बड़ी बहन – रमन शांडिल्य  : Moral Stories in Hindi

बात यही कोई 25 वर्ष पुरानी है ।  मोबाइल रहित जमाना था । ऑनलाइन कुछ भी नहीं होता था । केवल हार्डकॉपी, हार्डवर्क और हार्डकैश से ही सारे काम चलते थे ।  नवंबर के हल्की ठंड वाले छोटे दिन थे और मैं किसी काम से करनाल गया था ।

मुझे दो दिन करनाल रुकना था इसलिए मैं रुपए पैसे की पूरी व्यवस्था करके चला था । करनाल में रहते हुए उन दो दिन में मैंने खूब खर्च किया । लेकिन कितना खर्च किया इसका कोई हिसाब नहीं रखा । होटल बिल चैक आउट होने पर देना होगा ध्यान से ही उतर गया था ।

मगर चैक आउट करते हुए होटल का बिल तो देना ही था । और होटल बिल दिया, तो मेरे पांव के नीचे से जमीन खिसक गई । होटल बिल के नकद भुगतान के बाद मेरे पर्स में केवल 10 रूपए ही शेष बचे ।

इन दस रुपयों से क्या होता? करनाल से भिवानी घर वापसी के किराए के पैसे भी नहीं बचे ।

जहन में ऊहापोह चल पड़ी । जाऊं तो, जाऊं कहां। किसी को बताऊं भी तो क्या बताऊं, कि मैंने अपनी जेब से ज्यादा खर्च कर दिया और हाथ पसारने के नौबत खड़ी कर ली । मैं बार बार खुद को कोस रहा था ।

“तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर” वाली पंक्ति मन मस्तिष्क में गूंजती जा रही थी ।

मेरे चेहरे के भावों पर बहुत सारे प्रश्न थे जो कोई भी पढ़ सकता था । हल्की सर्दी के उस छोटे दिन, सांझ ढलते ही अंधेरा गहराने लगा । अब मेरे पास केवल दो ही रास्ते थे या तो करनाल से भिवानी का ट्रेन सफर बिना टिकट तय किया जाए या अपने किसी परिचित के घर से कुछ रुपए उधार लेकर घर वापसी की जाए ।

अभी बिना टिकट रेल यात्रा का विचार मन में आया ही था कि मुझे काले कोट में सभी तरफ टीटी ही टीटी दिखाई देने लगे । हृदयगति बढ़ने लगी । मुझे लगा कि बिना टिकट रेल यात्रा करने की हिम्मत मुझमें है ही नहीं ।

इसलिए बिना टिकट यात्रा करने वाला विचार तुरंत ही त्यागना पड़ा ।

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जब परेशानी बढ़ जाती है तो दिमाग के घोड़े भी तेज दौड़ने लग जाते हैं । मेरा दिमाग भी कोई समाधान ढूंढ रहा था ।  तभी मुझे खयाल आया कि मेरे ही विभाग की बेहद मिलनसार और नेकदिल प्रशासनिक अधिकारी, श्रीमती कविता मनमोहन जी का हाल ही में करनाल ट्रांसफर हुआ था । कविता मैडम के साथ मैंने कुछ दिन काम भी किया था । मुझे ये भी याद आया कि उनको कुछ रोज पहले ही विभाग की ऑफिसर्स कॉलोनी, करनाल में अपार्टमेंट भी मिला था ।

मगर, मैं गहन असमंजस में था । सोच रहा था कि आज पहली बार उनके घर जाऊं और वो भी पैसे उधारे मांगने ! लेकिन समस्या विकट  थी । मरता क्या न करता ।

येन केन प्रकारेण मैं ऑफिसर्स कॉलोनी मॉडल टाउन करनाल पहुंचा ।

मैडम के दरवाजे पर दस्तक दी ।  मुझे देख मैडम बहुत खुश हुई । बोली , “अरे रमन तुम मुझसे मिलने आए । इतनी दूर से । क्या बात, सब ठीक तो है । “

मैं नकली सी संकोचभरी हंसी चेहरे पर अटकाए, मैडम के सामने खड़ा ऐसा महसूस कर रहा था जैसे मुझसे कोई बहुत बड़ी भूल हो गई हो और सुधार की कोई गुंजाइश न हो ।

शब्द जुबां पर आने का रास्ता भूल चुके थे । जो शब्द जुबां पर आ रहे थे वो सब आधे अधूरे से थे ।

उधार मांगने का काम इतना कठिन होगा मैंने कभी सोचा न था । फिर जैसे तैसे हौसला कर मैंने अपनी स्थिति मैडम को बताई कि मुझे भिवानी वापस जाने के लिए 50 रुपए उधार चाहिए ।

मैडम बोली, ” क्या ? पचास रुपए ?  कितना किराया लगेगा ?”

मैने कहा , “49 रुपए, मैडम।”

मेरी साफगोई पर मैडम मुझे ऐसे निहार रही थी कि जैसे किसी छोटे बच्चे ने टॉफी की डिमांड रख दी हो । उनकी आंखों में ममत्व के भाव उमड़ आए ।  लाड़ भरे शब्दों में बोली, “थोड़ा रुक, मैं आई ।” मैडम रसोई में गई और मेरे लिए कुछ फ्रूट्स और 200 रुपए ले लाई । मैंने कहा मैडम केवल 50 रुपए चाहिए । तो हंसने लगी । बोली, “रमन, मैं तो तुझे बहुत तेज तरार समझती थी, तू तो निरा बुद्धू निकला । बोली, ” पचास रुपए से कैसे काम चलेगा क्या ? इतनी दूर का रास्ता है, पता नहीं कब क्या जरूरत निकल आए ।”

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बोली, ” अब तू चुपचाप ये पैसे और रास्ते के लिए ये फ्रूट्स रख, और जल्दी से स्टेशन के पहुंचने के लिए रिक्शा पकड़, नहीं तो पॉकेट से पैसों की तरह, स्टेशन से तेरी ट्रेन भी निकल जाएगी ।”

मैं, मैडम को कृतज्ञता भरी निगाहों से देखता हुआ, धन्यवाद  देते हुए बोला,” मैडम!  सैलरी वाले दिन लौटा दूंगा ।”

मैडम बोली, “अच्छा ! जब कभी करनाल आओ तो मिलने जरूर आना  ।”

ट्रेन में हिचकोले खाते मैं यही सोच रहा था कि “आदमी वही जो समय पर काम आए ।”

मैं इस नेकी से बहुत प्रभावित हुआ । मैंने ट्रेन में ही प्रण लिया कि मैं भी अपने जीवन में किसी न किसी पात्र की अपनी हैसियत से बढ़ कर मदद करूंगा ।

महीना पूरा हुआ । सैलरी मिली ।  मैं सीधा मैडम के घर पहुंचा, करनाल।  इस बार मुझे देख मैडम और भी ज्यादा खुश हुईं । उनके पति माटा साहब और उनका बेटा भी मैडम के साथ घर पर ही थे ।

माटा साहब ऊंचे ओहदे पर गैजेटिड अधिकारी थे । मैडम ने उनको मेरे बारे में बताया ही होगा, इसीलिए उन्होंने हल्के से मुस्कुरा कर मुझसे कहा, “ओ हो! तो तुम हो, रमन !” मैंने जी कह कर हामी भरी।

फिर माटा साहब बोले, “देखो छोटे भाई, तुम सुडौल कद काठी वाले हो ।  पढ़ाई पर ध्यान दो, भाई ।  अभी तुम्हारी ऐज बची है । आगे बढ़ो ।कंपटीशन फाइट करो और जल्दी से जल्दी अफसर बनो।”

उनकी सारी बातों की मैं हामी भरता गया ।

चाय नाश्ता करने के बाद जब मुझे लगा कि अब मुझे उनके घर से विदा लेनी चाहिए तो सोफे से उठते हुए मैंने मैडम को कहा कि मैडम उस दिन आपने मेरी बहुत मदद की, मुझे ये बात हमेशा याद रहेगी और ये कहते हुए मैंने 200 रुपए मैडम की तरफ बढ़ा दिए ।

मैडम ने तपाक से कहा, ” अरे रमन, मैं तेरी बड़ी बहन हूं । तेरे से 200 रुपए वापस लूंगी क्या? मैं नहीं लेती ।”  फिर हंसते हुए बोली,” बस अपनी शादी में जरूर बुला लेना ।”

मेरी आंखों की कोर भीतर ही भीतर भीग चुकी थी और मैं अपनी कृतज्ञता जताने हाथ जोड़े कुछ क्षण खड़ा रहा, फिर उनके घर से विदा ली ।

रमन शांडिल्य

23.10.2024

भिवानी ।

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