बड़ी बहू – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : निर्मला जी आज अपनी कोठी में जीवन की संध्या में नितांत अकेला जीवन व्यतीत कर रही थी ।आराम कुर्सी पर बैठी वह याद कर रही थी जिंदगी के उन पन्नों को जिसमें जिंदगी ने उन्हें बहुत कुछ दिया, आदर, सत्कार, पैसा रुतबा सब, पर उन्होंने अपने कर्कश व्यवहार के कारण सब कुछ खो दिया।

ईश्वर ने उन्हें क्या नहीं दिया, उन्हें दो बेटे दो बहुएं पोते पोतियों की सौगात, एक आदर्श पति और किसी जमाने में मां-बाप के समान उनके साथ ससुर और दो बहनों जैसी नन्दे उनके जीवन का हिस्सा रहीं। पर वो किसी भी रिश्ते के साथ मधुर संबंध नहीं बना सकी, जीवन के किसी भी रिश्ते को वह दिल से नहीं निभा सकी।

आज उन्हें अफसोस होता है अपनों के साथ किये उनके खुद के व्यवहार पर।

उन्हें आज भी याद है जब वह अपने बड़े बेटे के लिए लड़की पसंद करने गई थी। पहले ही नजर में ऋतु की सादगी उनके मन में घर कर गई थी ।उसके  लंबे काले बाल ,बोलती हुई आंखें और होठों पर मधुर मुस्कान ,बस फिर क्या था सभी ने ऋतु को हवेली की बड़ी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था।

जल्दी ही जन्मपत्री और  अन्य औपचारिकताएं पूरी होने  के बाद विवाह की तारीख पक्की हो गई ।सब कुछ अच्छा हो रहा था।

हवेली जगर मगर कर रही थी, लंबी झालरों फूलों से हवेली भी निखर कर आ रही थी। हर तरफ विवाह की रौनक थी।

निर्मला और अमोल जी का बड़ा पुत्र माधव  जब दूल्हा बनकर निकला तो कस्बे के हर व्यक्ति के मुंँह पर वाह वाह थी। शहर का हर व्यक्ति उस बारात में उमंग में नाचने के लिए बेकरार था।

ऋतु जैसी बड़ी बहु पाकर निर्मला जी भी फूली नहीं समा रही थी ,आस पड़ोस में हर तरफ उनकी बड़ी बहु की सादगी और सुंदरता की चर्चा थी।

 निर्मला जी की बहु की मुंँह दिखाई करने आने वाली हर महिला उनकी बहु की तारीफ करती और हृदय में थोड़ी कुढन भी रखती कि इतने कर्कश स्वभाव की महिला इतनी सभ्य सुंदर बहु के साथ किस प्रकार निभा पाएगी।

निर्मला जी की खुद की सास पार्वती  जी भी पोते  की शादी का  अरमान न जाने कब से सजाई बैठी थी। आज हवेली  की बड़ी पोत बहु को पाकर निहाल  हुए जा रही थी। ढेर सारे पैसे न्यौछावर कर उन्होंने अपनी बड़ी बहु पर उतार कर कामवाली को दे दिए।

उधर निर्मला जी की दोनों ननदें भी अपने भैया भाभी से कहने लगी भैया बहुत सुंदर और सुशील बहु आई है हमारे माधव की। अपनी भाभी के व्यवहार को सोचते हुए उन्होंने कहा देखना कुछ समय जरूर देना बड़ी बहु को हवेली के तौर तरीकों  को समझने के लिए।

लेकिन निर्मला जी को अपनी ननदो का सुझाव पसंद नहीं आया।

उधर ऋतु ने भी जल्दी ही अपने सौम्य स्वभाव से घर के छोटे से लेकर बड़ों तक के दिल में अपनी जगह बना ली थी। हवेली के नौकर चाकर भी अब निर्मला जी को आवाज न देकर किसी भी काम के लिए बड़ी बहु को ही आवाज लगाते ।धीरे-धीरे निर्मला जी को अपना आसन डोलता नजर आने लगा ।उन्हें लगा कि कहीं मेरा दर्जा इस घर में दोयम दर्जे का ना हो जाए।

 उनके पति दोनों बेटे छोटे-छोटे काम चाय नाश्ते के लिए बड़ी बहु पर ही आश्रित होते चले गए ।ऋतु भी कभी किसी काम को मना न करती, हर काम खुशी-खुशी करती। निर्मला जी थोड़ी कामकाज में सुस्त थी ,लेकिन फिर भी चाहती थी काम चाहे बड़ी बहु करें पर घर का पत्ता भी उनकी इजाजत से ही सांँस ले।

वह धीरे-धीरे बड़ी बहु को मानसिक यातना देने लगी, कभी यह अच्छा नहीं बना ,हमारे यहां प्याज नहीं खाई जाती ,घी तुमने ज्यादा डाल दिया, चाय की आदत डाल लो हमारे चाय ही पी जाती है। कभी कहती है घर के सभी लोगों  का काम इतनी तुरंत मत करो कि उनकी आदत खराब हो जाए। कभी कहती क्या तुम बिना कहे सब्जी भी नहीं बना सकती ।हर बात पर उनकी ही चट होती है और उनकी ही पट।

बेचारी बड़ी बहू उनका व्यवहार समझ ही नहीं पा रही थी, पर शिकायत करती तो किससे,एक चक्रव्यूह में जैसे फसंती जा रही थी। उम्र ही क्या थी सिर्फ 21 वर्ष की ही तो थी। भरे पूरे घर से आई थी, पर मायके में इस तरह का व्यवहार किसी का नहीं देखा।

 ऊपर से जल्द ही नन्हे मेहमान के आने की खबर घर में फैल गई ।घर भर में खुशियां छा गई ,पर  बड़ी बहु ना तो  खुद को संभाल पा रही थी ,ना ही अपनी सास को समझ पा रही थी।

उधर निर्मला जी के पति ने एक कोठी तैयार कराई थी ।जिसमें वह सहपरिवार जाकर बसना चाहते थे, पर निर्मला जी अपनी सास को अपने साथ नहीं ले जाना चाहती थी उन्होंने धीरे-धीरे मन में प्लान बनाना शुरू किया।

वह पूरा दिन बातों का बतंगड़ बनाती रहती , कभी कहती मेरा चांदी का सिक्का खो गया है किसने लिया होगा ,कभी कहती तुम्हें पूरे घर में पौंछा लगाना चाहिए जिससे बच्चा नार्मल डिलीवरी से हो ।बेचारी ऋतु आत्मविश्वास खोती जा रही थी उसके ससुर और पति भी क्लेश के डर से कुछ न कह पाते ।शिकायत बहुत थी पर स्वभाव नहीं था उसका शिकायतें करने का,तो सहती गई।

कभी-कभी देवर ही कहता कि आप भी ना मांँ भाभी को बेवजह परेशान करना बंद करो।  तो इस पर भी निर्मला जी कहती चुप रहा कर  भाभी के ही हिमायती ,आने  दे तेरी बहु को उसकी भी ऐसी ही क्लास लूंँगी।

धीरे-धीरे समय बिता नन्हे मुन्ने का जन्म हुआ घर में एक बार फिर से खुशियों का माहौल था ।पर निर्मला जी ने जल्द ही यह ऐलान कर दिया कि वह अपने पति अपने छोटे बेटे के साथ जाकर नई कोठी में रहेंगी ।बड़ा बेटा उनकी सास और उनकी बड़ी बहु इस हवेली में ही रहेंगे।वो तो बस अपनी जिम्मेदारी बड़ी बहु के ऊपर छोड़कर ऐश से जीवन जीना चाहतीं थीं।

कोई कुछ नहीं बोला सब कुछ उनके मन मुताबिक होता चला गया।

करीब आठ साल बाद उनके छोटे बेटे का विवाह हुआ। छोटी बहू जल्द ही निर्मला जी का व्यवहार समझ गई,उसने जल्द ही निर्मल जी को करारा जवाब दिया, कोर्ट कचहरी होते-होते बचे।घर की इज्जत बचानी  बड़ी मुश्किल से बच पाई।जल्द ही छोटा बेटा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अलग हो गया।

उधर निर्मला जी की सास भी  स्वर्ग सुधार गई , बड़ी बहु और बेटे माधव ने उनकी बहुत सेवा की थी।सब कुछ उनकी बड़ी बहु ने संभाल लिया घर की इज्जत मान मर्यादा पर कभी आंच न आने दी।

अब माधव और बड़ी बहु पर अपनी दादी और पूर्वजों का ही आशीर्वाद समझो कि बच्चे पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़े थे।

अब उधर अमोल जी भी इस नीरस जीवन से ऊब चुके थे, उनका अकेलेपन में मन नहीं लगता। वह पोते पोतियो के साथ रहना चाहते थे। पर अपनी पत्नी की जिद के आगे वे बेबस थे। अमोल जी अपनी पत्नी को अक्सर समझाते की देख इस संसार में कोई साथ में नहीं आया है ,कभी तू यदि पहले गई तो मैं अकेला रह जाऊंँगा या मैं पहले गया तो तू अकेले रह जाएगी, इसलिए समय से ही अपनी गलती को सुधारना चाहिए ।हमें हमारे बच्चों के साथ रहना चाहिए।

हमारे बच्चों में कोई कमी नहीं है।

पर निर्मला जी को नहीं मानना था नहीं मानी। समय अपनी रफ्तार से चलता गया ।एक दिन निर्मला जी के पति अमोल जी भी चल बसे। अब निर्मला जी अपनी कोठी में बिल्कुल नितांत अकेली थी। अब उन्हें अपनी बड़ी बहु ऋतु और बेटे  माधव की याद आई। याद आया वो  हर वह पल जब उन्होंने अपनी बड़ी बहु को मानसिक रुप से बहुत परेशान किया।

पर अब  क्या किया जा सकता था, जब चिड़िया चुग गई खेत। तभी दरवाजे की घंटी बजती है। उनकी बड़ी बहु ऋतु और बड़ा बेटा माधव उन्हें हवेली में ले जाने आए थे। उनकी आँखों से आँसू झड़ने लगे, उन्होंने ये कहते हुए कि हो सके तो मुझे माफ़ कर दे बड़ी बहु, तुझे  लाख शिकायतें होगी पर कभी जुबान तक नहीं लाई मैं ही पागल थी हीरे को समझ ना पाई और पूरी जिंदगी अपनी कोयले जैसे अंधेरे में काट दी,अपनी प्यारी बड़ी बहु को सीने से लगा लिया ।

सारे गिले-शिकवे , शिकायतें आज दूर हो चुकीं थी, और आज ही वास्तव में उसे बड़ी बहू का दर्जा मिला था।

 

 

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश

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