बड़ी देवरानी और छोटी जेठानी

“अच्छा ही हुआ अब तो घर में कम से कम एक बहु तो आ गई. बड़ी बहु नहीं तो छोटी बहु ही सही…” सास किरन अपने  मन मे बोली. दरअसल किरन की शादी एक अमीर घर में हुई थी. क्योंकि  किरन के पति की दूसरी शादी थी इस लिए जब किरन इस घर में आई तो पति धीरेंद्रनाथ ने साफ़ साफ़ कह दिया की वह ये शादी सिर्फ अपने बच्चों के लिए किया है . बाकी कोई उम्मीद उस से ना रखे. लेकिन किस्मत ने कुछ ऐसा खेल रचा की

शादी के कुछ ही महीनों में धीरंद्रनाथ जो घर के मुखिया था उनको कैंसर की बीमार लग गई और उनकी मृत्यु हो गई. परिवार का बिजनेस और घर सब किरन के सर आया. लेकिन उसने भी परिवार और अपने दोनों ही सौतेले बच्चे को खूब अच्छे से संभाला. बिजनेस भी किरन के कारण खूब प्रगति किया . धीरे धीरे समय गुजरता गया

और अब दोनों ही बच्चे बड़े हो गए. छोटा बेटा कार्तिक और बड़ा बेटा कीर्तन. कार्तिक को बचपन से ही पेंटिंग और लिखने का शौक था. इस लिए वह खुद अपने पारिवारिक बिजनेस में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता. लेकिन बड़ा बेटा कीर्तन लंदन से एमबीए कर घर लौटा और उसके लौटते ही मां किरन ने अपना सारा बिजनेस बड़े बेटे के हाथ दे दिया और बिजनेस से खुद को मुक्त कर दिया.

समय गुजरता गया कीर्तन ने बिजनेस खूब अच्छे से संभाला. परिवार और बिजनेस संभालने में वह खुद को भी भूल गया. उसका निजी जीवन कुछ नही रहा. और उधर मां किरन अब दोनों ही बेटों की शादी के लिए चिंतित हो रही थी,

“देखो बेटा कीर्तन, तुमने परिवार और बिजनेस को अच्छे से संभाला. लेकिन अब तुम्हें उचित समय में शादी कर लेनी चाहिए. घर में एक बहु आ जायेगी तो मुझे भी घर को चिंता थोड़ी कम होगी…”

“ठीक है मां लेकिन मुझे शादी नही करनी अगर में शादी अभी कर लूंगा तो में बिजनेस अच्छे से नही संभाल पाऊंगा और ऐसे में में अपनी बीवी को भी पूरा समय नहीं दे पाऊंगा, और में नही चाहता की में किसी लड़की से शादी कर उसका जीवन बिगाड़ दूं. और आप तो अच्छे से जानती है की कार्तिक को बिजनेस में कोई शौक नहीं. आप कार्तिक की ही शादी करवा दीजिए. आपको बहु ही चाहिए ना तो छोटी हो या बड़ी क्या फर्क पड़ता है.”

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बेटे कीर्तन की बात मान कर मां किरन ने अपने  छोटे बेटे कार्तिक की शादी एक बड़े घर की लड़की सुभाना से कर दी. सुभाना ने शादी के बाद ससुराल की हर रीत रिवाज़ को माना और परिवार में घुल मिल गई. और वह खुश भी थी की घर में उसके मुकाबले कोई और देवरानी या जेठानी नही थी. क्यों की उसको यह यकीन हो गया था को उसके जेठ जी यानी कीर्तन भाई घर के बड़े भाई पूरी जिंदगी शादी नही करेंगे .  . समय गुजरता गया और कीर्तन अपने बिजनेस में ही व्यस्त रहा. और कार्तिक एक पेंटर और लेखक होने के नाते पूरा दिन घर पर रह कर ही अपना काम करता. ऐसे में अब सुभाना अपने पति की इस बात से तंग आने लगी थी. वह अब घर वालों के सामने भी अपने पति को बुरा भला सुनाती. और कार्तिक को बार बार बिजनेस अपने हाथ में लेने के लिए भड़काती लेकिन कार्तिक ने अपनी बीवी को कई बार अनसुना ही किया. समय ऐसे ही बीतता गया अब कार्तिक और सुभाना का एक तीन साल का बेटा भी भी हो गया  नाम था जयनम. और इधर  कीर्तन अभी भी बिना शादी के ही था. उसके जीवन में कोई बदलाव नहीं आया.

एक दिन जब कीर्तन मीटिंग के सिलसिले में शहर से बाहर जाता है तो उसे एक बहुत ही साधारण सी दिखने वाली लकड़ी गुंजन से प्यार हो जाता है. और उस से शादी की इच्छा जताते हुए कीर्तन अब अपनी मां से बात करता है,

“मां आप कई दिनों से मेरी शादी के लिए परेशान थी ना… मुझे अब एक लड़की पसंद है बिल्कुल जैसे आप अपनी जवानी में थी और कैसे आपने हमारे परिवार को और बिजनेस को पापा के बाद संभाला, वो लड़की गुंजन मां बिल्कुल वैसी ही है!”

मां तो अपने बेटे के इस बात से बहुत ही खुश हो गई. और वह गुंजन के घर शगुन ले कर बड़े बेटे कीर्तन का हाथ मांगने गई. वैसे तो कीर्तन और गुंजन में १० साल का उम्र का फर्क था लेकिन ऐसे पैसे वाले खानदान और इतना ऊंचा नाम साथ में संस्कारी घर से रिश्ता आने पर आखिर कौनसे बेटी का परिवार मना करता. थोड़े ही दिनों के कीर्तन और गुंजन की शादी हो जाती है. उधर घर में जेठानी के आने से अब देवरानी को बहुत जलन हो रही थी. क्यों की थी तो गुंजन सुभाना से उम्र में छोटी पर वह घर में रिश्ते में उसकी जेठानी जो थी.




“वाह… जेठानी जी आपने तो बढ़िया हाथ मारा है, घर के बड़े बेटे से शादी कर ली और घर की महारानी ही बन गई!”

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“अरे नहीं नही भाभी आप मुझसे उम्र में और तजुर्बे में भी बड़ी हो आपसे मुझे कोई मुकाबला नहीं करना अच्छा है अगर हम घर में दो बहनों की तरह ही रहे!”

लेकिन सुभाना ने अब अपनी चाल चलनी शुरू कर दी क्यों की कीर्तन और गुंजन में बहुत प्यार था. और कीर्तन अब अपने बिजनेस के साथ साथ अपनी पत्नी का भी पूरा ख्याल रखता था. और क्यों की गुंजन पढ़ी लिखी थी तो गुंजन ने भी पति कीर्तन के साथ बिजनेस संभालने में उनका पूरा साथ दिया और इस बात से गुंजन की देवरानी सुभाना को बहुत जलन हुई.

“देखो गुंजन ये कुछ पैसे है कल एक डील फाइनल करनी है तो तुम इन पैसों को संभाल कर रखो मीटिंग घर पर ही बुलाई है क्यों की हमारे क्लाइंट फॉरेन से है और उन्हें भारतीय खाने की इच्छा है तो लगे हाथो डील भी हो जायेगी और वो गोरे आखिर हमारी मेहमान नवाजी भी देख लेंगे!”

“हां ये तो बहुत अच्छा किया आपने कीर्तन जी…”

ये बात बाहर से सुभाना सुन लेती है और अपनी चाल चल जाती है. वह चुपके से चाबी ले कर गुंजन को दिए हुए पैसों में से कुछ नोटों को गड्डीया  गायब कर देती है.

दूसरे दिन जब मेहमान आते है और कीर्तन गुंजन से वो कल दिए हुए पैसे मांगता है तो उसमे पैसे कम नजर आते है. सुभाना तो अपनी जेठानी को सबके सामने नीचा दिखाते हुए बहुत खुश थी लेकिन फिर अंदर से सास किरन आती है और बाकी पैसे गुंजन के हाथ में देते हुए कहती है,

“ये लो गुंजन कल मैंने ही किसी काम से लिए थे लेकिन फिर मैं तुम्हें बताना भूल गई… थोड़ी इमरजेंसी थी तो पहले बता नही पाई!”

गुंजन कुछ समझ नहीं पाई लेकिन सास किरन ने संभाल लिया. सुभाना अपनी चाल को ऐसे विफल होते देख विचलित हो गई और गुस्से से ऊपर कमरे में जा पहुंची. लेकिन फिर भी उसने अपनी चाल चलनी बंद  नही की.




कुछ दिनों बाद जब कीर्तन ने गुंजन को कहा,

“ये लो तुम्हारे लिए साड़ी ये पहन कर शाम को तैयार रहना हमे एक इंपोर्टेंट ऑफिशियल पार्टी में जाना है, और लगना भी तो चाहिए  की तुम कीर्तन सदाना की पत्नी हो. और मेरी हाफ पार्टनर, यानी बैटर हाफ…”

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और फिर से सुभाना जब कमरे में गुंजन नही थी तो लाल साड़ी में वह काले रंग के दाग लगा देती  है और साड़ी खराब कर देती है. लेकिन जब रात को गुंजन साड़ी पहन ने के लिए हाथ में लेती है तो उसमे दाग लगे थे वो कुछ समझ नहीं पाई की बस चंद घंटों के ये कैसे हो गया. लेकिन अब वो क्या करती, वह सास के कमरे में गई और सारी बात कही तो सास ने अपने अलमारी में से सुंदर  सी दूसरी लाल साड़ी निकाल कर गुंजन को दे दी गुंजन वो पहन कर तैयार हो गई. 

कह कीर्तन ने गुंजन को देखा तो कीर्तन गुंजन को खूबसूरती के सामने ये भूल ही गया को उसने गुंजन को कौनसी साड़ी दी थी. वह बस गुंजन की आंखो में ही खो गया. और सुभाना फिर से एक बार अपनी चाल में नाकामयाब रही.

जब दोनो ही पार्टी से घर लौटे तो सास ने सब घर वालो को नीचे बुलाया और फिर सुभाना की सच्चाई सबके सामने लाई. तो सुभाना समझ नही पाई की सास को ये सब कैसे पता था लेकिन फिर सास बोली,

“तुम्हें क्या लगता है सुभाना मैने अपने बाल धूप में सफेद किए है… इस घर में मैं भी एक साधारण लड़की  बन कर आई थी, लेकिन मैं भी गुंजन की तरह ही थी मैंने सबकुछ संभाला और सौतेले बेटे और बहू होने के बाद भी मैंने कभी उनको पराया नही समझा बल्कि मुझे अपने और सौतेले में कोई फर्क ही नहीं नजर आया, लेकिन तुम जो गुंजन के साथ कर रही थी मुझे पहले दिन से ही पता था…” अपनी सास की ये बात सुन सुभाना चौक जाती है. उधर कार्तिक अपनी बीवी की ऐसी हरकतों पर शर्मिंदा होता है और वह अपनी बीवी पर सबके सामने चिल्लाने लगता है.

ऐसे में सास किरन अपने छोटे बेटे को रोकती है,

“बेटा कार्तिक… इसमें तेरी भी गलती है माना कि तुझे अपने पारिवारिक बिजनेस में कोई दिलचस्पी नहीं लेकिन तू अपने शौक में अपने कामों में इतना खो गया कि तूने अपनी बीवी और बच्चे की पर ध्यान देना ही छोड़ दिया. यह गलत है बेटा तुझे भी अब यह समझना चाहिए कि जीवन में जब अपना परिवार होता है तो हर चीज में एक बैलेंस बनाए रखना जरूरी है. अगर यह नहीं करोगे तो परिवार में और रिश्तो में दरारे आएगी!”

अपने सास की यह बात सुनकर सुभाना फूट-फूटकर रोती है. क्योंकि जो बात वह अपने पति को समझा नहीं पा रही थी वह उसकी सास ने समझा दिया. क्योंकि सास बहुत ही समझदार थी. और ऐसे ही वह अपने किए के लिए सब से माफी भी मांग लेती है और सब माफ़ भी कर देते है. क्यों की परिवार अपनो से बनता है. ऐसे में एक अपना अगर गलती करें और माफी मांगे तो उसे माफ कर देना चाहिए. और सुधारने का एक मौका तो जरूर देना चाहिए.

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