जब सुजाता अपने पति राघव के नाम का सिंदूर और अपने पति के साथ ससुराल में कदम रखा था तो जानकी जी यानी उनके सासु मां ने उसकी आरती उतारते हुए कहा था” सुजाता बहू बहुत-बहुत स्वागत है तुम्हारा इस घर में।। इस घर की बड़ी बहू हो तुम , याद रहे अपनी जिम्मेदारी समझना और घर के रीति रिवाज कायदे कानून से लेकर खिड़की दरवाजे तक वैसे ही रहे जैसे चलते आ रहे हैं।न कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए न ही घर टूटना चाहिए।”
सास की आज्ञा थी या नसीहत, जो भी था सुजाता ने उनके चरण स्पर्श कर गृह प्रवेश कर गई थी। उसके बाद किसी ने उसे सुजाता नाम से नहीं बुलाया था वह घर की बड़ी बहू हो गई थी। उसकी सासु मां जानकी जी इस घर की सबसे बड़ी बहू थीं और उनकी बड़ी बहू सुजाता।
उसका ससुराल एक संयुक्त परिवार था। घर में ससुर के चारों भाई उनके बच्चे और उनके भी परिवार रहते थे। सब लोग नौकरी चाकरी, खेती बाड़ी सब कुछ करते थे मगर रहते एक साथ ही।एक साथ खाना बनता, एक दूसरे की सुख-दुख, खुशी गम सब में शरीक होते।
धीरे-धीरे सुजाता को इस बात की समझ आ गई थी और उसने मान भी लिया था। बड़ी बहू होने के नाते अपने सारे फर्ज पूरे कर रही थी ।किसी को उससे कोई शिकायत नहीं थी।
वहां उसके ससुर रमाकांत जी का ही हुकुम बजता था। किसी को उनके आगे चूं करने की भी हिम्मत नहीं थी। जैसा आम परिवार में होता है उसे समझा दिया गया था बहू की मर्यादा क्या है घर की मर्यादा क्या है।
सुजाता ने कभी मर्यादा लंगने की कोशिश भी नहीं की। उसने अपनी सारी जिम्मेदारी हंसी-खुशी उठा लिया था । उसे घर परिवार से इज्जत भी मिल रही थी। वह खुश थी।
देखते-देखते 4 साल बीत गए थे ।वह दो
बच्चों की मां भी बन गई थी। अब भी वह बड़ी बहू ही थी।
हाल में ही उसके मंझले देवर की नौकरी लग गई थी। अच्छी नौकरी थी तो सब लोग जल्दी पल्दी उसकी शादी करवाना चाहते थे।
फरवरी आ चुका था।परिवार के सभी लोग कुंभ स्नान करने जा रहे थे। जानकी जी ने सुजाता को बुलाकर कहा
“ बड़ी बहू हम लोग हर्ष के लिए लड़की देखते हुए आएंगे ।वह भी वहीं की है। इलाहाबाद जब हम जा रहे हैं तो लड़की देखने का भी काम करते आएंगे।”
कई दिनों से सुजाता यह महसूस कर रही थी कि हर्ष थोड़ा गुमसुम सा रह रहा था।नई नौकरी थी मगर वह खुश नहीं था।
“इसका कारण क्या हो सकता है ?उसने अपने पति राघव से भी पूछा मगर वह भी काम में व्यस्त रहते थे। उन्होंने उससे कहा “तुम भाभी हो उसकी ,तुम्हारी ड्यूटी है जाकर उससे पूछो!”
सुजाता उस दिन नहाकर अपने कमरे में आकर बाल झाड़ रही थी ।
तभी हर्ष की आवाज आई “भाभी! मैं अंदर आ जाऊं?”
“हां हर्ष आओ क्या बात है? आजकल तुम मुझे थोड़े गुमसुम से नजर आ रहे हो। कोई ऐसी बात है जो तुम मुझसे छुपा रहे हो? क्या बात है मुझे बताओ?”
“भाभी वह बात ऐसी है कि ,, हर्ष अटक गया।
“क्या है हर्ष बोलो ?”सुजाता ने अपनी प्रश्न सूचक निगाहें उसकी और टिका दिया ।
“भाभी आप मां को मना कर दीजिए मेरी शादी ना तय करें। मैं अपने लिए लड़की ढूंढ लिया हूं।”
“यह क्या कह रहे हो हर्ष?”
“हां भाभी यह काम आप ही कर सकती हैं। हर्ष ने आकर उसके दोनों हाथ पकड़ लिए।
“मुझे आपमें मां नजर आती हैं और मां से कोई कैसे कोई बात छुपा सकता है।मैं रिचा को अपना मान लिया है। उसे वचन दे दिया है अब मैं पीछे नहीं हट सकता।
सब लोग मेरी शादी तय करके आएंगे। मगर मैं वह शादी नहीं कर सकता। वह मेरे लिए शादी नहीं फांसी का फंदा होगा जिसमें बंध कर मैं कभी खुश नहीं हो पाऊंगा ।”
“यह तुम क्या कह रहे हो ?”
सुजाता के पांव के नीचे से जमीन खिसकने लगी थी।
वह अपने सास ससुर को जानती थी कि वह यह होने ही नहीं देंगे।
“यह तुमने मुझे कहां फंसा दिया हर्ष ।”
“मुझे नहीं पता यह बात आप ही कर सकती है ।मैं आपको रिचा से मिलवा भी सकता हूं। आप एक बार देख लीजिए।”
“ठीक है !”सुजाता ने हामी तो भर दिया ।
लेकिन आने वाले तूफान में उसका क्या होने वाला है यह उसे अब से ही नजर आने लगा था।
हर्ष के जाने के बाद उसने अपने पति राघव को फोन मिला कर सारी बातें बताया।
“यह क्या कह रही हो तुम सुजाता? तुम्हारा दिमाग फिर तो नहीं गया है?”राघव ने उसे डांटते हुए कहा।”
“नहीं जी ,आप थोड़ा धैर्य से समझिए। जवान लड़का है। कुछ ऊंच–नीच कर लेगा तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।
हमारे घर की भी तो इज्जत है। बाबूजी का क्या, उनका गुस्सा और घमंड उनके पास रहेगा मगर पूरे खानदान के इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी।”
“हां यह तुम ठीक कह रही हो!” राघव का गुस्सा थोड़ा कम होने लगा।
“कुछ ऐसा करना होगा जिससे बाबूजी भी खुश रहे और हर्ष भी। मैं ऐसा करती हूं कि मैं हर्ष के साथ जाकर रिचा से मिल लेती हूं मां बाबूजी के आने से पहले।”
“ हां ठीक है ,चली जाओ।”
बच्चों के स्कूल जाने के बाद सुजाता हर्ष के साथ एक मॉल में चली गई, जहां एक कैफे में रचा आकर बैठी हुई थी।
रिचा को वह पहले से जानती थी। वह उसकी साहित्यिक ऑनलाइन ग्रुप में मेंबर थी जिससे वह भी जुड़ी हुई थी। काफी विनम्र मितभाषी और बहुत ही एक्टिव लड़की थी ।
आज वह सामने बैठी हुई थी उसे देखकर सुजाता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
“मुझे यकीन नहीं था रिचा, कि मेरे देवर के पसंद इतनी अच्छी हो सकती है ।मगर हम मजबूर है क्या करें।
तुम्हें और हर्ष दोनों को थोड़ा वक्त देना होगा। तभी हम मां बाबूजी और चाचा चाची सभी को मना पाएंगे ।”
“मगर भाभी मां बाबूजी तो शादी फाइनल करके आएंगे।”
“ऐसा तो कोई जरूरी नहीं, अभी तक तो कोई खबर नहीं आई है। एक बार उन्हें आने दो फिर बैठ कर बात करके देखते हैं।”सुजाता ने हर्ष को दिलासा देते हुए कहा।
थोड़े दिन बाद सब लोग कुंभ से वापस आ गए। उन लोगों ने लड़की तो देख ली थी मगर उनमु एक मत नहीं था। बाबूजी को लड़की पसंद थी ।लड़की से ज्यादा लड़की के पिता का रुआब। मगर जानकी जी को लड़की पसंद नहीं आ रही थी।
उन्होंने दबे स्वर में कहा”हमारी बड़ी बहू कौन सी कम पढ़ी लिखी है ।कितनी विनम्र है मुझे ऐसी ही लड़की चाहिए।
मुझे वह लड़की बहुत ज्यादा शहरी नज़र आ रही थी। उसे अपनी डिग्री का बड़ा गुरूर है। वह कहां हम लोगों के बीच में निभा पाएगी पूरे घर को छितर बितर कर देगी।”
जानकी जी दुखी हो गई थी उन्हें अपना भरा पूरा घर बहुत पसंद था अपनी बुद्धिमानी से उन्होंने सभी को समेट रखा था अपनी बहू से भी वह यही उम्मीद रखती थी।
उन्हें दुखी और परेशान देखकर सुजाता उनसे बोली
“मां मेरी नजर में एक लड़की है अगर आप लोग कहेंगे तो मैं बात कर सकती हूं।”
“कौन है व”
“मां आप भी जानतीं हैं उसे।वह बैंक में भी आफिसर है और हमारे साहित्यिक ग्रुप की मेंबर भी। बहुत ही अच्छी है। हमारे देवर जी बहुत ही खुश रहेंगे उसके साथ।”
“बड़ी बहू तुम उसे कैसे जानती हो?”उसके ससुर ने उससे पूछा तो बड़ी ही सफाई से उसने कहा
“पापाजी ,मैं उससे कल ही मिली थी जब मैं माॅल गई थी तो वह भी वहां आई हुई थी।” उसने हर्ष की बात गोल कर दिया।
“ठीक है बहू तो हमें भी मिला दो।” जानकी जी रिचा से मिलकर बहुत ही ज्यादा खुश हो गई।
उन्होंने कहा “हमें ऐसी लड़की चाहिए थी जैसे बड़ी बहू वैसे ही छोटी बहू। बस अब और देखा देखी नहीं करना ।हम जाकर लड़की वालों से मिलकर उसे शगुन देकर आएंगे ।”
जानकी जी ने अपना फरमान सुना दिया। सुजाता ने कनखियों से हर्ष की तरफ देखा और एक आंख झपका कर मुस्कुरा दी।
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प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
नई दिल्ली
#बड़ी बहू
साप्ताहिक विषय
# बड़ी बहू के लिए मेरी रचना
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के साप्ताहिक विषय हेतु