विवाह में इतनी भागदौड़ होने के बाद भी विद्या के चेहरे पर थकावट की सिकन तक नहीं थी ! मेहमानों की आवभगत, परिवार की महिलाओं व रिश्तेदारों से मिलने व बच्चों से स्नेह की औपचारिकता बेखूबी से हंस हंस कर निभा रही थी ।
वह धम धम करते घर की छत पर चढ़ी । जहाँ पहले ही मुंडेर का सहारा लिए औरतों की भीड़ इंतजार में कौतुहल वश खड़ी थी । अचानक वसु खुशी से सबको चौंकाने वाले अंदाज में जोर से कहने लगी “वो देखो लाहोटी भवन के सामने वाली सी. सी. रोड़ से बारात , आ रही है । वाह! क्या बात है रिमझिम ! गजब की बारात!!
हर्षा बुआ की नजर दुल्हा ढूंढ रही थी, वह उत्सुकता से बोली “वो देखो आगे-आगे लाल सेहरा लगाए दुल्हा!…..” विद्या के मुंह से हंसी की तेज फुहार निकल पड़ी । अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए वह बोली “अरे, बुआ जी, वो तो बैंडबाजे वाला है, दुल्हा तो बारात के बीचों बीच घोड़ी पर चढ़ कर आ रहा है ।” विद्या की बुआ सास कहने लगी
“इतनी दूर मुझे साफ कहाँ दिखता है…शिव की बहु!” खुशी बोली “अब छोड़ो भी हर्षा बहन, उधर देखो कितनी सजी धजी बारात आई है हर्षा की ! चलो अब मंगल गीत गाकर बारात का स्वागत करते हैं ।”
सभी महिलाएं घर के मुख्य द्वार पर आकर अपने कोकिल कंठों से विवाह के गीत गाने लगती है ।
आकाश का बड़ा सपना था अपनी सबसे छोटी सन्तान रिमझिम के विवाह का । उसने बड़े बेटे शिव की शादी को दस साल हो गये ।सुख का समय बहुत जल्दी निकल जाता है । अब तो रिमझिम का विवाह लास्ट है ।
आंगन में विवाह का मण्डप बन गया । पण्डित जी ने आवाज लगाई “लड़की के माता पिता आकर कन्या दान का संकल्प ले लें, फिर फेरे शुरू करवाते हैं ।” आकाश और उसकी पत्नी अलका आकर मण्डप में बेटी जंवाई के सामने बैठ गये । पण्डित जी ने दोनों के दाहिने हाथ में अक्षत व जल देकर कहा “मेरे पीछे पीछे बोलें” आकाश बोलने लगा ” मैं…. आकाश…. कश्यप…. जेतपुर… अपनी बेटी….रि…म..झि..म…का… कन्या…. दान..
करने का संकल्प लेता हूँ… ” आकाश का गला रूंध गया और आंखों से अश्रुधारा बहने लगी । ना समझ हैं वे लोग जो कहते हैं “पिता को बेटी माँ से कम प्यारी होती है ।”
सारा काम विधि विधान से प्रारम्भ हो गया था । बड़ी बहु अपनी दादी सास के पास गयी, जो कोठार में सो रही थी, उसने पूछा “दादी माँ ! आपके दवा लेने का समय हो गया है, दवाई ले लो ।” आकाश की माँ कुछ नहीं बोली । विद्या ने झुक कर उसका चेहरा देखा, उसकी आँखों से निकली आंसुओं की धारा के सूखे निशान
गालों तक साफ दिख रहे थे । शायद रिमझिम के ससुराल चले जाने का सोच सोच कर दादी का मन द्रवित हुआ होगा । यह सोचकर बड़ी बहु विद्या ने उसे धीरे से झकझोरा, पर कुछ भी हलचल नहीं । कोठार से भागकर बाहर गयी, शिव को धीरे से बुलाया । शिव ने दादी माँ के हाथ लगाकर देखा और उसकी आंखें भर आई । शिव बोला “दादी ने सौ साल ले लिए । ” विद्या ने कहा “पिछले दरवाजे से जाओ और डाक्टर को चुपचाप लेकर आओ,
हो सकता है अस्पताल लेकर जाने से ठीक हो जाये । ध्यान रहे किसी को कानों कान खबर न लगे ।” आकाश कम्बल ओढ़ कर पीछे वाले दरवाजे से अस्पताल गया, डाक्टर ने अपना सामान लिया और काला शाल ओढकर आकाश के साथ घर जाकर दादी का चैकअप किया । उसने उसे मृत घोषित कर दिया ।
डाक्टर चुपचाप चला गया, किसी को कानों कान खबर भी नहीं लगी । विद्या ने आकाश से कहा “इस वक्त अगर लोगों को पता लग गया तो सब कामों में व्यवधान पड़ जायेगा । शादी की रस्म पूरी कैसे होगी ? भीड़ और भाग दौड़ में सारी व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जागेगी । बाराती, घराती और शहर के लोग भूखे ही चले जायेंगे, कोई पानी भी नहीं पीयेगा ।
इतनी मिठाई , सब्जी और रोटियों का क्या करोगे? अन्न का एक दाना भी नाली में बहाना कितना बड़ा पाप है ? दादी माँ की इच्छा भी मेरी पोती का विवाह धूमधाम से हो । बाऊ जी के मेहनत की कमाई लगी है, रिमझिम का शानदार विवाह करने में । बेटियों का विवाह कोई बातों से थोड़े ही होता है! शिव बोला “तो क्या करें? बस, आप चुपचाप सहज भाव से बारात व मेहमानों को भोजन कराओ, सुबह तक सबकी आवभगत करते रहो । मैं कोठार के ताला लगाकर चाबी अपने पास रख लेती हूँ ।”
वैसा ही हुआ ।
बाराती व मौहल्लै से आये सनातन धर्म के नियमों का पालन करने वाले लोगों ने स्वरुचि भोज किया । विद्या ने सभी औरतों को अपने हाथों से भोजन करवा दिया था ।
सुबह वह समय भी आ गया जब महिलाओं का झुण्ड विदाई के गीत गाने लगा ।….रिमझिम पराई हो गयी…। यह सुनकर वह , भाभियों व सहेलियों का बारी बारी से गला पकड़कर मिल रही थी, सब अपने आंसुओं को छिपाने की कौशिश कर रहे थे । रिमझिम इतनी भावुक हो गई कि अपनी सुधबुध ही खोने लगी! उसकी माँ तो उस हिरणी की तरह विलाप करने लगी , जिसका छौना किसी शेर के हत्थे चढ गया हो !
बड़ी बहु विद्या ने माँ बेटी को संभालते हुए कहा ” हम किसी की बेटियां नहीं हैं क्या ? खूब फलो फूलो, तुम्हारे सास ससुर माँ बाप के समान ही है, उनका सम्मान और सेवा करना । यश कमाओ । उस घर को अपना घर समझना । परिवार का मान बढाओ । मिलजुल कर रहने से ही हमारा गौरव बढेगा । यही हमारे संस्कार और संस्कृति है ।
बारात विदा हो गयी ।
रिमझिम की माँ ने आकाश को कहा ” सुनो जी ! आपने कन्या दान किया है, और अभी तक माँ जी को पांवधोक लगाया ही नहीं, चलो चाय बाद में ही पीयेंगे ।” आकाश ने देखा कोठार के तो ताला लगाया हुआ है, वह क्रोध में बोला ” अरी, बड़ी बहु! ताला किसने लगाया है बेटा !” विद्या आई और ताला खोला ।
कोठार में विवाह का बचा सामान व कुछ मिठाई पड़ी थी, जमीन पर चद्दर ताने जैसे दादी मां सो रहा थी, आकाश को ऐसा आभास हुआ । यह देखकर आकाश का गुस्सा सातवें आसमान चढ़ गया
” ये क्या??? माँ को नीचे किसने सुलाया ? पलंग पर ऐसा कौनसा रईस था जो सोया??? विद्या ने रूंधे कंठों से कहा “बाऊजी दादी माँ अब कभी पलंग पर नहीं सोएंगी… इतना कहते ही सास व बड़ी बहू फूट फूट कर रोने लगीं । अचानक कोहराम मच गया । आकाश तो बच्चों की तरह रोने लगा ।
शिव और बड़ी बहु ने जो कुछ भी रात घटित हुआ, सबको बता दिया ।
पांचवें दिन दादा जी के बचपन के दोस्त हिमता राम अपने पोते के साथ आकाश से मिलने आये । वे बोले “आकाश, शादी वाले दिन तो सभी लोग पार्टी में आए थे, बेटी का विवाह तो बहुत अच्छा हो गया । सब लोग खुश होकर गये । तुम्हारी माँ ने तो पूरे वर्ष ले लिए, उसे तो जाना ही था । अगर तुम्हारी माँ शादी वाली रात गुजर जाती तो! सारा खराबा हो जाता । कहीं न कहीं तुम्हारी कमाई काम आई !
आकाश धीरे से बोला “कमाई नहीं । यह तो बड़ी बहु की समझदारी काम आई चाचा जी !”
चाचा ने कहा ‘तभी तो कहते हैं, “अक्ल धन से बड़ी है ।”
नेमीचन्द गहलोत
नोखा, बीकानेर (राज.)