट गई। सुजाता जी के इस प्रतिक्रिया को पास से गुजरती उनकी बहू, नेहा, ने सुन लिया था।
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नेहा ने सास के इस व्यवहार को देखकर अपने मन में उनके लिए और भी ज्यादा सम्मान महसूस किया। नेहा ने सोचा कि उसकी सास ने कितने अच्छे ढंग से उसकी स्थिति को समझा और उसका समर्थन किया। नेहा ने कभी यह नहीं सोचा था कि उसकी सास इस तरह से उसकी इज्जत करेंगी। उस दिन के बाद से नेहा का नजरिया बदल गया।
उसने अपनी सास को अंदर बुलाया और आज पहली बार उसने अपने हाथ से खाना लगाकर दिया। सुजाता जी थोड़ी हैरान हुईं लेकिन नेहा के इस बदले हुए व्यवहार को देखकर उन्हें भी अच्छा लगा।
अगले दिन नेहा ने जब ऑफिस के लिए निकलना था तो वह सुजाता जी के पास गई और उनसे हाथ जोड़कर “राम राम” की। सुजाता जी का दिल इस बात से भर आया। उन्होंने सोचा कि शायद कल की बातों का नेहा पर कुछ असर हुआ है। उन्होंने नेहा को आशीर्वाद दिया और मन ही मन सोचा कि उनकी बहू कितनी समझदार है।
यह कहानी समाज के उस पहलू को भी दिखाती है जिसमें सास-बहू के रिश्ते को अक्सर नकारात्मक रूप में देखा जाता है। राजो जैसी पड़ोसी भी समाज में ऐसे ही रिश्तों को देखकर उनके बारे में नकारात्मक टिप्पणी करना पसंद करती है। लेकिन यह कहानी बताती है कि हर रिश्ते में अच्छाई होती है, बस हमें उस अच्छाई को देखना और उसे पहचानना जरूरी है। सुजाता जी ने अपने घर और अपनी बहू के लिए अपने फर्ज को बखूबी निभाया और नेहा ने भी यह समझ लिया कि अगर उसकी सास उसके बारे में बाहर बुरा नहीं कहतीं, तो उसे भी सास की इज्जत करनी चाहिए।
मौलिक रचना
मीनाक्षी सिंह