हर साल गर्मी की छुट्टियों में माँ के घर दोनों बहनें कुछ दिनों के लिए मिलती थीं। बड़ी बहन सीमा ज़रा बड़े घर की बहु थी और ठसके वाली थी, इसके विपरीत छोटी सविता साधारण हैसियत वाली थी। सीमा छुटकी और उसके बच्चों के लिए बहुत बढ़िया कपड़े और ढ़ेरों दूसरे सामान लाती थी। कल ही सविता ने फो़न किया था,”क्या दीदी! कल रात को मैं वापिस जा रही हूँ। वहाँ मम्मी जी की तबियत खराब है, बच्चे तुम्हारा बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं।”
“अरे ये क्या बात हुई, दो चार दिन और रुक ना। वैसे मैं बस पहुँच ही रही हूँ।”
तभी बाहर कार का हार्न बजा और सब ‘मौसी आ गई’ का शोर मचाते बाहर दौड़े। सीमा बड़े बड़े सूटकेस खोल कर बैठ गई थी। सबसे पहले उसने एक सुंदर सजे पैकेट से बहुत सुंदर साड़ी निकाल कर छुटकी के हाथ पर रख दी और बोली,”देख छुटकी, ये तेरे जीजाजी खास तेरे लिए लखनऊ से लाए हैं….बता कैसी लगी?”
वो साड़ी हाथ में लिए बैठी रह गई। उसके चेहरे पर अनेकों भाव आ जा रहे थे, बच्चे तो अपने उपहार लेकर मस्त हो गए थे। थोड़ी देर बाद वो पैकिंग करने के बहाने से उठ गई, दो घंटे बाद उसकी ट्रेन भी थी। उसको विदा करके सीमा कमरे में गई…वहाँ का नज़ारा देख कर भौचक्की रह गई… उसके लाए सब पैकेट पलंग पर पड़े थे और साथ में चिठ्ठी थी…लिखा था,”दीदी! हर तरह से तुमसे छोटी हूँ…उम्र में भी और हैसियत में भी। तुम जो भी प्रेम से देती थी ,मैं उतने ही प्रेम से लेती भी थी। मैंने तो तुम्हारी उतरन हमेशा ही शौक से पहनी पर तुम अपनी उतारी साड़ी इस तरह नई कह कर दोगी…ये मैंने सोचा भी ना था। “
वो धम्म से कुर्सी पर बैठ गई और सामने पड़े पैकेट उसको मुँह चिढ़ाते प्रतीत हो रहे थे। आज वो अपनी ही निगाहों में स्वयं को बहुत छोटा महसूस कर रही थी।
नीरजा कृष्णा
पटना