“बड़ी बहू” – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

नहीं बडी बहू एक कदम भी आगे मत बढ़ाना। तुम्हें मेरी कसम, लेकिन अम्मा एक झलक लल्ला की देख आती, चलो ना हम दोनों चलते हैं। उस छोटे से बच्चे की क्या गलती? आपने कितने मन्नत के धागे बांधे हैं छोटी की गोद भर जाए। पूरे 6 बरस बाद सुनी है भगवान ने आपकी। देवर जी सुबह हमें बुलाने भी आए थे।

चलो ना क्या आपको पोता होने की खुशी नहीं है? आज उसकी छठी पूजनी है। अपनी सगी ताई और दादी के होते हुए क्या ये रसमें कोई और निभाएगा? अम्मा कम से कम सुख दुख में तो एक दूसरे के साथ खड़े हो ही जाए है तो परिवार ही। अरे क्यों बावली हो रही है मैंने अपना दिल कठोर कर लिया है।

किस मिट्टी की बनी है तू, मैं कोई भी बात नहीं भूली हूं आज खुशामद करने वाला बन रहा है मेरा पूत उस समय कितनी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। कुछ गलतियां कभी माफ नहीं होती। जब मैं मां होकर इतनी कट्टर हो सकती हूं तो तू क्यों नहीं? अम्मा मेरे लिए भी मेरे दोनों देवर औलाद से कम नहीं थे।

 भूल जा उन्हें, तेरी बस एक ही औलाद है तेरा बेटा समझी तुझे अपना ध्यान उसी पर देना है और किसी पर नहीं। वो पढ़ लिखकर कुछ बन जाए मेरा भी जीवन सफल हो जाए बस भगवान से इतनी ही जिंदगी मांगती हूं कि मेरे सामने मेरा पोता पढ़ लिखकर कुछ बन जाए ताकि तेरी जिम्मेदारी अच्छे से निभा सके।

 तुझे हर वो सुख मिले जिसकी तू हकदार है। सरलाजी की बड़ी बहू है शांति, जिसका नाम लेकर वो शायद ही कभी बोली हो बस बड़ी बहू ही कह कर पुकारती थी। उनके बड़े बेटे बिशंबर की पत्नी जिस दिन से शादी होकर उनके आंगन की रौनक बनी थी सबकी चहेती बन गई थी। सरला जी और सुधाकर जी अपने भाग्य पर इठलाते थे

ऐसी सुंदर सुशील बहू पाकर। सारे घर की जिम्मेदारी उसने अपने सर ले ली थी। सुधाकर जी सरकारी अध्यापक थे। उनके बड़े बेटे का बचपन से ही पढ़ाई में मन ना लगा इसीलिए उन्होंने किराने की दुकान खुलवा दी थी उसे, शांति भी सुधाकर जी के दोस्त की भतीजी थी। बचपन में ही मां-बाप की मृत्यु हो जाने के कारण अपने चाचा के घर ही पली थी वो , 

 सुधाकर जी और सरला जी को बचपन से ही शांति बहुत पसंद थी। मगर जिससे शादी करनी थी उसकी राय जरूरी थी अपने बेटे की भी यही इच्छा देखकर शांति उनके घर की बडी बहू बन गई। अपने दोनों देवरो को बहुत प्यार करती थी शांति, समय बीतता जा रहा था शांति भी एक बेटे की मां बन गई थी दोनों देवर पढ़ लिख कर काबिल बन गए, अजय की शादी हुई और वह गुड़गांव अपनी पत्नी के साथ रहने लगा।

 छोटा वाला देवर इसी शहर में एक प्राइवेट कॉलेज में पढ़ाता था। उसकी भी शादी हो गई। उसकी पत्नी प्रिया बहुत तेज स्वभाव की थी। मगर शांति ने कभी कोई शिकायत नहीं की। सरला जी और सुधाकर जी

 से लेकिन कुछ छिपा ना था।  

 दोनों देवर अपनी अपनी दुनिया में मस्त रहने लगे थे।

 एक दिन अचानक हार्ट फेल होने से विशंभर की मौत हो गई जैसे घर पर आफत ही टूट पड़ी। शांति का सब कुछ लुट चुका था। सुधाकर जी अपने बेटे का सदमा बर्दाश्त ना कर सके और बिस्तर से लग गए और 3 महीने बाद उनकी भी मृत्यु हो गई। उनकी सरकारी नौकरी होने की वजह से उनके छोटे बेटे विजय को उनकी नौकरी मिल गई थी।

सरला जी की पेंशन आती थी , अपने छोटे बेटे से उन्होंने कहा तुम्हें पिता की नौकरी मिली है तो तुम्हें उनकी जिम्मेदारी भी निभानी होगी अपनी भाभी का माँ की तरह ही ध्यान रखना होगा। तुम्हारी भाभी ने तुम्हारे लिए बहुत कुछ किया है अब तुम्हारी बारी है तुम उसके बेटे को संभालो। बहुत बड़ा दुख पड़ा है इस पर।

कुछ दिन तो सब ठीक था लेकिन धीरे-धीरे छोटी बहू ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए थे। दोनों भाई अपना अपना हिस्सा मांगने लगे थे। गुस्से में उन्होंने कहा इस मकान पर तुम्हारा कोई हक नहीं है मेरे पति की कमाई का है मेरे नाम है मेरी मर्जी मैं जिसे दूं यह घर में बड़ी बहू के नाम करूंगी। बड़ी बहू ने अजय को बाहर पढ़ने के लिए अपने सारे जेवर भी बेच दिए थे

और तुम्हें पिता की नौकरी भी मिल गई। बड़ी बहू तो ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं है तुम्हारा फर्ज था अपने भाई के न रहने पर उसके परिवार का ध्यान रखना मगर तुम दोनों जैसा खुदगर्ज कोई नहीं देखा। विजय की पत्नी भी बोल पड़ी कि आप सारी पेंशन भी तो भाभी और उनके बेटे पर ही खर्च करती हो हमें क्या देती हो?

हथौड़े से लगे थे सरला जी को अपनी छोटी बहू के ये शब्द, शांति को तो जैसे सदमा सा लग गया था। सरला जी के लाख समझाने पर भी बड़ी बहू ने साफ मना कर दिया था किसी का हिस्सा लेने के लिए। अजय को उसके हिस्से के पैसे दे दिए थे और एक घर के दो घर बना दिए गए। एक हिस्से में विजय रहने लगा था

और एक हिस्से में सरला जी अपनी बड़ी बहू और उसके बेटे के साथ रहती थी। अजय तो फिर लौट कर ही शहर से ना आया कभी। उस दिन से उन्होंने अपने दोनों बेटों से भी कोई मतलब ना रखा ना अपनी बहू को रखने दिया। सरला जी अपने बडे बेटे की दुकान भी संभालते लगी थी। खाली समय में शांति भी उन्हीं के साथ बैठ जाती थी ,

शांति का बेटा अब दूसरे शहर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। सरला जीव भगवान से बस इतना ही मांगती है कि जब तक मेरा पोता अपने पैरों पर खड़ा ना हो जाए मेरी मौत ना आए क्योंकि उनकी पेंशन से ही उनके पोते की पढ़ाई हो रही है। विजय के घर शादी के 6 साल बाद पुत्र हुआ है उसी की खबर देने आज अपनी मां के पास आया था। मगर शांति जी ने साफ मना कर दिया।

 उन्हें तो जैसे अपनी बड़ी बहू के सिवा कुछ दिखता है ही नहीं था। आखिर उनकी बहू ने हर कदम पर उनके परिवार को सहारा दिया है। अपने सास ससुर की सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ी उसने। तभी बाहर दरवाजे पर कुंडी खटखटाने की आवाज सुनकर वे जैसे नींद से जागी और दरवाजा खोलने चली गई। अपने सामने विजय और उसकी पत्नी को अपने छोटे से बेटे के साथ खड़े देखकर चौंक गई। एक बार तो मन हुआ पोते को गोद में लेने लेकिन मुंह फेर कर खड़ी हो गई।

 लेकिन उनके बेटे बहू ने उनके पोते को उनकी गोद में दे दिया। आंखों में आंसू आ गए उनकी।बस अम्मा बस अब हमें माफ कर दीजिए। ज्यादा ही अंधे हो गए थे हम स्वार्थ में। अगर आज मुन्न की ताई छठी नहीं पूजेंगी तो हम छठी ही नहीं पूजेगे। अपनों के बिना खुशियां अधूरी ही रहती हैं मां चलो ना घर चलो।

 विजय की पत्नी ने भी अपनी सास और जेठानी दोनों से माफी मांगी। हम भाभी के दुख को समझ ही नहीं पाए ना उनके त्याग और समर्पण को महसूस कर पाए हम बहुत शर्मिंदा है भाभी।,

शांति ने सरला जी की गोद से उनके बेटे को लेकर अपने सीने से चिपका लिया और कहने लगी ताई नहीं बड़ी मम्मी कहीं का मेरा राज दुलारा मुझे सबकी आंखें नम थी। अगर आज इसके बड़े पापा जिंदा होते तो कितने खुश होते एक नन्हे मेहमान ने हीं शायद पुराने रिश्तों को जोड़ने की एक नई शुरुआत कर दी थी धीरे-धीरे ही सही शायद रिश्तो में थोड़ा सा सुधार हो जाए। 

 पूजा शर्मा स्वरचित।

 दोस्तों कमेंट करके बताएं मेरी रचना आपको कैसी लगी हर बार की तरह मुझे इस बार भी आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा। अच्छी या बुरी जैसी

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